देश नहीं कटने दूंगा
हंसवाहिनी, ज्ञानदायिनी सरस्वती को वंदन कर लूं।
सुखदायिनी, पालनहारी भारत भू अभिनन्दन कर लूं।
जान लुटा दी इस धरती पर, अमर ज्योति प्रज्ज्वलित कर लूं।
वीर सैनिकों की कुर्बानी को नतमस्तक वंदन कर लूं।।
आग लगी हो जब सीने में, देशभक्ति के नाम की।
मरकर भी तुम पौध लगाओ, भारत-भू के शान की।
जिस पर मैंने जान लुटा दी, वो धरती कल्याणी है।
कण कण जिसका तीर्थ मानो, भूमि स्वर्ग से प्यारी है।।
जहाँ भगत, आजाद की आंधी, तूफानों को तैयार करो।
जहाँ बापू की अहिंसा शक्ति, धर्म-धैर्य निर्माण करो।
जिस धरती की विजय पताका, प्रकृति यौवन झूले।
उस भारत की पावन धरती पर मेरा मन डोले।।
मरकर भी मैं अंतिम इच्छा, दिल में मेरे रखता हूँ।
दो गज की भारत भूमि और कफ़न तिरंगा मुझे मिले।।
तन-मन-धन और यौवन इस पर, लख लख बार लुटा दूँगा।
मेरा तिरंगा अमर रहेगा, इस पर जान लुटा दूँगा।
भारत की रक्षा के खातिर इतना ही लिखता हूं
सौगंध है मिट्टी की हमको,देश नही कटने दूँगा।
स्वरूप जैन’जुगनू’
(स्नातक-हिंदी ऑनर्स)
वाकई में बहुत शानदार रचना
धन्यवाद स्वरूप जैन जी आप
अपनी काबिलियत की वजह से आगे बढ़ते रहे
हम सब की दुआएं आपके साथ हैं
अद्भुत काव्य रचना महोदयजी
अति उत्तम
अति उत्तम भाई जी,
आपने एक सैनिक के जीवन को समझाने की शानदार कोशिश की है,शब्दों का जोङ आपके भाषा कोशल की मजबूती को दर्शाती हैं .
धन्यवाद लेखक महोदय जी। कवि का दायित्व है कि राष्ट्र के संवर्धन और उसके विकास को कलमबद्ध करे।
Super Kavita sawrup Ji
GBU aap ease din 2guni or rat 4guni pargati Karo
अतिउत्तम, आपकी कविता की पंक्तियों के भांति यदि हर भारतीय मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य को निभाने का प्रयत्न करे.. तो अपना भारत विश्वपटल पर शिखर पर होगा ।
धन्यवाद जी। अवश्य ही लिखेंगे,प्रयास जारी है कि कलम की अक्षुण धार को राष्ट्रपटल की नोंक पर धार दी जावे।
आपका प्रेम और सहयोग बना रहे
बहुत ही शानदार कविता
बहुत बहुत धन्यवाद जी।
कोटिस आभार