पहलवानों के धरने का अंत तत्काल नहीं

पहलवानों के धरने का अंत तत्काल नहीं

अवधेश कुमार

पहलवानों के धरने का अंत तत्काल नहींपहलवानों के धरने का अंत तत्काल नहीं

जंतर – मंतर पर पहलवानों का धरना धीरे-धीरे उस अवस्था में पहुंच गया, जहां से इसका अंत होना इस समय कठिन लग रहा है। किसान संगठन और खाप पंचायतों के प्रतिनिधियों ने अपने जो तेवर दिखाए उससे स्पष्ट है कि धरने को लंबा खींचने की रणनीति बना दी गई है। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने इस मामले की आगे सुनवाई करने से इंकार कर दिया। न्यायालय ने कहा कि महिला पहलवानों को कोई शिकायत है तो संबंधित मजिस्ट्रेट के न्यायालय या उच्च न्यायालय में जाएं। उच्चतम न्यायालय ने महिला पहलवानों की ओर से मामले की जांच की निगरानी सेवानिवृत्त न्यायाधीश से कराए जाने की मांग भी खारिज कर दी। न्यायालय ने कहा कि याचिका में प्राथमिकी दर्ज कराने की मांग की गई थी, वह हो गई है और सुरक्षा की बात थी, वह भी उद्देश्य पूरा हो गया है। ध्यान रखिए, पीठ में प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा, न्यायमूर्ति जेपी पार्दीवाला शामिल हैं। कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज हो चुकी है, नाबालिग शिकायतकर्ता को भी पर्याप्त सुरक्षा मिल गई है। अन्य शिकायतकर्ताओं को खतरे का भी आंकलन किया गया। कोई खतरा नहीं होने के बावजूद उन्हें भी सुरक्षा दी गई। सभी शिकायतकर्ता महिला पहलवानों को एक-एक पुलिसकर्मी की सुरक्षा दी गई है। नाबालिग शिकायतकर्ता की सुरक्षा  सिक्योरिटी यूनिट से कराई गई है। इस सिक्योरिटी यूनिट के पुलिसकर्मियों को एक निजी वाहन दिया गया है, जो उसके साथ अपने वाहन से चलते हैं। सीआरपीसी यानी अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के अंतर्गत बयान भी दर्ज किए गए हैं और आगे किए जा रहे हैं। बावजूद यदि पहलवान पुलिस जांच रिपोर्ट आने तक धरना खत्म करने और जांच प्रक्रिया पर नजर रखते हुए न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करने को तैयार नहीं तो सोचना पड़ेगा कि ऐसा क्यों हो रहा है?

वे मांग कर रहे हैं कि जब तक भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी नहीं होगी, धरना जारी रहेगा। वास्तव में पूर्व धरने के बाद समिति गठित होने और सरकार से बातचीत होने पर धरना समाप्त किया गया था। उसके बाद ऐसा लगा था कि दोबारा धरना नहीं होगा। बृजभूषण शरण सिंह कह रहे हैं कि वह फांसी पर चढ़ने को तो तैयार हैं, लेकिन अपराधी बनकर त्यागपत्र नहीं देंगे। कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष ने नाबालिग- बालिग लड़कियों का यौन शोषण किया है तो इस देश में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जो उनका समर्थन करेगा। उन्हें इसकी सजा मिलनी ही चाहिए। किंतु आरोप लगाने से किसी को अपराधी नहीं मान सकते। न्यायालय को भी प्रमाण चाहिए। जहां तक गिरफ्तारी की बात है तो उच्चतम न्यायालय कह चुका है कि 7 वर्ष तक की सजा वाले अपराध में पुलिस चाहे तो गिरफ्तार करे या गिरफ्तार न करे। दिल्ली पुलिस ने बालिग और नाबालिग सात पहलवानों की शिकायत के आधार पर दो अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज की हैं। उन पर आईपीसी यानी भारतीय दंड संहिता की धारा 354, 354 ए, 354 डी लगाई गई है। ये धाराएं शारीरिक छेड़छाड़, अश्लील इशारे करने, स्टॉकिंग और कॉमन इंटेंशन से संबंधित हैं। दूसरी, पोक्सो (POCSO) कानून के अंतर्गत का मामला है। इन शिकायतों के आधार पर किसी को अनिवार्य रूप से गिरफ्तार करने का प्रावधान नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने भी नहीं कहा कि इन्हें गिरफ्तार किया जाना चाहिए। वैसे भी छेड़खानी और यौन शोषण के आरोपों में 2012 से लेकर 2022 तक की बातें हैं। कुश्ती संघ के अध्यक्ष पर देश के अलग-अलग राज्यों के साथ विदेशों में भी विभिन्न प्रतियोगिताओं के दौरान छेड़खानी और यौन शोषण का आरोप है। जांच में एक एसीपी सहित सात महिला पुलिस अधिकारियों को लगाया गया है। उसकी जांच में तो समय लगेगा।

वैसे भी गिरफ्तारी करने के पीछे मुख्य उद्देश्य होता है कि आरोपी भाग न जाए या सबूतों को नष्ट नहीं करे। शिकायतकर्ता इतने कमजोर नहीं हैं कि बृजभूषण धमकी देकर उनके बयान बदलवा लें। उन्हें पर्याप्त सुरक्षा मुहैया करा दी गई है। बृजभूषण सिंह सांसद हैं, इसलिए उनके भागने का भी कोई प्रश्न नहीं है। कायदे से प्राथमिकी दर्ज हो गई हो तो पुलिस को जांच करने देना चाहिए। यह मामला ऐसा नहीं है जिस पर तुरंत जांच कर पुलिस निष्कर्ष निकाल ले। पुलिस जांच में कोताही करेगी तो फिर उच्चतम न्यायालय जाने का दरवाजा खुला हुआ है। यह संभव नहीं कि पुलिस की भूमिका संदिग्ध हो और उच्चतम न्यायालय याचिका का निपटारा कर दे। केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर का बयान है कि पहलवानों से बात कर समिति का गठन किया गया। यह सच है कि समिति के सामने सभी को पेश होने का अवसर दिया गया। समिति में महिलाओं की संख्या अधिक रखी गई। इनकी मांगों के अनुरूप भारतीय कुश्ती संघ में निष्पक्ष चुनाव के लिए भारतीय ओलंपिक संघ आईओए को अधिकार दिया गया जिसने अपनी समिति भी गठित कर दी। यह समिति ही वहां पर चयन प्रक्रिया, टूर्नामेंट आयोजन और आंतरिक शिकायत समिति का गठन करेगी। पहलवान कह रहे हैं कि उन्हें किसी समिति के सदस्य पर विश्वास नहीं है, बृजभूषण सिंह की गिरफ्तारी होनी चाहिए। किसी की गिरफ्तारी कानून की धाराओं के तहत ही हो सकता है। उच्चतम न्यायालय ने भी नहीं कहा है कि आरोपी को गिरफ्तार किया जाना चाहिए।

आज का परिदृश्य देखते हुए यह बेहिचक कहा जा सकता है कि अब धरना पहलवानों के नियंत्रण से बाहर जा चुका है। देश के वे समूह जो किसी न किसी बहाने नरेंद्र मोदी सरकार, भाजपा, संघ आदि को बदनाम करने, कमजोर करने या जनता को उनके विरुद्ध उद्वेलित करने के लिए प्रयासरत हैं, वे सारे इसका उपयोग कर रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे इसको शाहीनबाग या कृषि कानून विरोधी आंदोलन का प्रतिरूप बनाने की रणनीति पर काम किया जा चुका है। कल तक बड़े संस्थानों में काम करने वाले पत्रकारों का समूह अपने यूट्यूब चैनल का माइक और कैमरा लेकर जंतर मंतर पर पहले से जम गये थे। वो पहलवानों से ऐसे ऐसे प्रश्न पूछते थे, जिसके बाद वे चाहें भी तो वापस जाने का निर्णय आसानी से न कर पाएं। अब तो किसान संगठनों और खाप पंचायतों के लोग आकर घोषणा ही कर चुके हैं कि उनका धरना समाप्त करने का कोई इरादा नहीं। खाप पंचायतों की प्राचीन परंपरा है। कोई सरकार उनको नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकती। किंतु उन्हें जंतर-मंतर तक लाने और देखने के लिए इन लोगों ने तैयार किया यह भी पता करना आवश्यक है। निश्चित रूप से यह सब एक विशेष रणनीति के अंतर्गत हुआ है। रणनीति यही है कि धरने को लंबा खींच मोदी सरकार के विरुद्ध वातावरण बनाया जाए। यह स्पष्ट हो चुका है कि धरने पर बैठे पहलवानों के लिए बगल में एक पंचतारा होटल में कमरा बुक कराया गया है, जहां वे आराम करते हैं। कमरे की बुकिंग कराने वाली कंपनी का नाम है, स्काई होलीडे। 25 मार्च से पहलवान इसी होटल में नियमित रूप से रह रहे हैं। तर्क यह है कि महिला पहलवानों के लिए धरना स्थल पर सार्वजनिक सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं, इस कारण कमरे लिए गए। पहली दृष्टि में यह बात सही लग सकती है। वैसे भी यह उनका अधिकार है जैसे चाहें रहें। किंतु जब आप आंदोलन करने आते हैं तो लोग जानना चाहेंगे कि उनका खर्च कौन उठा रहा है। कारण, आरोप यह भी है कि पहलवानों के धरने के पीछे हरियाणा के एक प्रमुख राजनीतिक परिवार की भूमिका है जो अखाड़े चलाते हैं और पहलवानों का प्रशिक्षण करवाते हैं। विपक्ष के कुछ नेता और पार्टियां वातावरण बिगाड़ने की रणनीति पर भी काम कर रहे हैं। जंतर -मंतर पर दिल्ली सरकार के मंत्री सोमनाथ भारती टेंपो पर फोल्डिंग बेड एवं अन्य सामान लेकर समर्थकों के साथ पहुंचे थे। उन्होंने पुलिसकर्मियों को बैरिकेड हटाने को कहा और कुछ लोग उसका वीडियो भी बनाने लगे। पुलिस ने बैरिकेड हटाने से इन्कार किया तो इनकी धक्का-मुक्की हुई। वहां उपस्थित एसीपी के साथ भी धक्का-मुक्की हुई। पहलवान भी पहुंच गए थे। उन्होंने कहा कि एक पुलिसकर्मी शराब के नशे में था, उसने उनसे मारपीट की और महिला पहलवानों को गालियां दीं। चिकित्सीय परीक्षण में पुलिसकर्मी के शराब पीने की पुष्टि नहीं हुई। पहलवानों ने लाठीचार्ज का आरोप लगाया जो भी प्रमाणित नहीं हुआ। वहां इतने लोग वीडियो बनाने वाले थे कि ऐसा होता तो हमारे आपके पास वह वीडियो पहुंच चुका होता। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति  मालीवाल भी पहुंचीं। पुलिस पर बरसने का उनका वीडियो साथ है। कुल मिलाकर जानबूझकर ऐसी स्थिति पैदा करने के प्रयास हो रहे हैं कि पुलिस के साथ उनकी झड़प हो और फिर धरना दूसरी दिशा में मोड़ा जा सके।

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