सोशल मीडिया के स्लीपर सेल की कुचेष्टाएं, सतर्क रहिए

कुमार अज्ञात

सोशल मीडिया के स्लीपर सेल किन ताकतों के इशारे पर काम कर रहे हैं, यह बात अब हर कोई जानता है और इसे बताने की जरूरत भी नहीं है। लेकिन इनसे सतर्क रहने और इनकी कुचेष्टाओं का करारा और तर्कपूर्ण जवाब दिए जाने की आवश्यकता जरूर है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज हमारे जीवन में सोशल मीडिया एक स्थान बना चुका है। हमारे विचार, हमारी धारणाएं और कई बार हमारे काम तक सोशल मीडिया से प्रभावित होने लगे हैं। कोरोना संकट के समय सोशल मीडिया ने सकारात्मक और नकारात्मक हर तरह की भूमिका निभाई है। एक तरफ जहां कोरोना योद्धाओं के संघर्ष और समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों द्वारा किए जा रहे सकारात्मक कार्यों को सोशल मीडिया ने ही जन जन तक पहुंचाया, वहीं दूसरी ओर कोरोना योद्धाओं व घोर नकारात्मक समय में भी सकारात्मकता बनाए रखने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा ताली बजाने और दीए जलाने के कार्यक्रम के विरुद्ध माहौल बनाने और श्रमिकों के बीच संशय का वातावरण तैयार करने में भी सोशल मीडिया की भूमिका रही। लेकिन इस पूरे माहौल में हम बात करेंगे सोशल मीडिया के उन स्लीपर सेल की, जिन्होंने मौजूदा समय की नकारात्मकता को और गहरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिसके चलते कोरोना के विरुद्ध हमारी लड़ाई प्रभावित हुई।

कोरोना यो़द्धाओं पर हमले

कोरोना योद्धाओं विशेषकर घर-घर जाकर स्क्रीनिंग और सर्वे का काम कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों पर हमलों की घटनाएं देश के कई हिस्सों में सामने आईं। मुस्लिम मुहल्लों में घटित इन घटनाओं के पीछे सोशल मीडिया पर चली अफवाहों ने बड़ी भूमिका निभाई। शाहीन बाग के तथाकथित आंदोलन के समय इस समुदाय के लोगों के दिमाग में यह बात भर दी गई थी कि कोई भी सरकारी आदमी किसी भी तरह की जानकारी लेने आए तो उसे जानकारी नहीं देनी है। ऐसे में जब कोरोना वायरस की स्क्रीनिंग और सर्वे शुरू हुआ तो सोशल मीडिया पर चली अफवाहों से दिमाग में भरे उस जहर ने काम करना शुरू कर दिया। हालांकि इससे नुकसान मुस्लिम समुदाय का ही हुआ, क्योंकि आरम्भिक दौर में कोरोना के हॉटस्पॉट बने 90 प्रतिशत स्थान मुस्लिम बहुल ही थे। सरकारें जिस समय कोरोना से लड़ाई की तैयारी में जुटी थीं, उस समय उन्हें स्वास्थ्य और पुलिसकर्मियों की सुरक्षा पर ध्यान केन्द्रित करना पड़ा और यह लड़ाई प्रभावित हुई।

सरकार की तैयारी पर सवाल

स्लीपर सेल की ओर से बार बार सरकार की तैयारी पर सवाल उठाए गए। वेंटीलेटर्स की कमी, पीपीई किट की कमी, मास्क की कमी, क्वारंटाइन सेंटर्स की कमी, अचानक लॉकडाउन घोषित करना, पर्याप्त जांचें नहीं करना, सरकारी पैकेज की घोषणा में देरी सहित अलग-अलग मुद्दों पर सरकार की तैयारी पर सवाल खड़े किए गए और आज भी किए जा रहे हैं। कुल मिला कर माहौल ऐसा बनाने की कोशिश की गई कि भारत इस महामारी से लड़ने में पूरी तरह विफल है। यह माहौल बनाने में उन विदेशी एजेंसियों का भी बड़ा हाथ था जिन्होंने यह दावे किए थे कि भारत में यह बीमारी फैली तो पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा मौतें और संक्रमित लोग भारत में ही मिलेंगे। लेकिन सरकार की तैयारियों पर सवाल खड़े करने वाले इस मूल तथ्य को भूल गए कि इस तरह का अभूतपूर्व संकट देश ने आजादी के बाद पहली बार झेला है। इसके बावजूद 130 करोड़ की आबादी का यह देश इस महामारी को नियंत्रित रख पाने में बहुत हद तक सफल रहा है। दिलचस्प बात यह है कि चिकित्सा सुविधाओं में कमी पर सवाल उठाने में वह राजनीतिक दल सबसे आगे है, जिसने इस देश पर 49 वर्ष तक राज किया है।

श्रमिकों के बीच संशय का वातावरण

कोरोना के इस अभूतपूर्व संकट से सबसे अधिक यदि कोई प्रभावित है तो वह इस देश की श्रम शक्ति है। ये वो करोड़ों हाथ हैं जिन्होंने इस देश को खड़ा किया है। आज यही करोड़ों लोग इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। ऐसा लग रहा है कि कोरोना से भी बड़ी चुनौती अब इन करोड़ों श्रमिकों को सुरक्षित उनके घर पहुंचाना है। लेकिन इस स्थिति को भयावह बनाने में भी सोशल मीडिया के स्लीपर सैल ने अहम भूमिका निभाई है। कोरोना संकट के समय प्रधानमंत्री ने जब पहले लॉकडाउन की घोषणा की थी तब उन्होंने साफ कहा था कि जो जहां है, वहीं रुके, तभी सुरक्षित रह पाएगा। लेकिन लॉकडाउन घोषित होने के बाद जब सरकार ने गरीबों की सहायता के लिए तीन माह के राशन और आर्थिक सहायता आदि की घोषणा की तो बहुत सुनियोजित ढंग से यह अफवाह फैलाई गई कि यह लॉकडाउन तीन महीने चलेगा, इसीलिए सरकार ने तीन महीने का राशन देने की घोषणा की है। इस अफवाह ने उद्यमियों और श्रमिकों के बीच संशय का वातावरण बना दिया। इस संशय ने ही श्रमिकों को पलायन के लिए प्रेरित किया और वो सड़कों पर निकल पड़े। उन्हें सिर्फ भरोसा चाहिए था, जो राज्य सरकारें नहीं दे पाईं और अंतत: केन्द्र सरकार को इस पलायन को मंजूरी देनी पड़ी।

सकारात्मकता फैलाने के प्रयास भी नहीं सुहाए­

इस दौरान यहां तक देखा गया कि इस नकारात्मक माहौल को सकारात्मक बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना यो़द्धाओं के समर्थन में ताली बजाने या दीए जलाने जैसे काम करने की जो अपेक्षा देशवासियों से की, उसके विरुद्ध भी माहौल बनाया गया। इन प्रयासों को विफल करने के लिए अजीब तरह के तर्क गढ़े गए। लाइट बंद कर दीए जलाने पर उत्तरी ग्रिड के फेल हो जाने की अफवाहें तक फैलाई गईं। लेकिन देश की बहुसंख्यक आबादी ने इस बात को समझा और प्रधानमंत्री के आह्वान का दिल खोल कर समर्थन कर नकारात्मकता फैलाने वालों को करारा जवाब दिया।

ये स्लीपर सेल किन ताकतों के इशारे पर काम कर रहे हैं, यह बताने की जरूरत नहीं है। लेकिन इनसे सतर्क रहने और इनकी कुचेष्टाओं का करारा और तर्कपूर्ण जवाब दिए जाने की आवश्यकता जरूर है, क्योंकि यह चुनौती सिर्फ अभी ही नहीं बल्कि बार-बार आती रहेगी, अलग-अलग मुद्दों पर आती रहेगी।

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