सेंगोल (कविता)

सेंगोल (कविता)

भानुजा श्रुति 

सेंगोल (कविता)सेंगोल (कविता)

मैं धर्म दण्ड, मैं लोकतंत्र
मैं वर्तमान की आहट हूँ
जो भी मेरा प्रतिरोध करे
मैं उस जीवन की हिमाकत हूं।

मैं राजतंत्र में प्रकट हुआ
राजाओं का सिरमौर बना
जो सत्ता बदली वंशों की
मैं नए वंश की आमद हूँ।

यह स्वर्ण रजत यौवन मेरा
सम्राट हस्त की शोभा यह
अब जनता मुझे पुकार रही
मैं संसद जाकर ठहरा हूँ।

यह देश सनातन से बनता
भारत वर्ष नाम इसका
भारत तो ठहरा धर्मगुरु
मैं भारत माँ की ताकत हूँ।

सेंगोल मुझे है नाम दिया
मैं धर्म तंत्र की आहट हूँ॥

लाखों वर्षों के आने पर भी
बना रहा मैं जीवन में
जो केसरिया ध्वज फहरा हो
सब विश्व शांति का गान करें।

हाँ! धर्म सनातन अमर रहें
और वीणापाणि नाद करें
जब विश्व हमारी ओर तकें
हम भारत वर्ष का नाम करें।
हम राम कृष्ण उद्घोष करें॥

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