मुफ़्त योजनाएं मात्र मन का वहम

मुफ़्त योजनाएं मात्र मन का वहम

डॉ. नीलम यादव

मुफ़्त योजनाएं मात्र मन का वहममुफ़्त योजनाएं मात्र मन का वहम

देश के राजनैतिक दलों द्वारा मुफ़्त में रेवड़ियां बाँटने की राजनीति जोरों पर है। मतदाताओं को लुभाने के लिए दी जाने वाली मुफ़्त योजनाएं मात्र मन का वहम हैं। वे देश की अर्थव्यवस्था के लिए घातक हैं। देश की GDP का एक भाग मुफ़्त योजनाओं पर ख़र्च किया जाएगा तो इसका भार टैक्स पर पड़ेगा और टैक्स हर हाल में विभिन्न माध्यमों से जनता को ही देना पड़ता है। क्या मुफ़्त योजनाएं बाँटने वाले इन राजनैतिक दलों ने कभी बताया है कि यह पैसा कहाँ से आता है? इनके पास मुफ़्त रेवड़ियां बाँटने के दो ही विकल्प होते हैं या तो मुफ़्त योजना हेतु टैक्स बढ़ाएं या विकास कार्यों पर ख़र्च किए जाने वाले बजट में कटौती कर मुफ़्त योजनाएं बाँटे। मतदाता को समझना होगा इन दोनों ही विकल्प के माध्यम से हानि सिर्फ़ और सिर्फ़ आम जनता की होती है।

शिक्षा और स्वास्थ्य हमारी मूलभूत आवश्यकताएं हैं, जो जन कल्याणकारी योजनाओं का हिस्सा हैं। लेकिन मुफ़्त बिजली, पानी, किराया जैसी योजनाएं आज मतदाता को लुभावनी लगेंगी और मतदाता उन्हें व्यर्थ ख़र्च करेगा परिणामस्वरूप वे योजनाएँ आने वाले समय में देश के लिए ख़तरे के रूप में उभर कर सामने आएगी।

राज्यों के कर्ज़ पर हम नज़र डालें तो वर्ष 2022-23 में राजस्थान GDP के मुक़ाबले 39•8 प्रतिशत कर्ज में डूबा हुआ है। इसी स्थिति में पंजाब GDP के मुक़ाबले 45•29 प्रतिशत, बिहार 38•7 प्रतिशत, केरल 37•2 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल 34•2 प्रतिशत कर्ज में डूबा हुआ है। पहले से ही कर्ज़ में डूबे राज्यों में मुफ़्त योजनाएं व रेवड़ियां विकास का बंटाधार कर इन राजनैतिक दलों का चुनावी अर्थशास्त्र आम जनता के साथ छलावा और देश की अर्थव्यवस्था को खोखला करने वाला सिस्टम है। आज देश के प्रत्येक नागरिक को इन्हें समझकर राष्ट्र हित में अपने कर्तव्यों को समझते हुए अपने दायित्वों का पालन करना चाहिए।

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