एक भी स्वयंसेवक शेष है तो संघ का पुनर्निर्माण होगा : डॉ. मोहन भागवत
नागपुर, 07 मार्च। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि संसार से सब कुछ अचानक अदृश्य हो जाये और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का महज एक स्वयंसेवक और उसका परिवार शेष रह जाए तो वह संघ सृष्टि का पुनर्निर्माण करने में सक्षम है। सरसंघचालक ने कहा कि स्वयंसेवक होना अपने आप में एक साधना है। सरसंघचालक नागपुर के सुरेश भट सभागार में शनिवार को वरिष्ठ स्वयंसेवक एमजी वैद्य के 97वें जन्मदिवस के अवसर पर आयोजित समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि संघ का कार्य स्वयंसेवक और उनके परिजनों के योगदान पर चलता है। स्वयंसेवक और उसका परिवार संघ की इकाई होते हैं।
इस अवसर पर सरसंघचालक ने कहा कि संघ के शुरुआती दौर में तत्कालीन स्वयंसेवकों ने बहुत कठिनाई से जीवन व्यतीत किया है। एमजी वैद्य उसी दौर के स्वयंसेवक हैं। डॉ. भागवत ने कहा कि वैद्य की पीढ़ी के लोगों ने स्वयंसेवक होने की बहुत बड़ी कीमत अदा की है। स्वयंसेवक और संघ की अवधारणा पर डॉ. भागवत ने कहा कि ईश्वर के दर्शन करने के बाद भक्त और भगवान में कोई अंतर नहीं रह जाता। वह एक हो जाते हैं लेकिन भक्त का स्वामित्व भगवान के पास होता है। सरसंघचालक ने कहा कि लहरों का समुद्र नहीं होता बल्कि समुद्र की लहरें होती हैं। ठीक यही बात संघ पर भी लागू होती है।
शिवाजी से तुलना यह अपमान नहीं: वैद्य
कार्यक्रम के दौरान माधव गोविंद वैद्य (एमजी वैद्य) के जीवन यात्रा पर आधारित पुस्तिका का सरसंघचालक के हाथों से विमोचन किया गया। इस अवसर पर एमजी वैद्य और उनकी पत्नी सुनंदा वैद्य का अभिवादन किया गया। इस मौके पर अपने विचार रखते हुए वैद्य ने कहा कि गौरव शब्द में ही प्रशंसा निहित है। जहां प्रशंसा होती है, वहां बढ़-चढ़ कर बातें होती हैं। वैद्य ने बताया कि सुंदर आंखों को कमल नयन कहा जाता है लेकिन इससे कमल पुष्प और आंखें दोनों की तुलना नहीं होती। बल्कि आंखों की बनावट की प्रशंसा होती है। ठीक उसी तरह यदि प्रधानमंत्री की कार्यशैली को शिवाजी महाराज की कार्यशैली से मेल किया जाए तो शिवाजी का अपमान नहीं होता।
वैद्य ने कहा कि प्रधानमंत्री को शिवाजी कहना उनके कार्य की प्रशंसा है। इसमें शिवाजी का कहीं भी अपमान नहीं है। इस अवसर पर केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने भी एमजी वैद्य के जीवन और कार्य पर अपने विचार रखे।
मनीष कुलकर्णी