श्रीराम मंदिर शिलान्यास से वामी मीडिया को अजीर्ण क्यों?

राम मंदिर शिलान्यास से वामी मीडिया को अजीर्ण क्यों?

 निवेदिता

राम मंदिर शिलान्यास से वामी मीडिया को अजीर्ण क्यों?
पांच सौ वर्षों से आक्रामक सांस्कृतिक आघात सहती हिन्दू आस्था को श्रीराम मंदिर शिलान्यास का अवसर राष्ट्रीय स्वाभिमान और आध्यात्मिक प्रसन्नता की अनुभूति कराएगा। यह स्वाभाविक सोच हो सकती है, पर वामपंथी बुद्धि के मकड़जाल में उलझे चंद लोगों की समझ इतनी स्वाभाविक नहीं हो सकती।

एक नामचीन विपक्षी दल के नेता का चैनल इसी बात पर बहस कर रहा है कि भूमि पूजन के समाचार को राष्ट्रीय दृष्टिकोण वाले चैनलों पर प्राइम टाइम का महत्व क्यों दिया जा रहा है। एक नहीं, ऐसे कई बुद्धि का व्यापार करने वाले चैनल हैं जिनकी दृष्टि में राजस्थान में जो सियासी हलचल है या राष्ट्रीय राजनीति में जो आरोप-प्रत्यारोप के वीडियो संचारित हो रहे हैं आदि से ज्यादा महत्व का समाचार इस समय और कोई हो ही नहीं सकता।

इस तरह की दृष्टि पर आश्चर्य तो नहीं पर अफसोस अवश्य है। अफसोस इस बात का कि जिस देश की पहचान भगवान श्रीराम हैं, जहां राजधर्म का आदर्श श्रीराम को माना जाता है और जहाँ की राजनीति का लक्ष्य राम राज्य माना गया है वहाँ श्रीराम के ऐतिहासिक मंदिर की सदियों पुरानी प्रतीक्षा के समाप्त होने का अवसर ‘प्राइम टाइम’ महत्व का न होने का कुतर्क दिया जा रहा है। निस्संदेह यह निराशा और हताशा से खिसियायी हुई बिल्लियों द्वारा खम्भा नोचना ही है। न्यूज चैनल पर प्राइम टाइम और नॉन प्राइम टाइम की दो श्रेणी दरअसल विज्ञापन दिखाने की महंगी दरें निर्धारित करने का एक बहाना है।

नकारात्मक मानसिकता वाले पत्रकारों के लिए यह ‘ प्राइम टाइम’ अपना एजेंडा तय करने का समय है। जिस पर वे रंगे सियारों की तरह एक स्वर में, एक प्रकार के “सांप्रदायिक, हिन्दुत्व विरोधी और मर्यादा लांघते हुए राष्ट्र एवं समाज घातक’ समाचार दिखाकर ‘ओपीनियन’ बनाया करते हैं। गत छह वर्ष से इस ‘ओपीनियन मेकिंग’ कला की पोल खुल चुकी है और राष्ट्रीय दृष्टिकोण वाले समाचार चैनलों ने इनको एक तरह से विस्थापित सा ही कर दिया है। यद्यपि इनका रुदन थमा नहीं है पर उनकी आवाज अब नक्कारखाने में तूती जैसी रह गई है।

दर्द से कराहते कुछ राष्ट्रविरोधी चैनल्स को यह उम्मीद ही नहीं थी कि भारतीय इतिहास में ऐसा कोई स्वर्णिम अवसर आएगा, जिस दिन देश श्रीराम मंदिर का भव्य शिलान्यास देखेगा। ये तो ‘रामलला हम आएंगे पर तारीख नहीं बताएंगे’ का व्यंग्य सदा सर्वदा की इबारत माने बैठे थे। ऐसे में यह अवसर इन चैनलों के पत्रकारों को किसी भी तरह पचाना संभव नहीं हो रहा। अतः यह अजीर्ण से उत्पन्न दृष्टिकोण है कि भूमिपूजन को प्राइम टाइम में न दिखाया जाए। यह बात जानते हुए भी कि टीआरपी गिरने से बचाने के लिए ये सब अजीर्ण के बाद भी वमन नहीं कर पाएंगे और जिस दिन शिलान्यास होगा उस दिन से पहले ही इन सबकी ओबी वैन पवित्र नगरी अयोध्याजी में अपने लिए उपयुक्त स्थान तलाश रही होगी।

तो बस प्रतीक्षा कीजिए, उस ऐतिहासिक दिन की, जब हम सब साक्षी होंगे, उस तेजस्वी आंदोलन की भव्य कृति को साकार देखने के, जिस आंदोलन ने हिन्दू समाज की सुप्त चेतना को आलोड़ित किया था।
भली करेंगे रामजी।

( लेखिका स्तम्भ लेखन, सामाजिक सुधार और जनजागरण के क्षेत्र में सक्रिय हैं। )

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