लोक कल्याणकारी संदेशवाहक और कुशल संचारक देव ऋषि नारद
नारद जयंती पर विशेष
भारतवर्ष का हिमालय क्षेत्र सदैव से ऋषि-मुनियों तथा संतों को आकर्षित करने वाला रहा है। देव ऋषि नारद समेत अनेक ऋषियों- ऋषि अष्टावक्र, महर्षि व्यास, परशुराम, गुरु गोरखनाथ, मछिंदरनाथ आदि ने हिमालय को अपनी साधना हेतु चुना।
हिन्दू संस्कृति में देव ऋषि नारद का शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि वे ब्रह्मा जी के पुत्र हैं, विष्णु जी के भक्त और बृहस्पति जी के शिष्य हैं। तीनों लोकों में भ्रमण के कारण उन्हें एक लोक कल्याणकारी संदेशवाहक और कुशल संचारक के रूप में जाना जाता है।
वस्तुतः देव ऋषि नारद एक अत्यंत विद्वान, संगीतज्ञ, मर्मज्ञ (रहस्य को जानने वाले) और नारायण के भक्त थे। उनके द्वारा रचित 84 भक्ति सूत्र प्रसिद्ध हैं। स्वामी विवेकानंद सहित अनेक मनीषियों ने नारद भक्ति सूत्र पर भाष्य लिखे हैं।
नारद द्वारा रचित 84 भक्ति सूत्रों का यदि सूक्ष्म अध्ययन करें तो केवल पत्रकारिता ही नहीं पूरे मीडिया के लिए शाश्वत सिद्धांतों का प्रतिपादन दृष्टिगत होता है। उनके द्वारा रचित भक्ति सूत्रों के अनुसार जाति, विद्या, रूप, कुल, धन, कार्य आदि के कारण भेद नहीं होना चाहिए। आजकल की पत्रकारिता व समाचार माध्यमों में परिचर्चाओं का चलन बहुत बढ़ गया है, जिनमें समाचार माध्यमों (मीडिया) पर लगातार अर्थहीन व अंतहीन चर्चाएं होती दिखती हैं।
महाभारत के सभापर्व के पांचवें अध्याय (लोकपाल सभाख्यान पर्व) में नारदजी के व्यक्तित्व का परिचय इस प्रकार दिया गया है – देव ऋषि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास–पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) की बातों को जानने वाले, न्याय एवं धर्म के तत्वज्ञ, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत–विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, नीतिज्ञ, कवि, महापण्डित, बृहस्पति जैसे महाविद्वानों की शंकाओं का समाधान करने वाले, धर्म–अर्थ–काम–मोक्ष के यथार्थ के ज्ञाता, योग बल से समस्त लोकों के समाचार जान सकने में समर्थ, सांख्य एवं योग के सम्पूर्ण रहस्य को जानने वाले, देवताओं–दैत्यों को वैराग्य के उपदेशक, कर्त्तव्य–अकर्त्तव्य में भेद करने में दक्ष, समस्त शास्त्रों में प्रवीण, सद्गुणों के भण्डार, सदाचार के आधार, आनंद के सागर, परम तेजस्वी, सभी विद्याओं में निपुण, सबके हितकारी और सर्वत्र गति वाले हैं।
श्रीमद्भागवतगीता के 10वें अध्याय के 26वें श्लोक में श्रीकृष्ण, अर्जुन से कहते हैं:
अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम देवरशीणाम च नारद: ।
गन्धर्वाणाम चित्ररथ: सिद्धानाम कपिलो मुनि: ।।
अर्थात मैं समस्त वृक्षों में अश्वत्थ वृक्ष (सबसे ऊँचा तथा सुंदर वृक्ष है, जिसे भारत में लोग नित्य प्रति नियमपूर्वक पूजते हैं) हूँ और देव ऋषियों में मैं नारद हूँ। मैं गन्धर्वों में चित्ररथ हूँ और सिद्ध पुरुषों में कपिल मुनि हूँ।
देव ऋषि नारद एक ऐसे कुशल मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले लोक-कल्याण संचारक और संदेशवाहक थे जो आज के समय में पत्रकारिता और मीडिया में भी प्रासंगिक हैं।
एक आदर्श संदेशवाहक होने के कारण नारद जी का तीनों लोकों में समान सहज संचार (कम्युनिकेशन) था। देव ऋषि नारद अन्य ऋषियों, मुनियों से इस प्रकार से भिन्न हैं कि उनका कोई अपना आश्रम नहीं है। वे निरंतर प्रवास पर रहते हैं तथा उनके द्वारा प्रेरित हर घटना का परिणाम लोकहित से निकला। इसलिए वर्तमान संदर्भ में यदि नारद जी को विश्व का सर्वश्रेष्ठ व कुशल लोक संचारक कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। नारद चरित्र के आधार पर पत्रकारिता का तीसरा महत्वपूर्ण सिद्धांत- पत्रकारिता का धर्म समाज हित ही है, भी प्रतिपादित किया जा सकता है।