संघ संविधान की भावना के अनुरूप कार्य करता है

संघ संविधान की भावना के अनुरूप कार्य करता है

प्रो. मनीषा शर्मा

संघ संविधान की भावना के अनुरूप कार्य करता हैसंघ संविधान की भावना के अनुरूप कार्य करता है

हमारे देश का संविधान भले ही 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया था। परंतु 26 नवंबर, 1949 को ही देश की संविधान सभा ने वर्तमान संविधान को विधिवत रूप से अपना लिया था। इसीलिए 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। देश का संविधान 25 भागों, और अनुसूचियों 12 सूचियों में बंटा दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। मूल रूप से इसमें कुल 395 अनुच्छेद (22 भागों में विभाजित) और 8 अनुसूचियां थी, किंतु विभिन्न संशोधनों के परिणाम स्वरूप वर्तमान में कुल 470 अनुच्छेद (25 भागों में विभाजित) और 12 अनुसूचियां हैं।

संविधान सिर्फ एक कागजी पुलिंदा या दस्तावेज मात्र नहीं है, बल्कि हमारे देश के लोकतंत्र की आत्मा है। यह सिर्फ विधान ही नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति से जुड़ा दर्शन है। जिसके मूल में हमारी परंपरा है, जिसमें जाति, लिंग, धर्म के आधार पर मनुष्यों में कोई भेद नहीं किया गया है। भारतीय संविधान की आत्मा इसकी प्रस्तावना है जो संविधान का मूल्यवान अंग है। इसमें संविधान के मूल उद्देश्य को एवं लक्ष्य को स्पष्ट किया गया है। यह प्रस्तावना संविधान के मूल दर्शन को बताती है।

अमेरिका के प्रसिद्ध लेखक ग्रैंन विल ऑस्टिन ने भारत के संविधान के लिए कहा है कि “Perhaps the greatest political venture since that which originated at Philadelphia  in 1787”। 1787 में फिलाडेल्फिया में जिस पॉलिटिकल वेंचर की उत्पत्ति हुई संभवत: उसके बाद का महान पॉलिटिकल वेंचर भारत का संविधान है।

संविधान का मूल हमारी वह महान परंपरा है, जिसमें कहा गया है – “लोका: समस्ता सुखिनो भवंतु”। संविधान का मूल यही विचार है। सारे विश्व को “वसुधैव कुटुंबकम” के सूत्र में अपना परिवार मानने का संदेश देने वाला हमारा राष्ट्र ही है। इसी महान, उदात्त परंपरा व विचार का लिखित रूप भारत का संविधान है। यह देश के आदर्शों, उद्देश्यों व मूल्यों का प्रतिबिंब है। मराठी दैनिक लोकमत द्वारा आयोजित कार्यक्रम (06 फरवरी, 2022) में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा था कि “भारतीय संविधान में हिन्दुत्व दिखाई देता है। हिन्दुत्व भारतीय संस्कृति व रीति-रिवाजों की 5000 वर्ष पुरानी परंपरा से निकला है। सर्वसमावेशी और सर्वव्यापी सत्य, जिसे हम हिन्दुत्व कहते हैं, यह हमारी राष्ट्रीय पहचान है। हम धर्मनिरपेक्षता के बारे में बात करते हैं, लेकिन यह हमारे देश में वर्षों से और हमारे संविधान बनाने के पहले मौजूद है और यह हिन्दुत्व के कारण ही है। हिन्दुत्व हमारे देश में एकता का आधार है।”

वहीं जबलपुर में आयोजित प्रबुद्धजन गोष्ठी (19 नवंबर, 2022) में कहा था – “हिन्दू कोई धर्म नहीं, बल्कि जीने का एक तरीका है। यह एक परंपरा है। यह अलग-अलग पंथों, जातियों और क्षेत्रों द्वारा पोषित है। “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज भारतीय संविधान के आदर्शों को, मूल्यों को आत्मसात कर देश के विकास का, नवनिर्माण का पैरोकार बन अपना कार्य कर रहा है। यह अलग बात है कि वह राष्ट्रहित में किये जा रहे कार्यों का ढिंढोरा नहीं पीटता है। राष्ट्रबोध और राष्ट्रहित संगठन का ध्येय है। परंतु देश में वामपंथी मानसिकता का शिकार एक वर्ग हर एक अच्छे सार्थक, देश के विकास से जुड़े विचार को गलत तरीके से तोड़ मरोड़ कर निकालने की बीमारी से पीड़ित है। हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब संसद में प्रथम बार प्रवेश किया, तो उस समय संसद की चौखट पर अपना सिर रखा था। यह देश की सर्वोच्च लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था तथा भारतीय संविधान के प्रति उनका आदर और सम्मान का भाव था। हम प्रमुखतया अपना सिर किसी धार्मिक स्थल पर झुकाते हैं, और नरेंद्र मोदी ने संसद की चौखट पर झुकाया। प्रधानमंत्री संघ के ही स्वयंसेवक हैं, जो आज प्रधानमंत्री बन कर देश के विकास में संलग्न हैं। उन्होंने नेपाल की संसद में अपने भाषण में कहा था – “संविधान मात्र एक पुस्तक नहीं, यह आपके कल और आज को जोड़ने वाली कड़ी है। प्राचीन काल में जो काम वेद और उपनिषद लिखकर किया गया, यही काम आधुनिक पीढ़ी ने संविधान लिखकर किया है।”

वामपंथी विचारधारा के रक्षक जो देश की संस्कृति, इतिहास व रीति- रिवाज को आए दिन निशाना बनाते रहते हैं। संघ पर धार्मिक कट्टरता का लेबल लगाकर कुप्रचार करते हैं। यह वर्ग सदैव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति असहिष्णु रहा है। वक्तव्यों को अपनी सीमित कुबुद्धि और राजनीतिक चश्मे से देखकर अर्थ का अनर्थ कर, प्रसारित करते हैं। जबकि संघ की परंपरा उदारता, अनुशासन और मिलजुल कर रहने की है। यही संविधान का ध्येय है। संघ संविधान की भावना के अनुरूप कार्य करता है, जो सदैव देशभक्ति, राष्ट्रीयता, राष्ट्रीय गौरव, देश की संस्कृति और संस्कारों को प्रश्रय देता आया है।

संघ में सद्भाव का वातावरण होता है। संघ में कभी भी जाति को महत्व नहीं दिया गया। संघ वर्ग, जाति, पद  से ऊपर उठकर राष्ट्र निर्माण की गतिविधियों में संलग्न रहता है। समाज के संगठन व सामाजिक समरसता हेतु संघ स्थापना काल से ही कार्य कर रहा है। यहां किसी पंथ, धर्म की शिक्षा नहीं दी जाती, बल्कि राष्ट्र को सर्वोच्च मानने की शिक्षा व संस्कार दिया जाता है। मातृभूमि की प्रार्थना होती है। तृतीय सरसंघचालक बाला साहब देववरस ने सामाजिक समरसता के विषय को 1970 में उठाया था। अपने पूना व्याख्यान (8 मई, 1974 – विषय ‘सामाजिक समरसता और हिन्दुत्व’) में कहा था कि मुझे संघ के संस्थापक सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार जी के साथ काम करने का अवसर मिला। वे कहा करते थे कि “हमें ना तो अस्पृश्यता माननी है और ना ही उसका पालन करना है।”

लेकिन, इन सबसे परे देश में अपने नापाक इरादों से कार्य करने वाली वामपंथी मानसिकता के लोगों ने समय-समय पर संविधान के विरुद्ध जहर उगला। यह वामपंथी विचारधारा के लोग अपने छद्म स्वार्थों व गुप्त एजेंडे के साथ भारत की मूल आत्मा सभ्यता, संस्कृति को ठेस पहुंचाने में लगे रहते हैं।

जय हिन्द, जय भारत

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