कांग्रेस ने खुद यहां ओवैसी के लिए जमीन तैयार कर दी है

कांग्रेस ने खुद यहां ओवैसी के लिए जमीन तैयार कर दी है

कांग्रेस ने खुद यहां ओवैसी के लिए जमीन तैयार कर दी है
जयपुर। हैदराबाद के सांसद और एआईएमआईएम पार्टी के कर्ता-धर्ता असदुद्दीन ओवैसी राजस्थान में अपनी जड़ें जमाने की तैयारी कर रहे हैं। बिहार के चुनाव में मिली सफलता के बाद अब उनका नया मुकाम राजस्थान बताया जा रहा है। राजस्थान के एक जिले डूंगरपुर में हुई राजनीतिक हलचल तक पर उनकी नजर है और वो यहां सक्रिय भारतीय ट्राइबल पार्टी को अपने साझेदार के रूप में देख रहे हैं, लेकिन इन सब घटनाओं के बीच बड़ा सवाल यह है कि ओवैसी को आखिर राजस्थान में अपने लिए “स्पेस“ नजर कैसे आई? आखिर ऐसे क्या कारण हैं, जिनके चलते ओवैसी को लग रहा है कि राजस्थान में वे अपनी जड़ें जमा सकते हैं? इन सवालों का एक ही जवाब नजर आता है और वो है कांग्रेस और इसकी सरकारों की नीतियां। कांग्रेस ने जिन नीतियों पर पिछले कुछ सालों में काम किया है, उन्हें देखें तो लगता है कि जैसे खुद कांग्रेस ने यहां ओवैसी को आने का मौका दिया है। आइए जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर यह कैसे हुआ है।

राजस्थान में मुसलमान अच्छी संख्या में हैं। प्रदेश का शायद ही कोई ऐसा जिला हो, जहां मुस्लिम आबादी ना हो। पश्चिम में बाड़मेर-जैसलमेर से लेकर उत्तर में चूरू, झुंझनूं, पूर्व में अलवर-भरतपुर, मध्य में अजमेर-टोंक से लेकर दक्षिण में उदयपुर, बांसवाड़ा तक मुस्लिम आबादी है। दक्षिणी जिलों में इनकी संख्या कुछ कम है, लेकिन अन्य जिलों में मुस्लिम आबादी काफी है और तेजी से बढ़ भी रही है। राजस्थान में चूंकि मुस्लिम समुदाय के पास अब तक कोई विकल्प नहीं था, इसलिए इस समुदाय का वोट लगभग पूरी तरह से कांग्रेस को जाता रहा है और कांग्रेस को भी इस बात को भलीभांति जानती है कि राजस्थान में मुस्लिम वोट बैंक को लेकर उसे कम से कम अब तक तो कोई खतरा नहीं है। वोट बैंक की इस निश्चितंता के चलते ही कांग्रेस ने कई काम ऐसे किए हैं, जिनके चलते राजस्थान में मुस्लिम समुदाय की नई पीढ़ी अब ओवैसी के नेतृत्व में अपना भविष्य देखने लगी है और ओवैसी को लाने के लिए बाकायदा सोशल मीडिया अभियान तक चलाए जा रहे हैं।

कांग्रेस की नीतियों में सबसे बड़ी खामी यह रही है कि इसने पूरे देश की तरह यहां भी मुस्लिम समुदाय के प्रति तुष्टिकरण की नीति को अपनाया। इस तुष्टिकरण के चलते ही राजस्थान में हरियाणा से लगते अलवर और भरतपुर के इलाकों में मेव मुस्लिमों का प्रभाव और संख्या बहुत तेजी से बढ़ी है। कांग्रेस ने अपनी सरकारों के दौरान इस इलाके में बढ़ती कट्टरता को रोकने के लिए कुछ नहीं किया। आज ये इलाके मुस्लिम कट्टरवाद के नए गढ़ बन चुके हैं जहां हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए हैं और जबरन मतान्तरण तथा लव जिहाद जैसी घटनाएं यहां आम बात हो गई हैं। राजस्थान में कांग्रेस सरकारों ने इन इलाकों को कानून व्यवस्था की दृष्टि से बिल्कुल उपेक्षित जैसा छोड़ रखा है। तथाकथित माॅब लिंचिंग की घटनाओं को लेकर कांग्रेस की मौजूदा सरकार ने जिस तरह का रुख अपनाया, उसने भी यहां मुस्लिम कट्टरवाद को पनपाने में अहम भूमिका निभाई। ओवैसी जिस तरह के नेता हैं और मुस्लिम समुदाय को लेकर वे जिस तरह की राजनीति करते हैं, उनके लिए मुस्लिम कट्टरवाद की यह नई फसल बेहद काम की है। यह तय है कि ओवैसी यहां आते हैं तो उनका सबसे जोरदार स्वागत इसी इलाके में होगा।

तुष्टिकरण के जरिए मुस्लिम कट्टरवाद को पनपाने के साथ ही कांग्रेस ने अपने तात्कालिक फायदे के लिए प्रदेश के तीन बड़े शहरों जयपुर, जोधपुर और कोटा के अलावा कई अन्य शहरों में भी मुस्लिम वोट बैंक के अलग क्षेत्र ही तैयार कर दिए। हाल में हुए नगर निगम और शहरी स्थानीय निकायों के चुनावों में वॉर्डों का परिसीमन इस तरह किया गया कि कई वॉर्ड तो पूरी तरह मुस्लिम बहुल हो गए हैं। जयपुर हैरिटेज, जोधपुर उत्तर और कोटा उत्तर नगर निगमों में तो कांग्रेस की जीत का सबसे बड़ा कारण ही धार्मिक आधार पर किया गया परिसीमन रहा है। ऐसा सिर्फ इन शहरों में ही नहीं बल्कि कई अन्य शहरों में किया गया। राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया ने तो हाल में उदाहरण सहित बताया था कि किस तरह चाकसू और सवाई माधोपुर जैसे छोटे-छोटे शहरों में भी धार्मिक आधार पर परिसीमन किया गया। कांग्रेस को इस परिसीमन से चार बड़े नगर निगमों और कई शहरी स्थानीय निकायों में जीत तो मिल गई, लेकिन इसके साथ ही उसने मुस्लिम समुदाय के इलाकों को नोटिफाई कर दिया और ओवैसी जैसे नेताओं के लिए राजस्थान के शहरों में अपनी पैठ जमाना बेहद आसान कर दिया। ओवैसी यहां आते हैं, तो उन्हें मेहनत करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। वे इन चिन्हित वार्डो में अपने प्रत्याशी खड़े कर सकते है और बडी आसानी से एक राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित हो सकते हैं।

कांग्रेस ने इन मुस्लिम वोटों के सहारे जीत तो हासिल कर ली, लेकिन जब मुस्लिम समुदाय ने इस एकतरफा समर्थन की कीमत मांगी तो कांग्रेस ने हाथ झटक दिए। इतिहास में पहली बार कांग्रेस मुख्यालय पर मुस्लिम समुदाय के लोग अपना महापौर बनाने की मांग को लेकर प्रदर्शन करते नजर आए, लेकिन कांग्रेस ने इतनी बड़ी जीत दिलाने वाले समुदाय को उपमहापौर का पद दे कर टरका दिया और बड़ी नाराजगी मोल ले ली। कांग्रेस ऐसा करते समय यह भूल गई कि  मुस्लिम समुदाय में अब स्थितियां बदल रही हैं और अब यह जरूरी नहीं कि मुस्लिम कांग्रेस से ही बंधे रहें।

राजस्थान के मुस्लिमों में कांग्रेस के प्रति नाराजगी के और भी कई कारण हैं। जैसे मुस्लिम समुदाय के इतने विधायक होने के बावजूद कांग्रेस ने सिर्फ सालेह मोहम्मद को मंत्री बनाया है और उन्हें भी अल्पसंख्यक मामलता और वक्फ जैसे हल्के विभाग दिए गए हैं, जबकि भाजपा की सरकार के समय भाजपा के सिर्फ दो मुस्लिम विधायक थे, उनमें से भी एक युनूस खान मंत्री थे और उनके पास परिवहन और सार्वजनिक निर्माण विभाग जैसे बड़े विभाग ही नहीं थे, बल्कि वे तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बेहद नजदीकी नेताओं में भी थे। गहलोत की पिछली सरकार में भी अमीन खां ही एक मात्र मुस्लिम मंत्री थे और उनके पास भी अल्पसंख्यक और वक्फ जैसे विभाग ही थे और उन्हें भी एक विवाद के चलते पद से हटना पड़ा था।

मुस्लिम समुदाय में इस बात को लेकर भी नाराजगी है कि कांग्रेस ने विकास के नाम पर इस समुदाय को कभी कुछ नहीं दिया ओैर हमेशा एक वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया। इस समुदाय की कई मांगों पर बरसों से कोई कार्रवाई नहीं हुई है और यह समुदाय आज भी बुरे हालात में जी रहा है। भारतीय जनता पार्टी अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष सादिक खान कहते हैं कि कांग्रेस ने मुस्लिमों को रोजा इफ्तार पार्टियों के अलावा कुछ नहीं दिया।

मुस्लिम समुदाय की पिछली पीढ़ियां कैसे भी हालात में रह कर भी कांग्रेस के साथ बनी रहीं, क्योंकि उन्हें कोई बड़ा विकल्प नहीं दिख रहा था, लेकिन इस समुदाय की नई पीढ़ी को अब ओवेसी के रूप में विकल्प दिख रहा है और कांग्रेस खुद अपनी नीतियों और कार्यशैली के कारण ओवैसी और उनकी पार्टी के लिए यहां जमीन तैयार करती दिख रही है।

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