देश में दुष्कर्मों की राजधानी बना राजस्थान : प्रतिदिन 17 से अधिक मामले दर्ज
जयपुर। इसे मरती हुई मानवता के रूप में देखें, तकनीक और नशे के दुष्प्रभावों के रूप में परिभाषित करें या कोई और कारण समझें, लेकिन सच्चाई कड़वी है, राजस्थान देश में दुष्कर्मों की राजधानी बनता जा रहा है।
सरकार के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2021 में प्रदेश में दुष्कर्म के 6337 मामले दर्ज हुए हैं। वर्ष के 365 दिनों का इस संख्या में भाग दिया जाए तो पता चलता है कि पिछले वर्ष प्रदेश में प्रतिदिन दुष्कर्म के औसतन 17 मामले दर्ज हुए हैं। हालांकि पुलिस विभाग का दावा यह भी है कि इसमें से 2376 मामले झूठे पाए गए। इस संख्या को घटा भी दिया जाए तो 3961 मामले तो सही पाए ही गए हैं यानी औसतन दस बलात्कार तो प्रदेश में हुए ही हैं।
सरकार का दावा है कि इतने मामले इसलिए सामने आ रहे हैं क्योंकि हमने एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य कर दिया है और जब एफआईआर अधिक दर्ज होंगी तो अपराध का आंकड़ा तो बढ़ा हुआ दिखेगा ही, लेकिन इस तर्क को माना जाए तो यह भी तो साबित होता है कि अपराध लगातार हो रहे हैं, तभी तो लोग एफआईआर कराने थाने जा रहे हैं। बिना कारण तो कोई पुलिस के पचड़े में पड़ता नहीं है।
यहॉं प्रश्न संख्या का भी नहीं है, क्योंकि इसे लेकर तो कई तरह के दावे-प्रतिदावे हो सकते हैं, प्रश्न है अपराधों और उनकी गम्भीरता का। दुष्कर्म के मामलों में जिस तरह की पैशाचिकता सामने आ रही है, वह रोंगटे खड़े कर रही है।
हाल में अलवर में मूक-बधिर बालिका के साथ जो घटना हुई है, उसमें सरकार की मेडिकल रिपोर्ट का दावा कुछ भी हो, लेकिन परिस्थितिजन्य साक्ष्य अलग ही कहानी कह रहे हैं और यह मामला दिल्ली में हुए निर्भया कांड जैसा ही दिखता है। इससे पहले नए साल की पार्टी में 17 साल की किशारी दुष्कर्म की शिकार हुई। हलैना भरतपुर में 14 साल की बच्ची का बीच रास्ते से अपहरण कर लिया गया। एक और बच्ची हरियाणा के मेवात इलाके नूहं से बरामद हुई। और तो और वर्ष 2022 की शुरुआत है, मात्र 15 दिन गुजरे हैं, राजस्थान में दुष्कर्म के 15 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं।
जहां तक कानून की बात है तो उनकी कोई कमी नहीं है। बच्चियों की सुरक्षा के लिए पॉक्सो जैसा कानून है जो कहता है कि गलत नीयत से बच्चे को छूना भी अपराध है। वहीं महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई तरह की धाराएं हैं। दुष्कर्म के मामलों में तो अब मृत्युदण्ड तक का प्रावधान है और कई मामलों में पुलिस और कोर्ट ने फुर्ती भी दिखाई है, लेकिन प्रश्न फिर वही है कि इस सबके बावजूद प्रतिदिन दुष्कर्म के दस मामले दर्ज क्यों हो रहे हैं????
उत्तर शायद यही है कि कुत्सित मानसिकता के लोगों में कानून का डर नहीं है। वे यह मान कर चलते हैं कि कुछ ना कुछ सैटिंग तो हो ही जाएगी। रसूख वाला अपने रसूख के दम पर बच जाता है। कुछ को मजहबी वोट बैंक से होने का लाभ मिल जाता है और कुछ जो पकड़ आ भी जाते हैं वे न्यायिक प्रक्रिया के लम्बी होने का फायदा उठा कर जमानत पर छूट जाते हैं। ऐसे में डर हो भी तो कैसे?
अब अलवर वाले मामले को ही ले लीजिए। राजनीति ने इस मामले को उलझाने का ही काम किया है। जिनका काम है सही बात को सामने लाना, दोषियों को सजा और पीड़िता को न्याय दिलाना, वे ही लोगों को गुमराह कर रहे हैं। जिम्मेदारों के पहले के और अभी के ताजा बयानों को देखें तो समझ ही नहीं आ रहा कि बच्ची के साथ आखिर हुआ क्या? यदि कोई दुर्घटना हुई तो चोट उसके निचले अंगों पर ही क्यों आई? पुलिस जो प्रथम दृष्टया स्वयं यह मान रही थी कि बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ है, वह अब मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर यह कह रही है कि दुष्कर्म नहीं हुआ, तो फिर प्रश्न यह है कि आखिर बच्ची के साथ क्या हुआ और पुलिस किस अपराध की जांच कर रही है?
इन कड़वे प्रश्नों के उत्तर तो सच्चाई से मिलने ही चाहिए। ताजा परिस्थितियों में लगता यही है कि स्वयं को बचाने के लिए प्रशासन तर्क चाहे कुछ भी और कैसा भी दे, दामन पर दाग तो हैं और इन्हें छुड़ाने के लिए प्रयोग किए जाने वाले डिटर्जेंट में वैसी शक्ति नहीं है जैसी चाहिए।