26 दिसंबर: जन्म जयंती वीर ऊधम सिंह

“जेलर ने पूछा- कोई अंतिम इच्छा? उत्तर- अंतिम इच्छा उस हत्यारे को मारने की थी, वो पूरी हो गई”

पाथेय डेस्क

आज जिस अमर हुतात्मा की जन्मजयंती है उस वीर के महानतम कार्य उस गाने को गाली के समान सिद्ध करते हैं जो कईयों को बचपन से रटाया जाता है. जिस गाने में आजादी का हकदार बिना खड्ग बिना ढाल को बता कर केवल सूत, कपास को ही मान लिया गया. वो थे साहसी वीर उधम सिंह जी। वही वीर जिन्होंने भारत माता के अपमान का बदला लेने के लिए अपनी संकल्प की अग्नि को 20 साल तक दबाये रखा और जलियावाला कांड का बदला लिया. ऐसे ही पंजाब के वीर उधम सिंह को आज उनके जन्मदिवस पर हम नमन करते है. पंजाब में संगरूर जिले के सुनाम गांव में 26 दिसंबर 1899 में जन्मे ऊधम सिंह ने जलियांवाला बाग में अंग्रेजों द्वारा किए गए कत्लेआम का बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी जिसे उन्होंने गोरों की मांद में घुसकर 21 साल बाद पूरा कर दिखाया। पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल-ओ-डायर के आदेश पर ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में शांति के साथ सभा कर रहे सैकड़ों भारतीयों को अंधाधुंध फायरिंग करा मौत के घाट उतार दिया था। क्रांतिकारियों पर कई पुस्तकें लिख चुके जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर चमन लाल के अनुसार जलियांवाला बाग की इस घटना ने ऊधम सिंह के मन पर गहरा असर डाला था और इसीलिए उन्होंने इसका बदला लेने की ठान ली थी। ऊधम सिंह अनाथ थे और अनाथालय में रहते थे, लेकिन फिर भी जीवन की प्रतिकूलताएं उनके इरादों से उन्हें डिगा नहीं पाई।

उन्होंने 1919 में अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर जंग-ए-आजादी के मैदान में कूद पड़े। भारत के महान क्रांतिकारियों में ऊधम सिंह का विशेष स्थान है। उन्होंने जलियांवाला बाग नरसंहार के दोषी माइकल ओडायर को गोली से उड़ा दिया था। ऊधम सिंह के मन पर जलियांवाला बाग की घटना ने इतना गहरा प्रभाव डाला था कि उन्होंने बाग की मिट्टी हाथ में लेकर ओडायर को मारने की सौगंध खाई थी।

अपनी इसी प्रतिज्ञा को पूरा करने के मकसद से वह 1934 में लंदन पहुंच गए और सही वक्त का इंतजार करने लगे। ऊधम को जिस वक्त का इंतजार था वह उन्हें 13 मार्च 1940 को उस समय मिला जब माइकल ओडायर लंदन के कॉक्सटन हाल में एक सेमिनार में शामिल होने गया। भारत के इस सपूत ने एक मोटी किताब के पन्नों को रिवॉल्वर के आकार के रूप में काटा और उसमें अपनी रिवॉल्वर छिपाकर हाल के भीतर घुसने में कामयाब हो गए। चमन लाल के अनुसार मोर्चा संभालकर बैठे ऊधम सिंह ने सभा के अंत में ओडायर की ओर गोलियां दागनी शुरू कर दीं। सैकड़ों भारतीयों के कत्ल के गुनाहगार इस गोरे को दो गोलियां लगीं और वह वहीं ढेर हो गया।

अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के बाद इस महान क्रांतिकारी ने समर्पण कर दिया। उन पर मुकदमा चला और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। 31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में यह वीर हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गया। अमर बलिदानी उधम सिंह के माता पिता उनको अनाथ छोड़कर बचपन में चल बसे थे, जब वह 8 वर्ष के थे। वीरता, शौर्य के प्रतीक महा बलिदानी और सदा सदा के लिए अमर हो गए उधम सिंह जी को आज उनके जन्मदिवस पर पाथेय कण का बारम्बार नमन, वन्दन और अभिनंदन है।

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