शिव शक्ति नाम भारतीय दर्शन के अनुरूप है

शिव शक्ति नाम भारतीय दर्शन के अनुरूप है

अवधेश कुमार

शिव शक्ति नाम भारतीय दर्शन के अनुरूप हैशिव शक्ति नाम भारतीय दर्शन के अनुरूप है

चंद्रयान-3 मिशन के लैंडर विक्रम के चंद्रमा पर उतरने की जगह का नाम शिव शक्ति हो चुका है। उस स्थान को जहां चंद्रयान-2 मिशन ध्वस्त हुआ, तिरंगा नाम दिया गया। कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने कहा कि नरेंद्र मोदी ने उसका नाम कैसे रख दिया? क्या वह चांद के मालिक हैं? यह गलत बात है आदि आदि। ये ऐसी प्रतिक्रियाएं हैं जिनका उत्तर देना भी अपना समय नष्ट करना होगा। चंद्रयान 1 जहां 2008 में उतरा था उसका नाम तत्कालीन संप्रग सरकार ने जवाहर रख दिया। हालांकि चंद्रयान की योजना अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान बनी थी और उन्होंने 1999 में ही घोषणा की थी कि 2008 में चंद्रयान 1 प्रक्षेपित होगा। भाजपा मांग कर सकती थी कि बाजपेयी का नाम रखा जाए। शिव शक्ति और तिरंगा राजनीतिक नाम भी नहीं। इस नाम के पीछे गहरी सोच है। हमारे धर्मग्रंथों में शिव और चंद्रमा के संबंध बताने की आवश्यकता नहीं। शिव शक्ति भारतीय सभ्यता संस्कृति का प्रतीक नाम है। नामकरण के कुछ उद्देश्य होते हैं। शिव सृष्टि के कल्याणकर्ता हैं। वे कालों के काल महाकाल भी हैं। कल्याण के लिए वे विषपान तक चले गए। उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है। तो शिव शक्ति नाम का अर्थ यह हुआ कि भारत का अंतरिक्ष अभियान या चंद्रमा पर चंद्रयान का उतरना संपूर्ण मानवता या सृष्टि के कल्याण के लिए है और कालातीत है। यानी हमारा अंतरिक्ष अभियान विज्ञान की प्रकृति पर विजय को दर्शाने या महाशक्ति की धौंस जमाने के लिए नहीं है।

यही भारतीय दृष्टि आज हमारी समस्त विदेश नीति, रक्षा नीति, विज्ञान नीति का मूल दर्शन है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद आंतरिक और बाह्य नीतियों में भारतीय सभ्यता व संस्कृति का दिग्दर्शन हो रहा है और विश्व मानवता भी हमारी व्यापक दृष्टि और व्यवहार से परिचित हो रही है। उन्होंने चंद्रयान 3 की सफलता के बाद दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि यह केवल भारत की और भारत के वैज्ञानिकों की सफलता नहीं है, संपूर्ण विश्व की, मानवता की सफलता है। प्रधानमंत्री ने अपने देश की वैज्ञानिक उपलब्धियां, अनुसंधान आदि की चर्चा की, पर धौंस जमाने या यह प्रदर्शित करने का दंभ नहीं था कि भारत के समक्ष दूसरे देश छोटे या बौने हैं। संपूर्ण विश्व का साझा अभियान बताकर प्रधानमंत्री ने संदेश दिया कि भारत का वैश्विक दृष्टिकोण क्या है। भारतीय जीवन दर्शन में उपलब्धियों और समृद्धि के साथ विनम्रता और त्याग को जोड़ा गया है। ब्रिक्स सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी थे। चीन अंतरिक्ष की उपलब्धियां पर गर्वोन्मत भाव प्रकट करता है। इसी कारण कई गुनी बड़ी आर्थिक शक्ति होते हुए भी चीन को भारत की तरह विश्व में भविष्य के नेता या आशा की दृष्टि से नहीं देखा जाता। बिना उपलब्धि के विश्व मानवता की भाषा बोलें तो कोई सुनने वाला नहीं होता। उपलब्धियां हासिल करने के बाद अपना दर्शन रखते हैं तो सारे देश गंभीरता से सुनते और विचार करते हैं।

यह मानना होगा कि भारत की अंतरिक्ष सफलता के साथ विश्व के अंतरिक्ष अभियानों के दृष्टिकोण में बदलाव आएगा। प्रधानमंत्री कोरोना काल के बाद जिस विश्व व्यवस्था की बात करते हैं, उसमें भारतीय दर्शन की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। प्रधानमंत्री मोदी हर ऐसे अवसर का इस दृष्टि से उपयोग करते हैं और अपने अनुसार विश्व को संदेश देने में सफल होते हैं। यही चंद्रयान-3 के मामले में है और इसे भारतवासियों को गहराई से समझना चाहिए। दुर्भाग्य है कि जहां संपूर्ण विश्व भारत को बधाई दे रहा है और बड़ी संख्या में देश भारत की सफलता से खुश होकर नेतृत्व की दृष्टि से हमारी ओर देख रहे हैं, वहीं हम राजनीतिक तू तू मैं मैं में उलझे हैं। कांग्रेस ने 2019 में भी चंद्रयान 1 के उड़ान के साथ भी श्रेय वैज्ञानिकों के अलावा नेहरू को दिया। इस बार भी कांग्रेस का स्वर यही है। सरकारें निरंतरता में चलती हैं। स्वतंत्रता के समय कांग्रेस ही थी और तब विकास की नींव डालने की भूमिका उनकी थी। हालांकि कोई उपलब्धि एक नेता या केवल सरकार की नहीं होती, पर उसकी महत्वपूर्ण भूमिका अवश्य होती है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान और कार्य की नींव डालने में नेहरू की भूमिका थी। किंतु सब कुछ उन्हीं के कारण हो रहा है केवल दंभ कहा जाएगा। यह सच भी नहीं है। यह मानसिकता स्वयं को ही महान और सर्वोपरि मानती है और दूसरे को स्वीकार नहीं करती। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में अंतरिक्ष, रक्षा या अन्य वैज्ञानिक अनुसंधानों को मिली शक्ति, दिशा और व्यापक आयाम अतुलनीय है। यूपीए सरकार के अंतिम समय में अंतरिक्ष बजट और आज के बजट को देखें तो यह तीन गुना से भी ज्यादा हो जाता है। अंतरिक्ष को व्यापक आयाम दिया गया। अंतरिक्ष के व्यावहारिक लक्ष्य तय हुए। यानी भारतीय दृष्टि तथा अंतरिक्ष लोगों के दैनिक जीवन से जुड़े इस पर फोकस करने का लक्ष्य मिलने के बाद वैज्ञानिकों ने केंद्रित होकर काम किया है। अमेरिका में नासा की शक्ति निजी क्षेत्र है। केवल सरकार की बदौलत अंतरिक्ष या किसी क्षेत्र में आवश्यक ऊंचाइयां प्राप्त नहीं कर सकते। निजी क्षेत्र को अनुमति दी गई। इंडियन स्पेस एसोसिएशन की स्थापना और भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र यानी इन स्पेस का गठन हुआ। श्रीहरिकोटा सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में एक निजी लॉन्चपैड और मिशन नियंत्रण केंद्र की स्थापना हुई। आज 140 स्टार्टअप अंतरिक्ष क्षेत्र में काम कर रहे हैं। स्टार्टअप में 2021 से अभी तक 20 करोड़ डॉलर का निवेश आया है। 2030 तक इसरो ने अपना स्पेस स्टेशन स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। भारत दूसरे देशों का सबसे ज्यादा उपग्रह प्रक्षेपित करने वाला देश है। 2040 तक अंतरिक्ष बाजार एक खरब डालर का हो सकता है और उसमें भारत को सर्वाधिक महत्वपूर्ण हिस्सा पाना है तो उसके अनुरूप उद्देश्य, विचारधारा, आधारभूत संरचना, वातावरण और सरकारी प्रोत्साहन होना चाहिए। व्यावहारिक दृष्टिकोण नहीं हो तो दूसरे देशों को आप नहीं समझा सकते कि वे उपग्रह क्यों छोड़ें। उपग्रहों से आम व्यक्ति का दैनंदिन जुड़ाव इतना ज्यादा है कि सभी देश आगे बढ़ना चाहते हैं। इस समय हमारा अंतरिक्ष बाजार चार प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ रहा है।

सही लक्ष्य, विचारधारा, वातावरण देने तथा नेतृत्व द्वारा लगातार प्रोत्साहन मिलने के बाद वैज्ञानिक, कर्मचारी सब अपने आपको झोंक देते हैं क्योंकि सब उनके मन के अनुकूल होता है। हमारा चंद्रयान-3 केवल 600 करोड रुपए में सफल हुआ जबकि रूस का लूना 16000 करोड़ रुपए खर्च करके भी विफल। यानी बड़ी सफलताओं के लिए भी बहुत अधिक धन नहीं चाहिए। विचारों और लक्ष्यों की प्रेरणा तथा नेतृत्व का प्रोत्साहन मूल होता है। 2019 में चंद्रयान-2 की विफलता के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने जिस ढंग से तत्कालीन इसरो प्रमुख को गले लगाया और भाषण दिया वह अद्भुत था। इस बार भी विदेश से लौटते हुए सीधे बेंगलुरु उतर, केंद्र पर जाकर उन्होंने वही भूमिका निभाई है। नेतृत्व का दृष्टिकोण देखिए। उन्होंने छात्रों व युवा वैज्ञानिकों से कहा कि हमारे खगोल विज्ञान की गणनाओं को आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर सही साबित करें ताकि हम विश्व को बता सकें कि हमारी धरोहर क्या है। यही बात पहले क्यों नहीं कही गई? इसरो प्रमुख सोमनाथ ने कहा था कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में जो कुछ भी आज है वह वेदों में पहले से है, बीजगणित, अंकगणित, ज्यामिति, त्रिकोणमिति सबके आधार वहां हैं और पश्चिम ने उसी को नए पैकेज में प्रस्तुत किया है। सोमनाथ की इस कथन पर पीठ थपथपाई गई। हो सकता है दूसरी सरकार होती तो उनकी हंसी उड़ाई जाती। भारत की ज्ञान शक्ति को साबित करने का लक्ष्य भी वैज्ञानिकों को मिल गया है। तो चंद्रयान 3 की सफलता भारत के उस दर्शन की सफलता है, जिसका आधार अद्भुत ज्ञान के खजाने का सबको लाभ पहुंचाना और संपूर्ण सृष्टि का कल्याण है। भारत चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश ही नहीं बना, उसने भविष्य में संपूर्ण विश्व के अंतरिक्ष कार्यक्रमों को सही दिशा देने की आधारभूमि भी तैयार कर दी है।

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