विदेशी धरती पर राहुल गांधी का प्रलाप

विदेशी धरती पर राहुल गांधी का प्रलाप
विदेशी धरती पर राहुल गांधी का प्रलापविदेशी धरती पर राहुल गांधी का प्रलाप
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की वैचारिक अस्पष्टता ने कांग्रेस के सामने अजीबो-गरीब हालात पैदा कर दिए हैं।
भारत की यात्रा नानक और बुद्ध ने नहीं की, यह तो आदि शंकराचार्य ने की। नानक ने उत्तर भारत और वर्तमान पाकिस्तान तक ही स्वयं को सीमित रखा और बुद्ध ने कभी अवध से आगे के भारत को देखा ही नहीं। वहीं शंकर ने पूरे भारत की यात्रा की और पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण में उनके होने के प्रमाण उपलब्ध हैं। राहुल स्वयं की तुलना अपने साक्षात्कार में नानक और बुद्ध से कर, अपनी भारत जोड़ो यात्रा का दार्शनिक स्वरूप इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन, लंदन में समझा रहे थे। यह दार्शनिक स्वरूप यात्रा से पहले तो प्रेस को ब्रीफ नहीं किया गया।
अहिंसा का गांधी दर्शन, जो राष्ट्र को कमजोर बनाता है, वही राहुल गांधी की दृष्टि को भी संकुचित कर रहा है और विचार को सतही बना रहा है। अध्ययन की कमी और विचार की अपुष्टता उनके पूरे साक्षात्कार में दृष्टव्य रही। वो बीबीसी पर जांच को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़ कर कह रहे हैं कि अगर बीबीसी भारत सरकार की आलोचना बंद कर दे तो सभी मामले उठा लिए जाएंगे। प्रश्न यह है कि बिना किसी कारण उनके पिता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जब बोफोर्स मामला उछलने पर एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र (इंडियन एक्सप्रेस) के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया था, तब तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समाप्त नहीं हुई थी। वर्तमान में बीबीसी पर ऐसी कोई रोक नहीं है, वो चाहे जो प्रकाशित करे, लेकिन रहना भारतीय न्याय और विधि व्यवस्था के अनुरूप ही पड़ेगा।
भारत कोई बोहेमियन संस्कृति का देश नहीं, जहां अराजकता और विधि स्वच्छंदता को स्थान दिया जा सके, जैसा कि राहुल गांधी की बातों में दृष्टव्य होता है। राष्ट्र का विचार (आइडिया ऑफ नेशन) में तो वह कहते हैं कि भारत राज्यों का एक संघ है, जहां राज्यों को अधिकतम स्वायत्तता देनी चाहिए, लेकिन संविधान को वे भूल जाते हैं। जिसकी प्रस्तावना में कहा गया है कि हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता व अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प हो कर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर, 1949 ई. मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी को एतद संविधान को अंगीकृत, अधिनियिमत और आत्मार्पित करते हैं।
वैसे भारत के लोग सदियों से इससे भी आगे का विचार करते हैं। हमारे विचार में भारत का विचार सतत् सनातन से आता है और विष्णु पुराण कहता है कि,
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षम् तद्भारतं नाम भारती यत्र संततिः।।
अर्थात्
समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में फैला हुआ देश भारत है, इस की संतान भारतीय हैं।
और
पुरुषैर्यज्ञ पुरुषो जम्बू द्वीपे सदेज्यते।
यज्ञैर्यज्ञमयो विष्णुः अन्यद्वीपेषु चान्यता।।
अर्थात्
श्रेष्ठ यज्ञपुरुष जम्बूद्वीप में हमेशा यज्ञ करते रहते हैं। यज्ञ के कारण, विष्णुजी भी यज्ञमय बनकर इस द्वीप में रहते हैं। अन्य द्वीपों को यह भाग्य उपलब्ध नहीं है ।
राहुल से जब टेलीग्राफ के संवाददाता ने पूछा कि ब्रिटेन में भारतीय राजनीतिज्ञों के उभार पर आप उन्हें क्या सलाह देना चाहते हैं। साथ ही भारत के बारे में उनके विचार क्या होने चाहिए। इस पर वो कहते हैं कि हम इन विद्वान लोगों को क्या सलाह दे सकते हैं, ये निर्णय उनके अपने होंगे। लेकिन वे यह कहने से नहीं चूकते कि भारत में लोकतंत्र समाप्त हो चुका है, यूरोप व अमेरिका को इस पर ध्यान देना चाहिए। चीन पर पूछे गए प्रश्न में वे भारत की यूक्रेन से तुलना करते हैं और चीन को रूस की स्थिति में बताते हैं।
भारत-चीन समस्या का ऐसा विश्लेषण सम्भवतः कोई कूटनीतिक जानकार नहीं करेगा। वे बिल्कुल जेलेंस्की की तरह यूरोपीय राजनीतिज्ञों को भारत में हस्तक्षेप का आमंत्रण देते दिखाई देते हैं। ऐसे में कोई इन्हें क्या समझा सकता है कि भारत की 2 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन वर्तमान सरकार के काल में नहीं, प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के काल में चीन की विस्तारवादी नीति के कारण गई थी। वर्तमान में भारतीय सेना ने सीमा की रक्षा सफलता पूर्वक की है और विगत 60 से अधिक वर्षों से बनी स्थिति को स्थिर बना कर रखा है। चीन के सामने भारत की स्थिति यूक्रेन की हो ही नहीं सकती। रूस का असली केन्द्र ही कीव है। जहां से कभी रूसी लोग सेंटपीटर्सबर्ग और मॉस्को गए थे। 1991 से पहले यूक्रेन की उपस्थिति विश्व के नक्शे पर नहीं थी। वहीं भारत कभी चीन का भाग रहा हो, यह सोच पाना भी सम्भव नहीं है। ऐसे में भारत की तुलना यूक्रेन से कभी हो ही नहीं सकती, राहुल गांधी ऐसा कर के भारत का पूरा कूटनीतिक आयोजन ही नष्ट करना चाह रहे हैं।
अडाणी की आलोचना उनका अधिकार है, लेकिन जॉर्ज सोरोस पर चुप्पी उनकी गंभीर समस्या। आखिर चीन से उनका क्या समझौता है और जॉर्ज सोरोस के फ्री स्टेट में उनकी भागीदारी क्या है, इस पर भी उन्हें बोलना चाहिए। वे अपने पूरे साक्षात्कार में आइडिया ऑफ इंडिया पर बोले, लेकिन यह नहीं बता पाए कि उनका आइडिया ऑफ इंडिया क्या है। विपक्ष क्या चाहता है यह भी राहुल गांधी को पता नहीं है, वे तो कांग्रेस के स्टैण्ड पर भी अपना स्पष्टीकरण नहीं दे सके।
जहां तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को एक सीक्रेट सोसाइटी मानने की बात है, तो राहुल गांधी कोई कारण नहीं बता सके कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आखिर कैसे सीक्रेट सोसाइटी है। साथ ही भारतीय लोकतंत्र के लिए प्रधानमंत्री किसी समस्या या डर का कारक हैं, यह तो वे बोले, लेकिन कारण पर चुप्पी साध गए। इन सभी विषयों पर उनके बयान पूरी तरह से मुख्य बिंदु से परे थे। वे सिर्फ भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए यूरोप और अमेरिका से गुहार लगाते नजर आए। क्या कांग्रेस सरीखी पुरानी राजनैतिक पार्टी के नेता का इस तरह विदेशी धरती पर जाकर प्रलाप करना स्वस्थ राजनीति का प्रतीक हो सकता है?
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