केवल भाषा नहीं मॉं भारती के शृंगार की बिंदी हूं, मैं हिंदी हूं
वीरमाराम पटेल
केवल भाषा नहीं
मॉं भारती के शृंगार की बिंदी हूं,
पूरे देश को एक सूत्र में बांधने वाली
मैं हिंदी हूं।
मैं सम्पर्क, राष्ट्र और राजभाषा हूँ,
सांस्कृतिक मूल्यों की एक आशा हूँ।
हों अगर अटल अभिलाषाएँ तो
हर देश में भारत की परिभाषा हूँ।।
तुलसी के मानस में अवधी कहलाती हूँ,
बन ब्रज सुर के स्वरों में रम जाती हूँ।
मीरा के निष्काम प्रेम से हूँ आह्लादित,
स्वतंत्रता की वेदी पर झाँसी बन जाती हूँ।।
भाषा नहीं, मैं सभ्यता का उपहार हूँ,
विश्व में, मैं शांति का व्यवहार हूँ।
मीठे स्वरों का मैं कोकिल कलरव हूँ,
साहित्य की कसौटी में मैं ही समाहार हूँ।।
नहीं हूं मैं सत्ता और नारों के गलियारों में,
न रहती हूँ मैं विद्यालय की उन दीवारों में।
स्पर्श से ही झंकृत हो जाए जो अंतर्मन,
मैं रहती हूँ, जगत के उन संस्कारों में।।
हिंदी मात्र भाषा नहीं मातृ भाषा है,
यह सिर्फ शब्दों का संयोजन नहीं समरसता की परिभाषा है