काउंसलिंग से कंट्रोल हो सकता है सुसाइड रेट

काउंसलिंग से कंट्रोल हो सकता है सुसाइड रेट

सीमा अग्रवाल

काउंसलिंग से कंट्रोल हो सकता है सुसाइड रेटकाउंसलिंग से कंट्रोल हो सकता है सुसाइड रेट

वर्ष 2022 में WHO द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि साउथ ईस्ट एशियाई देशों में सुसाइड रेट विश्व में सर्वाधिक है। इस रिपोर्ट में आगे कहा कि भारत में हर वर्ष होने वाली मौतों में से लगभग 8 लाख मौतों का कारण सुसाइड है। सितंबर महीना वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन मंथ के रूप में मनाया जा रहा है। मानसिक स्वास्थ्य पर अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है ताकि मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को लोग समझें। संभव है कि इस जागरूकता से आत्महत्या के बढ़ते मामलों में कुछ कमी आए।

आज के दौर में समाज में आत्महत्या के मामले चुनौती बने हुए हैं। लोग अक्सर इस मुद्दे पर बात करने से बचते हैं। आंकड़ों की मानें तो देश के अनेक शहरों के जिला अस्पतालों में चिकित्सा के लिए आने वाले प्रति 600 रोगियों में से 300 के मन में आत्महत्या का विचार आता है। गंभीर बीमारियों से ग्रसित ये मरीज विभिन्न कारणों से अपना जीवन समाप्त करना सही मानते हैं।

मनोचिकित्सकों के अनुसार, मेंटल हेल्थ का अर्थ किसी व्यक्ति की भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक खुशहाली से होता है। जब व्यक्ति की मेंटल हेल्थ अच्छी हो तो उसके मस्तिष्क में सुसाइड जैसे विचार नहीं आते। व्यक्ति स्वस्थ मन से हमेशा सकारात्मक सोचता है और परेशानियों के निदान के लिए अच्छे  निर्णय लेता है।

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार पिछले वर्ष जितने लोगों ने सुसाइड किया, उनमें से सर्वाधिक 32.4 प्रतिशत    ने पारिवारिक परेशानियों से तंग आकर यह रास्ता चुना। आत्महत्या का दूसरा बड़ा कारण बीमारी है। NCRB के अनुसार, वर्ष 2019 में लगभग 23 हजार 830 लोगों ने बीमारी से दुखी होकर सुसाइड कर लिया। इससे पता चलता है कि देश में अभी भी सबको उचित स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं। लाइलाज बीमारी के मामले में आत्महत्या के विचार अधिक आते हैं।

NCRB ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि सुसाइड के कुल मामलों में बेरोजगारी और बिगड़े आर्थिक हालात के कारण वर्ष 2019 में 2,851 लोगों ने आत्महत्या की है। जबकि ड्रग एडिक्शन, शादी से जुड़ी परेशानियों, लव अफेयर्स, कर्ज, परीक्षा में फेल होने के भय से इसकी तुलना में अधिक लोगों ने यह रास्ता अपनाया। आज समाज का कोई वर्ग ऐसा नहीं, जिसमें आत्महत्या की घटनाएं नहीं होती हैं। दिहाड़ी मजदूर से लेकर, गृहिणियां, छात्र सभी इसमें शामिल हैं। NCRB के अनुसार, फैमिली सुसाइड या मास सुसाइड के मामले भी चिंतनीय हैं।

मनोरोग चिकित्सकों के अनुसार वैसे तो हर आयु के लोगों में आत्महत्या के मामले देखे जा रहे हैं। लेकिन सबसे ज्यादा मामले 18 से 30 वर्ष आयु वर्ग के हैं। 2019 में जहां 30,833 पुरुषों ने, जिनकी आयु 18 से 30 वर्ष थी- ने आत्महत्या की, वहीं समान आयु वर्ग में महिलाओं की संख्या 17,930 थी।

विशेषज्ञों के अनुसार आत्महत्या से हो रही मौतों को रोका जा सकता है। बीमारी की तरह आत्महत्या के 90% मामलों में पूर्व संकेत मिलते हैं। व्यक्ति चिड़चिड़ा होने लगता है। तनाव में रहता है। चिंता, हताशा, निराशा सुसाइड के लक्षण हैं। अगर समय रहते इन संकेतों को पहचानें और संबंधित व्यक्ति से बात करके उसका दर्द बांट लें। उसकी काउंसिलिंग की जाए तो उसे सुसाइड से बचाया जा सकता है।

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