मांगलियावास का कल्पवृक्ष मेला

मांगलियावास का कल्पवृक्ष मेला

गुड्डी खंडेलवाल

मांगलियावास का कल्पवृक्ष मेला

भारतीय संस्कृति प्रकृति के अत्यंत निकट है। यहॉं पेड़ पौधों, नदियों, समुद्र, चांद, सूरज सभी में देवताओं का वास माना गया है। और वर्ष भर में देखें तो किसी न किसी रूप में उत्सव मनाते हुए इनकी पूजा होती है। पेड़ पौधों के लिए हरियाली अमावस्या है तो करवा चौथ पर चंद्रमा एवं मकर संक्रांति पर सूर्य की पूजा होती है। यहॉं हम बात करेंगे हरियाली अमावस्या और उस दिन लगने वाले कल्पवृक्ष मेले की।

श्रावण मास की कृष्ण पक्ष अमावस्या को हरियाली अमावस्या के नाम से जाना जाता है। हिन्दू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व बताया गया है। हरियाली अमावस्या नाम से ही स्पष्ट है कि यह दिन हरियाली को समर्पित है। हरियाली के आगमन के रूप में इसे मनाया जाता है। इस अमावस्या का संबंध प्रकृति पितृ और भगवान शंकर से है। पर्यावरण को संतुलित और शुद्ध बनाए रखने के उद्धेश्य से ही अनेक वर्षाें से हरियाली अमावस्या का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इसका मुख्य लक्ष्य प्रदूषण को समाप्त कर पेड़ों की संख्या में अधिक से अधिक वृद्धि करना है।

यह वृक्षों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने का दिन है। वहीं धार्मिक दृष्टिकोण से श्रावणी अमावस्या पर पितरों की शांति के पिंडदान और दान -धर्म करने का महत्व है। ब्रह्माजी की नगरी अजमेर में कुछ दूरी पर स्थित है मांगलियावास गांव। हरियाली अमावस्या के दिन इसी गांव में मेला लगता है। देशभर में विख्यात है मांगलियावास का कल्पवृक्ष मेला। यहां की मान्यता है कि कल्पवृक्ष से सच्चे मन से जो मांगा जाता है वह मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।

पौराणिक धर्म ग्रन्थों एवं हिन्दू मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नो में से एक कल्पवृक्ष भी था। कल्पवृक्ष के विषय में यह भी कहा जाता है कि इसका अंत कल्पान्त तक नहीं होता है। मांगलियावास के नर-नारी कल्पवृक्ष विश्वविख्यात हैं। यहां श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है। यह मेला 300 साल से मांगलियावास में लग रहा है।

मान्यतानुसार साधु मंगलसिंह अपने शिष्य फतेहसिंह के साथ यहॉं पर एक डेरे में थे। तभी उन्होंने एक जति को आकाश मार्ग से कल्पवृक्ष को ले जाते देखा तो उसे अपनी शक्ति से भूमि पर उतरवा दिया। कालान्तर में साधु मंगलसिंह के नाम पर इस स्थान का नाम मांगलियावास पड़ गया। मेले में ब्यावर, अजमेर, विजयनगर, किशनगढ़, पुष्कर, केकड़ी, मसूदा आदि स्थानों के लोग बड़ी संख्या में मेले में शामिल होते हैं। राजस्थान के अतिरिक्त अन्य राज्यों के लोगों के लिए भी यह एक बड़ा श्रद्धा स्थल है।

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