लव जिहाद के कुचक्र से पर्दा उठाती फिल्म The Kerala Story

लव जिहाद के कुचक्र से पर्दा उठाती फिल्म The Kerala Story

दिवस गौड़

लव जिहाद के कुचक्र से पर्दा उठाती फिल्म The Kerala Storyलव जिहाद के कुचक्र से पर्दा उठाती फिल्म The Kerala Story

The Kerala Story के रूप में विपुल शाह ने जैसे बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दम भरने वाले वामी और जिहादी इसका जमकर विरोध कर रहे हैं।

फिल्म केरल में कट्टरपंथी मुस्लिम ताकतों द्वारा हिन्दू व ईसाई लड़कियों को लव जिहाद के जाल में फंसा कर सीरिया में ISIS आतंकी संगठन के लिए suicide bombers या sex slaves बनाने के कुचक्र से पर्दा उठाती है। निर्देशक सुदिप्तो सेन ने फिल्म के लिए गहन शोध किया है। केरल में धरातल से जुड़ी सच्चाई को बहुत बारीकी एवं बिना किसी लाग लपेट के वैसा ही दिखाने का प्रयास किया है। हां, केरल के वामपंथी दलों द्वारा विरोध करने व न्यायालय में जाने के कारण कुछ दृश्यों पर सेंसर बोर्ड की कैंची अवश्य चली है व फिल्म को A cirtificate दिया गया है, परन्तु फिर भी इस फिल्म में सत्य के दर्शन की सभी संभावनाएं खुली हैं।

फिल्म में केरल के कोझिकोड में युनिवर्सिटी में पढ़ने वाली चार लड़कियों की कहानी है। दो लड़कियां हिन्दू, एक ईसाई व एक मुस्लिम है। दो हिन्दू लड़कियों में एक परंपरागत हिन्दू परिवार की लडकी है, परन्तु उसे अपनी परंपराओं के विषय में कुछ नहीं पता। दूसरी हिन्दू लड़की एक वामपंथी पिता की संतान है तो विदित ही है कि उसके पिता ने उसे जानबूझ कर अपनी जड़ों से काटकर रखा। बाद में दर्शाया भी गया है कि यह लड़की अपनी दुर्दशा का दोषी अपने पिता को यह कहते हुए बताती है कि ‘आपकी ही गलती है, जो आपने मुझे एक विदेशी वामपंथी विचार के जाल में फंसा कर अपने मूल से काट दिया।’

दोनों हिन्दू लड़कियां लव जिहाद की आसान शिकार बनती हैं, तीसरी ईसाई लडकी जो अपनी परंपराओं व रीति रिवाजों से बहुत मजबूती से जुड़ी है, वह इस जाल में नहीं फंसती, परन्तु बलात शोषण का शिकार वह भी होती है। चौथी मुस्लिम लड़की ही इन तीनों की दुर्दशा का माध्यम बनती है।

फिल्म में कुछ दृश्य ऐसे हैं, जो सोचने पर विवश कर देते हैं कि हमारे समाज को कहां धकेल दिया गया है? भोजन के समय मुस्लिम व ईसाई लड़कियों द्वारा प्रार्थना की जाती है जबकि हिन्दू लड़कियां बस खाना शुरू कर देती हैं। मुस्लिम लड़की द्वारा जीजस क्राइस्ट का अपमान करने पर ईसाई लड़की इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देती है, परन्तु भगवान राम व भगवान कृष्ण के अपमान पर हिन्दू लड़कियां ना केवल चुप रह जाती हैं अपितु इस अपमान को ही सत्य मान लेती हैं। बाद में दर्शाया भी गया है कि ये हिन्दू लड़कियां अपने माता पिता के सामने स्वयं के हिन्दू होने पर अपमानित होने की बात कहती हैं।

फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे कट्टरपंथी मुस्लिम ताकतों का एक पूरा मकड़जाल इसी कार्य में लगा है। मौलानाओं से लेकर विद्वानों तक, प्रोफेशनल्स से लेकर युनिवर्सिटी में पढ़ने वाले छात्रों तक, पुरुषों से लेकर महिलाओं तक सभी एक योजनाबद्ध तरीके से लव जिहाद के इस कार्य में लगे हैं। लव जिहाद के बाद मतांतरण एवं मतांतरण के बाद आतंकी गतिविधियों में लिप्त हो जाना जैसे उन लड़कियों की नियति बन चुकी है। नरक से बदतर जीवन जीने को विवश हैं।

A cirtificate दिया जाना वैध लगता है क्योंकि फिल्म के कुछ दृश्य बहुत संवेदनशील हैं। आतंकियों द्वारा लोगों को मारने के दृश्य हों या sex slaves बनी उन लड़कियों के बलात्कार के दृश्य, इन्हे देखना सहज नहीं है।

तकनीकी दृष्टिकोण पर भी फिल्म प्रशंसनीय है। सिनेमेटोग्राफी में बहुत अच्छा काम किया गया है। केरल के प्राकृतिक सौंदर्य के दर्शन हों अथवा अफगानिस्तान व सीरिया के दृश्य, फिल्मांकन बहुत सुन्दर किया गया है। निर्माता विपुल शाह ने इसके लिए काफी व्यय किया है, साथ ही निर्देशक सुदिप्तो सेन के निर्देशन को तो सभी मानते हैं।

अभिनय के धरातल पर भी फिल्म सभी मापदंडों को पूरा करती है। केन्द्रीय पात्र शालिनी उर्फ फातिमा के रूप में अदा शर्मा ने अभिनय का अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत किया है। उनके द्वारा दक्षिण भारतीय लहजे में हिन्दी का बोला जाना इसकी विश्वसनीयता को बढ़ाता है। फिल्म 1920 के लम्बे अंतराल के बाद अदा शर्मा को अपना कौशल दिखाने का अवसर मिला, जिसे उन्होंने बहुत अच्छा निभाया। आसिफा का पात्र निभाने वाली सोनिया बालानी के अभिनय ने इस किरदार में जान डाल दी। साथ ही गीतांजलि व निमा के किरदार में क्रमशः सिद्धी इदनानी व योगिता बिहानी के अभिनय को अनदेखा नहीं किया जा सकता।

हां! फिल्म में बीच बीच में अन्य पात्रों द्वारा मलयालम मिश्रित हिन्दी का बार बार उपयोग हिन्दी भाषियों के लिए कभी कभी असुविधाजनक होता है, जिसके लिए सब-टाइटल्स का सहारा लेना पड़ता है। परन्तु फिर भी सभी मानदंडों पर फिल्म खरी उतरती है। फिल्म को अच्छी रेटिंग्स मिल रही हैं। कम से कम एक बार इस फिल्म को अवश्य देखा जाना चाहिए। 

फिल्म तकनीकी एवं संदेशात्मक दोनों दृष्टिकोण पर खरी उतरती प्रतीत होती है।

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