स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती : एक सन्यासी जो ईसाई मिशनरियों के षड्यंत्रों का शिकार हो गया

स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती : एक सन्यासी जो ईसाई मिशनरियों के षड्यंत्रों का शिकार हो गया

23 अगस्त बलिदान स्मृति दिवस

स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती : एक सन्यासी जो ईसाई मिशनरियों के षड्यंत्रों का शिकार हो गयास्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती

वेदांत केसरी स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती को 23 अगस्त, 2008 की रात को ईसाई मिशनरियों के षड्यंत्र से निर्दयतापूर्वक मार दिया गया क्योंकि वह असहाय जनजातियों के ईसाइयत में कन्वर्जन का विरोध कर रहे थे और जनजाति बहुल उड़ीसा के कंधमाल जिले में स्थानीय जनजातियों के कल्याण के लिए काम कर रहे थे।

ओडिशा के वन प्रधान फूलबनी (कंधमाल) जिले के ग्राम गुरजंग में 1924 में जन्मे स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती ने जनजाति समाज के लोगों के सामाजिक और धार्मिक विकास के अलावा उन्हें सशक्त बनाने के लिए चार दशक तक काम किया। उन्होंने कंधमाल के दूरस्थ स्थान चकपाद में संस्कृत पढ़ाने के लिए गुरुकुल पद्धति पर आधारित एक विद्यालय, महाविद्यालय और कन्याश्रम की स्थापना की। उन्होंने बिरुपाक्ष्य, कुमारेश्वर और जोगेश्वर मंदिरों का जीर्णोद्धार किया।

उन्होंने चकपाद को अपनी गतिविधियों का केन्द्र बनाया क्योंकि वहाँ प्रसिद्ध बिरूपाख्या मंदिर है। इसके बाद उन्होंने जलेस्पट्टा में कन्याश्रम, तुलसीपुर में सेवा स्कूल, कटक जिले के बांकी और अंगुल जिले के पाणिग्रोला में एक आश्रम की स्थापना की। चकपाद का प्राचीन नाम एकचक्रनगरी है। यह नाम रामायण से जुड़ा है। यहां एक शिव मंदिर है, जहां लिंग दक्षिण की ओर झुका हुआ है और उस स्थान के सभी वृक्ष भी दक्षिण की ओर झुके हुए हैं।

स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती ने अपनी गतिविधियों के माध्यम से कंधमाल के लोगों की जीवन शैली को आमूल चूल रूप से बदल दिया। उन्होंने कक्षा में छात्रों को व्याकरण और खेतों में अच्छी खेती की तकनीक सिखाई। कटिंगिया में सब्जी सहकारी समिति भी बनाई। उनके इन प्रयासों से स्थानीय लोगों की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार हुआ।

संयुक्त वन प्रबंधन प्रणाली जिसे सरकार ने बहुत बाद में शुरू किया, उसे स्वामीजी ने 1970 में ही शुरू कर दिया था। उन्होंने कई स्थानों पर वनवासी देव स्थान (धर्माणीपेनू) की स्थापना की और उनका जीर्णोद्धार किया। इसी तरह उन्होंने गजपति और कंधमाल जिले से होते हुए एक रथयात्रा शुरू की, जिसके दौरान हजारों वनवासी अपनी विश्वास व्यवस्था में वापस जाकर उसका पालन करने के लिए प्रेरित हुए।

ईसाई मिशनरियों के कुचक्रों को विफल करने वाले स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती को गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य ने “विधर्मी कुचक्र विदारण महारथी” की उपाधि से सम्मानित किया। वह प्रायः कहा करते थे कि जहां आंसू या खून गिरता है वह क्षेत्र कभी समृद्ध नहीं होता। वे गोहत्या के विरुद्ध थे। उन्होंने कंधमाल में जनजातियों को उनके मूल विश्वास में वापस लाने के लिए अपने स्तर पर अनेक प्रयास किए।

उनका मुख्य लक्ष्य था:
1. जनजातीय युवाओं को मजबूत, निडर, शिक्षित और आर्थिक रूप से मजबूत बनाना।
2. जनजाति समाज को उनकी धार्मिक आस्थाओं के प्रति दृढ़ बनाना, कन्वर्जन पर रोक लगाना और कन्वर्ट हो गए लोगों को फिर से घरवापसी करवाना।
3. गो-रक्षा

इसके लिए उन्होंने जिले भर के गांवों की पदयात्राएं कीं। लोगों को जोड़ा और जनजाति समाज के लाखों लोगों के जीवन में स्वाभिमान की भावना जगाई। उन्होंने सैकड़ों गांवों में श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया। 1986 में स्वामीजी ने सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध जनजागरूकता पैदा करने, गोरक्षा को बढ़ावा देने और जनजाति समाज में चेतना व भक्ति जागृत करने के लिए भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली।

स्वामी जी को कन्वर्जन के काम में बाधा मानते हुए ईसाई मिशनरियों ने 1970 से दिसंबर 2007 तक उन पर 8 बार हमला किया। इन हमलों के बावजूद स्वामी जी जनजाति समाज को ईसाइयत में कन्वर्जन के विरुद्ध जागरूक करते रहे। अंतत: वे ईसाई मिशनरियों के षड्यंत्र के शिकार हो ही गए।

  • हत्या से पहले
    10 से 21 अगस्त, 2008 के बीच स्वामीजी को अपहरण और मौत की धमकी देने वाले 3 पत्र मिले।
  • पुलिस को कई शिकायतों के बाद 23 अगस्त को निजी सुरक्षाकर्मी उपलब्ध कराया गया ।

    हत्या की घटना का क्रमवार विवरण

  • 23 अगस्त 2008 को उड़ीसा के कन्या आश्रम जलेस्पेट्टा कंधमाल जिले में शाम 7:30 बजे स्वामीजी अपनी प्रार्थना के बाद आश्रम के अंत:वासियों से बातचीत कर रहे थे।
  • AK47 राइफलों और अन्य हथियारों से लैस 15 युवा नकाबपोश लोग आश्रम में घुस गए ।
  • बाबा अमृतानंद को स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती मानते हुए उन्हें गोली मार दी गई ।
  • आश्रम की एक अन्य शिष्या माता भक्तिमयी पीछे के दरवाजे से बाहर भागी, स्वामीजी के कमरे में आई, कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया, स्वामीजी को बचाने के लिए उन्हे शौचालय में धकेल दिया।
  • हमलावरों ने दरवाजा काटकर माता भक्तिमयी की हत्या कर दी। उनकी सहायता के लिए पहुंचे किशोर बाबा पर भी गोली चला दी।
  • हमलावरों ने कमरे में प्रवेश किया और स्वामीजी की तलाश की, उसे कोई जगह नहीं मिल रही है, उन्होंने शौचालय का दरवाजा खोल दिया और उन्हें गोली मार दी।
  • स्वामीजी की तत्काल घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई। वह 84 वर्ष के थे जब उन्हे इतनी निर्ममता से मारा गया था।
  • हमलावरों ने बर्बरता से धारदार हथियारों से मृतकों के शवों को काट दिया ।

    हत्या के पीछे कारण

  • ईसाई मिशनरियों द्वारा अवैध और धोखाधड़ी से जनजातीय लोगों के कन्वर्जन को रोकने के लिए 40 साल की अवधि में स्वामीजी जी द्वारा की गयी गतिविधियां।
  • स्वामीजी का गोहत्या विरोधी अभियान
  • स्वामीजी ने ईसाई मिशनरियों द्वारा अवैध रूप से भूमि कब्जा करने के षडयंत्र को उजागर किया।
  •  स्वामी जी की जनजाति उत्थान गतिविधियों ने ईसाई मिशनरियों को चुनौती दी जो असहाय जनजातियों को कन्वर्ट करने के प्रयास कर रहे थे ।

    स्वामी जी पर हमलों का इतिहास

  • अंतिम हमले से पहले स्वामीजी पर 8 बार प्राणघाती हमले किए गए थे। 1969 में रूपगांव स्थित एक स्थानीय चर्च के पादरी के नेतृत्व में ईसाइयों की भीड़ द्वारा
  • 1970 में गो तस्करों द्वारा
  • 1978 में बटिंगिया में आयोजित एक धार्मिक सभा में
  • 1981 में खिंगिया में हथियारबंद क्रिश्चियन आतंकी द्वारा।
  • 1983 में कांबगिरी में ईसाइयों द्वारा
  • 1999 में फिरंगिया में ईसाइयों द्वारा
  • 2002 में कलिंग में प्राणघाती जिसमे उनके सिर में गंभीर चोट लग गई थी
  • 2007 में ब्रामणी गांव जाते समय

    सुरक्षा विफलता  

  • स्वामीजी पर 8 हमलों के बावजूद प्रशासन द्वारा पर्याप्त सुरक्षा प्रदान नहीं की गई।
  • हत्या के दिन अकेले सुरक्षा कर्मचारी को बिना किसी विकल्प के छुट्टी पर जाने की अनुमति दी गई थी।

    हत्या के बाद

  • 23 अगस्त: रोड ब्लॉक, कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए। जलेस्पेटा में लगाया कर्फ्यू
  • 24 अगस्त: लोगों ने जुलूस में साधुओं के शव निकाले।
  • उड़ीसा सरकार ने न्यायिक जांच के आदेश दिए।
  • 25 अगस्त: राज्य व्यापी बंद का आह्वान किया गया था । कई जगहों से कड़ी प्रतिक्रियाएं आईं। चकपाद में स्वामीजी का अंतिम संस्कार जुलूस निकाला गया।
  • 28 अगस्त: पूरे देश में कंधमाल में कथित अत्याचारों के विरोध में ईसाई शिक्षण संस्थान बंद रहे।
  • 25 अगस्त से 1 सितंबर के बीच स्वामी जी की हत्या में मिशनरियों की भूमिका को छुपाने के लिए कई ईसाइयों ने अपने घरों को स्वयं आग लगा दी और चर्चों में स्थानांतरित हो गए।
  • इसके बाद ओड़ीशा में बड़ी संख्या में हिंदुओं की अंधाधुंध गिरफ्तारी हुई।
  • ईसाइयों द्वारा बड़े पैमाने पर झूठा और दुर्भावनापूर्ण अभियान चलाया गया।
  • पोप बेनेडिक्ट XVI ने कंधमाल में ईसाइयों की कथित हत्या की निंदा जारी की।
  • 3 सितंबर को बिशप राफेल चेनाथ ने सूप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की : सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को किसी यात्रा की अनुमति देने पर रोक लगाई
  • 5 सितंबर को पुलिस ने 453 निर्दोष हिंदुओं को गिरफ्तार किया
  • 6 सितंबर: हजारों साधु भुवनेश्वर में इकट्ठे हुए और गिरफ्तार हो गए

क्षेत्र में संघर्ष के पीछे के मुद्दे :

  • आरक्षण: पानो जनजाति के सदस्यों को बल, प्रलोभन और धोखाधड़ी के माध्यम से ईसाइयत में परिवर्तित कर दिया गया है और कन्वर्टेड लोगों को आरक्षण का लाभ देने के लिए एक अभियान चल रहा था।
  • भूमि पर अवैध कब्जे : चर्चों ने क्षेत्र के अन्य गैर-परिवर्तित अनुसूचित जनजातियों से संबंधित भूमि के बड़े भूभाग को अपने नियंत्रण में ले लिया था।
  • सांस्कृतिक हमले: जनजातीय समाज को कन्वर्ट कराने के लिए ईसाई मिशनरी जनजातीय समाज की संस्कृति और विश्वासों को बदलने के प्रयास कर रहे थे। स्वामीजी उनकी गतिविधियों में बाधक सिद्ध हो रहे थे।
  • उड़ीसा धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम 1967 को लागू करने में प्रशासन की विफलता
  • गोहत्या निवारण अधिनियम लागू करने में प्रशासन की विफलता
    इस मुद्दे में यूपीए सरकार की भूमिका
  •  यूपीए सरकार द्वारा स्वामीजी की हत्या पर कोई बयान नहीं।
  • तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह और कांग्रेस पार्टी ने कंधमाल के ईसाइयों के पक्ष में वक्तव्य जारी किया
  • केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने ईसाई बस्तियों और राहत शिविरों का दौरा किया लेकिन आश्रम जाने की आवश्यकता नहीं समझी।
  • केन्द्र और राज्य सरकार दोनों ने घटनाओं के बाद कथित रूप से प्रभावित ईसाई परिवारों को वित्तीय सहायता प्रदान की जबकि हिंदुओं को फूटी कौड़ी भी नहीं दी गई।
  • दोषियों (ईसाई उग्रवादियों) की गिरफ्तारी और उनके द्वारा रखे गए अवैध हथियारों की जांच तथा उन्हें अपने नियंत्रण में लेने के लिए सरकार या प्रशासन द्वारा कोई प्रयास नहीं किए गए।
  • स्वामी जी की हत्या में ईसाई गैर सरकारी संगठनों की भूमिकाओं की जांच नहीं की गई।
  • सरकार का रवैया ईसाइयों की रक्षा और हिंदुओं को प्रताड़ित करने का था। सैकड़ों हिंदुओं को गिरफ्तार किया गया लेकिन बहुत कम ईसाइयों से पूछताछ की गई।
  • चर्चों और अन्य ईसाई संगठनों को राहत के रूप में लाखों रुपये प्रदान किए गए थे, भले ही उस अवधि के दौरान उन्हें कोई नुकसान न पहुंचा हो।
  • ईसाई उग्रवादियों ने 23 अगस्त 2008 को रात 8 बजे श्री कृष्ण जन्मोत्सव के अवसर पर स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती, भक्तिमयी माता, अमृतानंद बाबा, किशोर बाबा और कन्याश्रम के संरक्षक पुरुबग्रंथी की निर्ममता पूर्वक हत्या कर दी थी। 5 लोगों की इस वीभत्स घटना को ईसाई उग्रवादियों द्वारा कन्याश्रम में घुसकर का एक बड़े दुस्साहस के साथ सम्पन्न किया गया था।
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