छत्तीसगढ़ में पादरी को बनाया अनुसूचित जनजाति आयोग का सदस्य, हुआ विरोध

छत्तीसगढ़ में पादरी को बनाया अनुसूचित जनजाति आयोग का सदस्य, हुआ विरोध

छत्तीसगढ़ में पादरी को बनाया अनुसूचित जनजाति आयोग का सदस्य, हुआ विरोध

छत्तीसगढ़ में एक ऐसे व्यक्ति को अनुसूचित जनजाति आयोग का सदस्य बनाया गया है , जो अनुसूचित जनजाति समाज से नहीं आता, न ही उसकी हिन्दू धर्म में आस्था है। वह व्यक्ति जनजाति समाज के मूल रीति रिवाज, तीज त्योहार, पूजा पद्धति, देवी-देवता, रहन-सहन, धर्म-संस्कृति को छोड़कर ईसाई संस्कृति को अपना चुका है और ईसाई धर्म के प्रचारक के रूप में कार्य कर रहा है। क्या ऐसे व्यक्ति को अनुसूचित जनजाति विषय पर निर्णय करने वाले पद पर बैठाना छत्तीसगढ़ के जनजाति समाज के साथ अन्याय नहीं है? बात ईसाई धर्म प्रचारक पादरी अमृत लाल टोप्पो की हो रही है।

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ अनुसूचित जनजाति आयोग में ईसाई धर्म प्रचारक पादरी अमृत लाल टोप्पो को सदस्य बनाए जाने से वहां के जनजाति समाज में रोष है। टोप्पो को 15 जुलाई, 2021 को छत्तीसगढ़ अनुसूचित जनजाति आयोग में नियुक्ति दी गई। वह सेंट जेवियर्स, अंबिकापुर में रहता है। इस नियुक्ति से आक्रोशित जनजाति गौरव समाज सरगुजा ने अम्बिकापुर में विरोध प्रदर्शन कर टोप्पो को हटाने की मांग करते हुए राज्यपाल, मुख्यमंत्री, आयोग के अध्यक्ष के नाम कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा और कहा कि यह समाज के हितों तथा भावनाओं के विरुद्ध है। अमृत लाल टोप्पो, ईसाई धर्म का अनुयायी है। वह छत्तीसगढ़ के जनजाति समाज के मूल धर्म का हिस्सा नहीं है, इसलिए आयोग के सदस्य के रूप में उसकी नियुक्ति छत्तीसगढ़ के जनजाति समाज के साथ अन्याय है। छत्तीसगढ़ में कन्वर्जन के मामले पहले ही बढ़ रहे हैं, इस तरह के लोगों की नियुक्ति से जनजाति समाज के साथ न्याय होने की सम्भावना कम ही है। पादरी अमृत लाल टोप्पो की दुर्ग संभाग के जिलों में कन्वर्जन गतिविधियों में लिप्तता किसी से छिपी नहीं है।

समाज द्वारा दिए गए ज्ञापन में सुकमा के पुलिस अधीक्षक के पत्र का भी जिक्र किया गया, जिसमें पुलिस अधीक्षक, सुकमा द्वारा निर्देश पत्र जारी कर अपने समस्त थानेदारों को निर्देशित किया था कि कन्वर्जन के मामलों पर गंभीर नजर रखें क्योंकि कन्वर्टेड और मूल जनजाति समाज के बीच तनाव, मतभेद और विवाद की स्थिति पूरे बस्तर क्षेत्र में देखने को मिल रही है।

कन्वर्जन का मुद्दा प्रदेश में नया नहीं है। यहॉं का जनजाति समाज हमेशा से ईसाई मिशनरियों का निशाना रहा है। ऐसे में एक पादरी की अनुसूचित जनजाति आयोग में नियुक्ति प्रश्न तो खड़े करती है। देखते हैं जनजाति समाज के विरोध के सामने कांग्रेस सरकार झुकती है या उसकी आवाज का दमन करती है।

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