सा प्रथमा संस्कृति विश्ववारा
पंकज जगन्नाथ जयस्वाल
भारतीय संस्कृति को दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृति माना जाता है। भारत एक हिंदू देश है और भारतीय संस्कृति हिंदू संस्कृति का प्रारूप है। यह संस्कृति इतनी पूजनीय है कि प्राचीन संस्कृत साहित्य में इसका उल्लेख ‘सा प्रथमा संस्कृति विश्ववारा’ के रूप में किया गया है यानी दुनिया की पहली और सर्वोच्च संस्कृति। सभी वैदिक दर्शनों में से सर्वश्रेष्ठ को भारतीय संस्कृति में शामिल किया गया है।
परिवार की बात करें तो प्राचीन काल से ही संयुक्त परिवार प्रणाली भारतीय संस्कृति की एक महत्वपूर्ण विशेषता रही है। लेकिन जब से पश्चिमी सभ्यता ने घर और चूल्हे पर प्रभाव डालना शुरू किया है, इस संस्कृति को चोट पहुंचने लगी है। अब शहरों में एकल परिवार आदर्श बन गए हैं।
विभिन्न समाजशास्त्रियों ने पिछले वर्षों में अपने अध्ययनों में पुष्टि की है कि भारत में एकल परिवारों का उदय – जो एक जोड़े और उनके अविवाहित बच्चों से बना है– तेजी से शहरी भाग का हिस्सा बनता जा रहा है। 2001 की जनगणना के अनुसार, 9.98 करोड़ परिवारों में से 51.7% एकल परिवार थे। 2011 की जनगणना में, 12.97 करोड़ एकल परिवारों के साथ, संख्या बढ़कर 52.1% हो गई। वर्तमान में, 24.88 करोड़ एकल परिवार हैं। वर्तमान में शहरी क्षेत्रों में एकल परिवारों का अनुपात घटा है और गांवों में आश्चर्यजनक रूप से बढ़ा है। शहरों में यह 54.3% से घटकर 52.3% हो गया है। इसके विपरीत, ग्रामीण क्षेत्रों में 50.7% से बढ़कर 52.1% हो गया है।
हम शादी के बजाय लिव इन रिलेशनशिप की एक नई अवधारणा को बहुत तेजी से बढ़ते देख रहे हैं, तलाक के मामले बढ़ रहे हैं, आत्मीय बंधन, देखभाल और निःस्वार्थ सहायता करने में तेजी से गिरावट आ रही है। लिव–इन रिलेशनशिप वास्तव में स्वार्थ और झूठे अहंकार को संतुष्ट करने का एक अनुबंध है जो यह प्रदर्शित करने का प्रयास करता है कि हमारे पास कितनी स्वतंत्रता है और हम कितने स्वतंत्र हैं। इसमें कोई प्रेम संबंध नहीं है, केवल यौन आकर्षण है। देखने में आया है कि जब यौन आकर्षण फीका पड़ जाता है, तब घृणा, अविश्वास, मानसिक अस्थिरता, लड़ाई-झगड़ा, नशीली दवाओं का दुरुपयोग, अलगाव और जीवन के प्रति अरुचि दिखाई पड़ती है।
एकल परिवारों ने स्वतंत्रता की झूठी धारणा बनाई है। वास्तविकता तो यह है कि अधिकतर महिलाएं पीड़ित हैं। अवसाद और चिंता जैसे मानसिक रोगों में वृद्धि हुई है। तलाक के मामले बढ़े हैं। महिलाएं नशीली दवाओं का सेवन करने लगी हैं। अनाथालयों में वृद्धि बता रही है, कुछ तो गड़बड़ है।
वैदिक काल में, भारतीय महिलाओं को जीवन के सभी पहलुओं में पुरुषों के समान स्थान प्राप्त था। लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप पर इस्लामिक राज आने के बाद उन्होंने अपना स्थान और सम्मान खो दिया, जिसने भारतीय समाज में पर्दा प्रथा ला दी। आधुनिक भारत में चीजें तेजी से बदल रही हैं। महिलाओं की स्थिति में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। भारतीय संविधान द्वारा महिलाओं के अधिकारों की गारंटी दी जाती है, विशेष रूप से समानता, गरिमा और भेदभाव से मुक्ति की। इसके अतिरिक्त, भारत में महिलाओं के अधिकारों को नियंत्रित करने वाले विभिन्न क़ानून हैं।
1950 के दशक के अंत तक हिंदू धर्म में तलाक की प्रथा ही नहीं थी। आज भारत में, तलाक के कुल मामलों में से लगभग 80% में तलाक की शुरुआत महिलाएं करती हैं। तलाक का क्या अर्थ है, इस पर राय अलग–अलग है। परंपरावादी, बढ़ती तलाक संख्या को सामाजिक बंधन टूटने का पूर्वाभास बताते हैं तो आधुनिकतावादी इसे महिला सशक्तिकरण का उदाहरण बताते हैं।
विवाह प्रणाली क्यों महत्वपूर्ण है?
विवाह केवल एक प्रणाली नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक अखंडता के लिए प्रेम के बंधन के साथ दो भागीदारों को एक साथ लाने का प्रयास है। यह केवल यौन गतिविधि या प्रजनन के लिए नहीं है, एक सुसंस्कृत और सभ्य समाज के लिए, विवाह परिवार और सामाजिक मूल्यों की निरंतरता सुनिश्चित करता है, साथ ही मूल्य–आधारित प्रणाली में नई पीढ़ियों का पालन–पोषण करता है।
संयुक्त परिवार प्रणाली का महत्व
आज हमारे पास ऐसे लोगों की एक पीढ़ी है जिसने संयुक्त परिवार व्यवस्था में बड़े होने के बाद एकाकी परिवार शुरू करने का निर्णय किया है। एक विस्तारित परिवार में बड़े होने वाले बच्चे न केवल सहिष्णुता, धैर्य और अन्य लोगों के दृष्टिकोण को स्वीकार करने का एक लोकतांत्रिक रवैया सीखते हैं, बल्कि भाई–बहनों और चचेरे भाई–बहनों के साथ खेलते समय उनमें एक खिलाड़ी की भावना भी विकसित होती है। परिवार प्रणाली कई प्राचीन परंपराओं, रीति–रिवाजों और जीवन के तरीकों का स्रोत है। परिवार व्यवस्था, वास्तव में, सामाजिक एकता और लोकतांत्रिक सोच के बीज बोती है। परिवार बुजुर्गों, विधवाओं, अविवाहित वयस्कों और विकलांगों की देखभाल करता है, बेरोजगारी के समय में सहायता, सुरक्षा, समर्थन और एकजुटता की भावना प्रदान करता है।
अक्सर कहा जाता है कि “घर” पहली पाठशाला होती है, और माँ पहली शिक्षक। एक बच्चा अपने परिवार के सदस्यों से साफ–सफाई, खाने की आदतें आदि जैसे मानदंड सीखता है। व्यक्ति में संस्कार उसके परिवार द्वारा डाले जाते हैं। व्यक्तियों के मूल्यों को दृढ़ता से धारित विश्वासों के रूप में परिभाषित किया जासकता है। परिवार बड़ों के प्रति सम्मान, एक–दूसरे के लिए स्नेह आदि जैसे मूल्यों को स्थापित करता है। व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके परिवार से प्रभावित होता है। व्यक्तिगत व्यवहार उनके व्यक्तित्व को दर्शाता है।
भारतीय संस्कृति में एक अन्य महत्वपूर्ण मूल्य जिस पर बल दिया गया है, वह है प्रार्थना। इसके अनुसार प्रत्येक कार्य एक भेंट है, भगवान असली कर्ता हैं हम केवल उनके उपकरण हैं। ये वे मूल्य हैं जो हमारे पूर्वजों ने हमें तनाव मुक्त जीवन जीने के लिए दिए थे। आज अनेक ऐसे व्यक्ति मिल जाएंगे, जिनके पास धन, शक्ति और प्रसिद्धि तो है लेकिन शांति, खुशी और एक आनंदमय सामाजिक जीवन नहीं, कारण ढूंढेंगे तो पता चलेगा कि उनका पारिवारिक जीवन खोखला है।