भाग पांच – माई एहड़ा पूत जण, जेहड़ा राणा प्रताप…
अनमोल
वर्ष 1596 का अंतिम समय चल रहा था। राणा प्रताप शिकार खेलने गए थे। उस समय उनका सामना एक शेर से हुआ। सामना करते हुए उनकी मांसपेशियों में खिंचाव आ गया, जिससे प्रताप अस्वस्थ हो गए। अस्वस्थता बढ़ने के कारण संवत् 1653 माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उनकी प्राण ज्योति परम ज्योति में विलीन हो गई। इस प्रकार उनका जीवन लंबा तो नहीं रहा, परंतु सार्थकता के साथ जगत के लिए प्रेरणा बन गया।
चावण्ड के पास बण्डोली ग्राम में राणा के पुत्र अमरसिंह ने उनकी अंत्येष्टि सम्पन्न की। जहां प्रताप पंचतत्व में विलीन हुए उस स्थान को आज केजड़ का तालाब भी कहते हैं। वहां पुरानी छतरी बनी हुई है। छतरी तालाब के बीच में स्थित होने के कारण वर्षा काल में यहां तक पहुंचना असंभव था। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत के मुख्यमंत्रित्व काल में 400 वर्ष पश्चात, सड़क से छतरी तक पहुंचने हेतु पुल एवं छतरी के चारों ओर चबूतरे का निर्माण हुआ। पुल का उद्घाटन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के कर कमलों द्वारा 1996 में सम्पन्न हुआ, जिससे आज वर्तमान समाधि स्थल तक जाकर नमन करना सहज है।
महाराणा प्रताप के तपस्वी, वीरव्रती व समरस व्यक्तित्व एवं कृतित्व ने हिन्दूपन के व्यवहार व आचरण का डंका न केवल मेवाड़ अपितु सम्पूर्ण विश्व में गुंजाया। तभी उनके लिए लिखा गया है –
माई एहड़ा पूत जण
जेहड़ा राणा प्रताप।
अकबर सूतो ओझ के
जाण सिरहाणे सांप।।
समाप्त