स्मारक के लिए देशभर में घूम घूम कर बलिदानी सैनिकों के आंगन की पवित्र रज इकट्ठी कर रहे उमेश
देशभक्ति हो या किसी के प्रति श्रद्धा, इनकी अभिव्यक्ति का कोई निश्चित तरीका नहीं होता। हमारी भावनाएं जब उद्वेलित होती हैं तो मन स्वयं अभिव्यक्ति के तरीके ढूंढ लेता है। 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों पर जब हमला हुआ और हमारे 40 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए तब पूरा देश दुखी था। तभी बेंगलुरु के उमेश जाधव के मन में इन बलिदानियों के साथ ही देश के अन्य बलिदानियों को भी अपनी तरह से श्रद्धांजलि देने का विचार आया। उस दिन उन्होंने संकल्प लिया कि वे पूरे देश में वीरगति प्राप्त सैनिकों के घर जाएंगे, उनके घर के आंगन व उनके स्मारक से ली गई मिट्टी से भारत माता के मस्तक कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में देश का ऐतिहासिक नक्शा एवं अमर बलिदानियों का विशाल स्मारक बनवाएंगे।
इसी सिलसिले में 9 अप्रैल 2019 को घर से निकले उमेश अब तक कर्नाटक, गुजरात, तमिलनाडु, गोवा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा सहित 23 प्रदेशों का भ्रमण कर वीरगति प्राप्त सैनिकों के घरों से मिट्टी लेकर राजस्थान पहुंचे हैं। जोधपुर पहुंचने पर उन्होंने बताया कि यहॉं वे मेजर शैतानसिंह, अब्दुल हमीद व बुड़किया के भूपेंद्र काली राणा सहित 8 वीरगति प्राप्त सैनिकों के परिवारों से अब तक मिल चुके हैं और उनके आंगन की पवित्र मिट्टी एकत्रित कर चुके हैं।
जाधव ने बताया कि वे बेंगलुरु में एक संगीत विद्यालय चलाते हैं। वीरगति प्राप्त सैनिकों के घर की मिट्टी से स्मारक बनाने के उद्देश्य से वे निजी कार से देश के 28 राज्यों और 9 केंद्र शासित प्रदेशों की यात्रा पर निकले हैं। उन्हें यह यात्रा 15 मार्च तक पूरी करनी है। उन्होंने बताया कि अपनी यात्रा के दौरान उन्हें एक लाख 20 हजार किलोमीटर के लगभग यात्रा करनी है। अभी तक वह 73 हजार किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं। इसके साथ ही अब तक की यात्रा के दौरान भारत माता को अपना सर्वस्व अर्पित करने वाले 106 वीरगति प्राप्त सैनिकों के परिवारों से मिले तथा उनके घर के आंगन की मिट्टी एकत्र की है।
उमेश ने बताया कि उन्होंने 2019 में बेंगलुरु के सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर से अपनी यह यात्रा आरम्भ की थी और इसका समापन गुजरात में करना था, लेकिन कोविड के चलते इसमें परिवर्तन करना पड़ा। वह कहते हैं मेरी इस यात्रा का उद्देश्य यह उदाहरण प्रस्तुत करना है कि हमारा भारत बलिदान और बलिदानियों से बना है, भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के बलिदानियों के प्रति यह सम्मान है। यह हमारी मातृभूमि, देश के रक्षकों का सम्मान है।
इस यात्रा के लिए उन्होंने दो गाडिय़ों में कुछ बदलाव किए हैं। एक गाड़ी जिसमें बैठकर वह यात्रा करते हैं, जबकि उसी के साथ एक और गाड़ी को जोड़ा है, जिसमें रात के समय वह सोते हैं। वे अपनी गाड़ी में ही सारे औजार, एक साइकिल, स्कूटी व शहीदों के गांव की मिट्टी साथ लेकर चलते हैं। जिस गॉंव में गाड़ी नहीं जा सकती वे वहॉं स्कूटी या साइकिल से जाते हैं। उन्होंने कार पर लिखा है ‘शहीदों के परिवारों के साथ खड़े हों और देश की सेना का समर्थन करें’। इसके अलावा उन्होंने अपनी कार पर तिरंगा और अन्य देशभक्ति से जुड़ी चीजें बनवा रखी हैं।