स्वयंसेवक के लिए सेवा उपकार नहीं, एक करणीय कार्य है

जहॉं अपेक्षित, वहॉं उपस्थित, आपदा के समय सेवा कार्यों में सबसे आगे रहने वाले संघ के स्वयंसेवक कोविड -19 से उपजी चुनौतियों को हराने में भी तन मन धन से लगे हैं। दूसरों के जीवन का खयाल रखने में वे कई बार दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते हैं और अक्सर अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रख पाते तथा सेवा कार्य करते करते ही देश को अपना जीवन पुष्प अर्पित कर जाते हैं।

कोविड त्रासदी में भी सेवा कार्य करते हुए तीन स्वयंसेवक हमेशा के लिए अपने परिवार व साथियों से दूर चले गए।

22 मई को बाराबंकी के जिला कार्यवाह अजय चतुर्वेदी लखनऊ-अयोध्या राजमार्ग पर श्रमिकों को भोजन पैकेट वितरित करवाकर लौट रहे थे कि किसी अज्ञात वाहन ने उन्हें टक्कर मार दी। उपचार के दौरान अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई।

19 मई को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, जयपुर के दिनेश गरेड ब्रह्मलीन हो गए। वे तपती सड़कों पर अपने गंतव्यों की ओर जाने वाले श्रमिकों को पदवेश (जूते-चप्पल) उपलब्ध कराने का काम कर रहे थे।

इससे पहले 26 मार्च को बूंदी से हृदय विदारक समाचार आया, जब पता चला केशव भार्गव नहीं रहे। अपनी मृत्यु से कुछ देर पहले तक वे बूंदी की गुरुनानक कॉलोनी में लोगों को राहत सामग्री बॉंट रहे थे। वे साथी स्वयंसेवकों को भोजन करके आने का बोलकर घर आए थे। तबियत खराब होने पर स्वयं ही अस्पताल चले गए, जहॉं हृदयाघात के बाद फिर राहत सामग्री बांटने के लिए साथियों के पास नहीं पहुंच सके।

देश में न जाने कितने स्वयंसेवक हैं जो अपना जीवन दांव पर लगा कर समाज हित के कार्य कर रहे हैं। वे पूरी उम्र, पूरे समर्पण से, बिना ढिंढोरा पीटे समाज कार्यों में लगे रहते हैं, जो मृत्यु के बाद भी दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाते हैं।

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