हिन्दू विरोधी होना वामपंथी मीडिया संस्थानों के लिए काम करने की पहली शर्त

हिंदू विरोधी होना वामपंथी मीडिया संस्थानों के लिए काम करने की पहली शर्त

हिंदू विरोधी होना वामपंथी मीडिया संस्थानों के लिए काम करने की पहली शर्त

आजकल हिन्दू देवी देवताओं का अपमान करना व उनका मजाक उड़ाना वामपंथी विचारधारा का फैशन बन गया है। ऐसा करने वाले बड़ी जल्दी सुर्खियों में आते हैं और वामपंथी व जिहादी नेक्सस उन्हें स्थापित कर सेलिब्रिटी बनाने में लग जाता है। इसी तरह आज हिन्दू विरोधी होना वामपंथी मीडिया संस्थानों के लिए काम करने की पहली शर्त बन गया है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। हाल ही में एक नाम सामने आया है सृष्टि जसवाल का, उन्हें भगवान कृष्ण पर आपत्तिजनक ट्वीट करने के बाद विरोध के चलते हिंदुस्तान टाइम्स ने अपने यहॉं से निकाल दिया था। यह बात पिछले वर्ष जुलाई की है लेकिन अब वे हिंदू विचार के घोर विरोधी पोर्टल न्यूजलॉन्ड्री के लिए लेख लिख रही हैं। इसी पोर्टल के अन्य स्तम्भकार शरजील उस्मानी और नताशा नरवाल भी हिन्दू विरोधी गतिविधियों व लेखों के लिए जाने जाते हैं। दिल्ली दंगों के दौरान पुलिस पर रिवॉल्वर तानने वाले शाहरुख को मुजाहिद बताने वाला शरजील उस्मानी दिल्ली दंगों में आरोपित है। नताशा नरवाल पिंजरा तोड़ की सह संस्थापिका हैं। न्यूजलॉन्ड्री के CEO अभिनंदन सेखरी पर उनके ही पूर्व कर्मचारी ने उन पर हिन्दुओं पर हुए अपराधों को दबाने, मुसलमानों पर हुए अपराधों में हिन्दू कनेक्शन निकालने, सहकर्मियों को गाली देने, और आम आदमी पार्टी के लिए एजेंडा चलाने जैसे आरोप लगाए थे।

हिन्दुत्व से घृणा करने वाले पत्रकारों को प्लेटफॉर्म देने वालों में न्यूजलॉन्ड्री अकेला पोर्टल नहीं है, द वायर, एनडीटीवी, द कारवां, स्क्रॉल, बीबीसी, द हिन्दू जैसे पोर्टलों के अधिकांश स्तम्भकारों की नफरत भी उनके लेखों में साफ झलकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि हिन्दू विरोधी विचारों को पोषित व प्रकट करना ही इन मीडिया संस्थानों का उद्देश्य है।
द वायर के सुप्रकाश मजूमदार अपने ट्वीट में भगवान राम पर भगवान हनुमान का समलैंगिक क्रश बता चुके हैं। द हिन्दू की पत्रकार सुचित्रा का इस पर चुटकी लेता हुआ ट्वीट आ चुका है। सुचित्रा अपने ट्विटर बायो के अनुसार क्विंट, द सिटिजन, द कारवाँ, कॉन्ग्रेस के मुखपत्र-नेशनल हेराल्ड में काम कर चुकी हैं।

भारत के संविधान में निहित अभिव्यक्ति के अधिकार के बहाने हिन्दूफोबिक विचारों को फैलाना इन वामपंथी विचारधारा वाले मीडिया संस्थानों में काम करने वाले पत्रकारों का हथकंडा रहा है। इन वेबसाइटों से जुड़े लेखकों और पत्रकारों ने हमेशा ही हिंदुओं के प्रति उपेक्षा दिखाई है। द वायर शरजील इमाम जैसे अपराधी को अपना प्लेटफॉर्म दे चुका है, जो असम और भारत के शेष उत्तर पूर्व – चिकेन नेक – को काटने के लिए भारतीय मुसलमानों को उकसाने वाली देशद्रोही विचारधारा के लिए जाना जाता है। इसी तरह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौत की कामना करने वाले ट्वीट को लेकर स्तुति मिश्रा पर जब द क्विंट ने कार्रवाई की तो उसे एनडीटीवी ने जगह दे दी। एनडीटीवी वही संस्थान है जिसकी डिप्टी एडिटर रही निधि सेठी ने पुलवामा अटैक के बाद बलिदानी जवानों का मजाक उड़ाया था और इसके एक अन्य पत्रकार विष्णु सोम अपनी मेज पर ओसामा बिन लादेन की मूर्ति रखते हैं।

ये वही वामपंथी पत्रकार और मीडिया संस्थान हैं जो देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा फांसी की सजा प्राप्त मकबूल भट्ट, अफजल गुरू और याकूब मेमन जैसे आतंकवादियों के लिए आंसू बहाते हैं और सीमा पर इनसे लड़ते हुए वीरगति प्राप्त सैनिकों का मजाक उड़ाते हैं।

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