63 हजार स्कूलों में 70 हजार कमरे कम, 24 हजार क्लासरूमों में कबाड़ भरा; बच्चे सड़कों पर पढ़ रहे

जयपुर (आनंद चौधरी/विनोद मित्तल). प्रदेश के 63 हजार सरकारी स्कूलों में 70 हजार से ज्यादा कमरों की कमी है। लेकिन फिर भी 24 हजार कमरे ऐसे हैं, जिनमें कबाड़ भरा है। इनमें से अधिकांश स्कूलों में कक्षाएं बाहर खुले में चल रही हैं। इन स्कूलों में साइंस-कम्प्यूटर लैब का ताला चाहे साल में तीन-चार बार भी नहीं खुलता, लेकिन कबाड़ से भरे कमरों में टूटे सामान का ढेर रोज बढ़ता जा रहा है। कबाड़ में सिर्फ टूटा फर्नीचर ही नहीं, बल्कि लाखों की किताबें व अन्य सामान भी है। कबाड़ से छुटकारा पाने की सरकारी प्रक्रिया बोझल और पेचीदा है। इसके कारण संस्था प्रधान चाहकर भी कबाड़ रूम खाली नहीं करा सकते।


क्लास रूम की चिंता क्यों नहीं?
मंत्री-विधायक ऑफिस और सरकारी निवास की साज-सज्जा पर हर साल करोड़ों रु. खर्च कर देते हैं, लेकिन सवाल उठता है कि उन्हें अपने ही विधानसभा क्षेत्रों के स्कूलों की बदहाली आखिर क्यों नहीं दिखती? जर्जर भवन, टूटे खिड़की-दरवाजे, उखड़ा फर्श… भास्कर ऑडिट में बदहाली की ऐसी ही तस्वीरें नजर आईं। ये हालात तब हैं, जब 2018-19 में ही 121 अमीरों ने 150 करोड़ रुपए शिक्षा के लिए दान दिए हैं। पैसे की व्यवस्था होने के बावजूद भी शिक्षा का चेहरा धूल से सना क्यों है? सवाल फिर वही- प्राथमिक सरकारी शिक्षा आखिर सरकार की प्राथमिकता में कब आएगी?

  • धौलपुर की बाड़ी तहसील के राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय अब्दुलपुर में 10 कमरों में 18 कक्षाएं चल रही हैं। यहां सर्दी, गर्मी बरसात हर वक्त तीन-चार कक्षाएं बाहर खुले मैदान में चलती हैं। इतना ही नहीं कई कमरों में दो-दो कक्षाएं एकसाथ चलती हैं। दो कमरों में यहां स्कूल का कबाड़ भरा है।
  • जयपुर के बस्सी में राजकीय आदर्श उमा विद्यालय पड़ासौली के कबाड़ रूम में लाखों रुपए की किताबें दीमक खा रही है। पिछले 5 साल में पाठ्यक्रम बदलता है, पुरानी किताबें कबाड़ रूम के हवाले कर दी जाती हैं। भरतपुर के नदबई इलाके के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में 10 में से सिर्फ दो ही कमरे बैठने लायक हैं। बच्चे सड़क पर पढ़ रहे हैं।
  • चिंताजनक: बच्चों की जान खतरे में है, क्योंकि बरसात में टपकती छतें, जमीन में धंसे फर्श, बड़ी दरारों वाली दीवारें, छत-दीवारों का उखड़ता प्लास्टर साफ दिखता है। यह राजस्थान में सरकारी स्कूलों का चेहरा है।
  • अफसोसजनक: प्रदेश के 63 हजार सरकारी स्कूलों में 20 हजार से ज्यादा स्कूलों में 70 हजार के करीब कमरे कम हैं। जो हैं उनमें भी 24 हजार से ज्यादा कमरों की हालत बेहद खराब है।
  • क्रोधजनक: स्कूलों में ऐसा घटिया निर्माण। हर साल स्कूलों में 20 से 25 हजार कमरे बैठने लायक नहीं रह जाते। आज की स्थिति में जर्जर होने के कारण 15 हजार कमरों पर ताला बंद है।

10 हजार कमरों में कबाड़ व्यवस्था

संभागकमरों में कबाड़
जयपुर4047
अजमेर3853
भरतपुर2714
कोटा2585
उदयपुर4211
जोधपुर4316
बीकानेर2445

प्रदेश के स्कूलों में कबाड़ रूम बने 24 हजार कमरों की कीमत 240 करोड़ रु. आंकी गई है।

भास्कर कॉल: ऐसी खुली पड़ताल में मंत्री-सरकार का पक्ष नहीं छापेंगे

सरकारी स्कूलों की बदहाली पर भास्कर ने पड़ताल बदलाव के इरादे से की है। पड़ताल का हर तथ्य सरकार और शिक्षा विभाग के आंकड़ों में भी है। मंत्री-अफसर और शासन प्रमुख कोई अनजान नहीं। जब वे घोषणाओं से अलग सुधार के बड़े फैसले करेंगे, तब इसी ताकत से छापेंगे।

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