भारत मॉं के लिए दिया है जिनने जीवन सारा (कविता)
विष्णु शर्मा
भारत मॉं के लिए दिया है जिनने जीवन सारा (कविता)
भारत मॉं के लिए दिया है
जिनने जीवन सारा,
गॉंव-गॉंव हर शहर- शहर में
है उनका ही जयकारा॥
हार जीत की चाह नहीं है
पथ पर चलते रहना,
देह दीप में बनकर बाती
हर पल जलते रहना॥
निज हित की सब छोड़ कामना
परहित जीवन जीना,
देश धर्म की रक्षा के हित
विष भी हँसकर पीना॥
तीन-तीन प्रतिबंधों की भी
तोड़ चुके हैं कारा,
भारत मॉं के लिए दिया है
जिनने जीवन सारा॥
रज भारत की चंदन सी
लगती जिनको प्यारी,
सवा लाख से लड़े अकेले
पड़ते सब पर भारी॥
एक लक्ष्य है एक भावना
जय- जय भारत माता,
नहीं डरेंगे नहीं झुकेंगे
बच्चा- बच्चा गाता॥
स्वयं काल भी खड़ा सामने
दिखता हारा-हारा,
भारत मॉं के लिए दिया है
जिनने जीवन सारा॥
सही गलत को जान चुकी है
अब तो जनता सारी,
कौन चमन में पेड़ लगाता
कौन चलाता आरी॥
जात-पाँत में बाँटी जनता
किसने की गद्दारी,
रोज धरा पर बैठ-बैठ कर
सच का तिलक लगाया॥
ढूंढ-ढूंढ कर निज दोषों को
कोसों दूर भगाया,
उनके ही संकल्पों से तो
फिर दानव दल हारा,
भारत मॉं के लिए दिया है
जिनने जीवन सारा॥