हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंदहॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के एक राजपूत परिवार में हुआ। इनकी माता का नाम शारदा सिंह और पिता का नाम समेश्वर सिंह था, जो ब्रिटिश इंडिया आर्मी में एक सूबेदार के रूप में कार्यरत थे, साथ ही हॉकी भी खेला करते थे। इनके बड़े भाई रूप सिंह भी हॉकी खिलाड़ी थे।

एक समय के बाद ध्यानचंद ने भी भारतीय ब्रिटिश सेना ज्वाइन कर ली और हॉकी खेलने लगे। हालांकि उन्हें कुश्ती भी पसंद थी। ध्यानचंद ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से पढ़ाई की और 1932 में विक्टोरिया कॉलेज, ग्वालियर से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। भारत की स्वाधीनता के बाद मेजर ध्यानचंद को भारतीय सेना में आपातकालीन कमीशन मिल गया, लेकिन स्थाई कमीशन नही मिल पाया। 34 वर्षों की देश की सेवा के बाद ध्यानचंद 29 अगस्त 1956 को भारतीय सेना से लेफ्टिनेंट के रूप में सेवानिवृत्त हुए। भारत सरकार ने उन्हें भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया।

सेवानिवृति के बाद वो माउंट आबू, राजस्थान और राष्ट्रीय खेल संस्थान, पटियाला में मुख्य कोच के पद पर रहे और अपने जीवन के अंतिम क्षण उन्होंने झांसी, उत्तर प्रदेश में बिताए।

मेजर ध्यानचंद की मृत्यु 3 दिसंबर 1979 को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली में लीवर कैंसर से हुई। उनका अंतिम संस्कार झांसी के हीरोज मैदान में किया गया।

मेजर ध्यानचन्द को द विजार्ड (The wizard of Hockey) ऑफ हॉकी की उपाधि जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने दी थी। हॉकी स्टिक और गेंद पर मजबूत पकड़ के कारण उन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाता है। मेजर ध्यानचंद हॉकी के कुशल खिलाड़ी थे। जब वो खेलते तो गेंद उनकी हॉकी स्टिक से चिपक जाती थी और लोगों को संदेह होता था कि उन्होंने अपनी स्टिक में कुछ लगा रखा है। उनकी इसी कुशलता के कारण लोग उन्हें हॉकी का जादूगर कहते थे।

जब मेजर ध्यानचंद भारत के लिए हॉकी का स्वर्ण युग लेकर आए, उस समय भारत स्वाधीनता की लड़ाई लड़ रहा था। तब भी ध्यानचंद ने अपनी टीम के साथ 3 ओलंपिक गोल्ड मेडल जीते।

उनकी उपलब्धियां

1928 एम्सटर्डम ओलंपिक स्वर्ण पदक
1932 लॉस एंजिल्स ओलंपिक स्वर्ण पदक
1936 बर्लिन ओलंपिक गोल्ड मेडल

मेजर ध्यानचंद ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 1926 से लेकर 1949 तक 185 मैचों में 570 गोल किए। अप्रैल 1949 ई. को प्रथम कोटि की हॉकी से मेजर ध्यानचन्द ने संन्यास ले लिया।अंतरराष्ट्रीय करियर से बाहर उन्होंने अपने घरेलू मैचों में भी 1000 से अधिक गोल किए। अपने जीवनकाल में अभूतपूर्व उपलब्धियां प्राप्त करने के बाद भी इस महान व्यक्त्वि ने अपनी आत्मकथा गोल में लिखा है। कि  “आपको मालूम होना चाहिए कि मैं बहुत साधारण आदमी हूँ।”

महत्वपूर्ण तथ्य 
– BBC ने अमेरिकी बॉक्सर मुहम्मद अली की तुलना मेजर ध्यानचंद से की थी।
– भारत सरकार ने खेल रत्न पुरस्कार का नाम मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार रखा है।
– 2014 में मेजर ध्यानचंद का नाम भी भारत रत्न पुरस्कार के लिए नामित था ।
– ध्यानचांद एकमात्र ऐसे हॉकी खिलाड़ी हैं, जिनके नाम पर भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया था। मेजर ध्यानचंद (1906 से 1979) डाक टिकट
– मेरठ में मेजर ध्यानचंद खेल विश्वविद्यालय का शिलान्यास किया गया ।
– लंदन में इंडियन जिमखाना क्लब में एक हॉकी पिच का नाम मेजर ध्यानचंद रखा गया है।
– वियना देश में मेजर ध्यानचंद की हॉकी स्टिक लिए एक मूर्ति लगाई गई है।

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