हुनरबाज

आपको जानकर हैरानी होगी कि पत्थरबाजी की कला किसी पाठशाला में नहीं बल्कि उन्मादी फैक्ट्रियों में सिखाई जाती है। पाठशाला में तो सिर्फ नीति की शिक्षा दी जाती है, परंतु फैक्ट्रियों में सिर्फ और सिर्फ अनीति के कार्य होते हैं। लड़ाई के हथियार और लड़ाके हमेशा फैक्ट्रियों में ही तैयार किए जाते हैं।

शुभम वैष्णव

मैंने और आप सब ने समाज में कई हुनरबाज देखे हैं। कोई खेल में निपुण होता है तो कोई पढ़ाई में मेधावी, कोई नृत्य में पारंगत होता है तो कोई अभिनय में कुशल होता है। सबकी अलग-अलग रुचि होती है। इसी कारण हुनरबाजी भी रूचि के अनुरूप ही होती है।

परंतु कई लोगों में पत्थरबाजी का हुनर सबसे हटकर होता है। ये लोग हाथ में पत्थर लेकर सैनिकों पुलिसकर्मियों और स्वास्थ्य कर्मियों पर फेंकते हैं, ऐसे लोगों का हुनर लड़ाकू किस्म का होता है।

वैसे तो पाठशाला में क ख ग घ, नृत्य, अभिनय एवं खेलना सिखाया जाता है लेकिन आप सबके मन में एक ख्याल जरूर आता होगा कि- उन्मादी पत्थरबाजी की कला किस पाठशाला में सिखाई जाती है? आपको जानकर हैरानी होगी कि पत्थरबाजी की कला किसी पाठशाला में नहीं बल्कि उन्मादी फैक्ट्रियों में सिखाई जाती है। पाठशाला में तो सिर्फ नीति की शिक्षा दी जाती है परंतु फैक्ट्रियों में सिर्फ और सिर्फ अनीति के कार्य होते हैं। लड़ाई के हथियार और लड़ाके हमेशा फैक्ट्रियों में ही तैयार किए जाते हैं और आज के दौर में ये फैक्ट्रियां ऐसे ही पत्थरबाज निर्मित करने में लगी हुई हैं।

वैसे व्यक्ति में हुनर एकल स्वरूप में विद्यमान होता है परंतु पत्थरबाजी का कौशल सामूहिक स्वरूप में मौजूद रहता है। हुनरबाज व्यक्ति तो अपनी कला से लोगों का मनोरंजन करता है परंतु पत्थरबाज पत्थरबाजी से लोगों पर प्राणघातक वार करता है। हुनरबाज व्यक्ति समाज को एक नया मुकाम प्रदान करता है परंतु पत्थरबाज व्यक्ति समाज की शांति व समरसता को भंग करता है।

अगर सोच समझ का गणित लगाया जाए तो यही निष्कर्ष निकलता है कि- हुनरबाजों का सम्मान किया जाना चाहिए परंतु पत्थरबाजों को कारावास पहुंचाया जाना चाहिए।

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