संयुक्त राष्ट्र महासभा का खतरनाक दोहरा रवैया
मृत्युंजय दीक्षित
संयुक्त राष्ट्र महासभा का खतरनाक दोहरा रवैया
विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में जब लोकतंत्र के महापर्व की रणभेरी बजने वाली थी, तब संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान और चीन ने अपनी विकृत भारत विरोधी विचारधारा से प्रेरित, इस्लामोफोबिया के नाम पर अयोध्या व सीएए का गलत उल्लेख करते हुए एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जो इन देशों की मानसिकता को तो दर्शाता ही है साथ ही संयुक्त राष्ट्र महासभा के दोहरे मापदंड को भी बेनकाब करता है। भारत विगत कई वर्षों से संयुक्त राष्ट्र महासभा में स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के लिए, “वसुधैव कुटुम्बकम” की नीति के बल पर अथक प्रयास कर रहा है, किंतु चीन हर बार भारत के नेतृत्व में चल रहे सयुंक्त राष्ट्र महासभा के सुधार अभियान और भारत की स्थायी सदस्यता के विरुद्ध वीटो कर देता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई को भी अगर कोई देश कमजोर कर रहा है तो वह चीन और पाकिस्तान की जुगलबंदी है। जिनके कारण दुनिया के अनेक खतरनाक आतंकी व संगठन अभी तक प्रतिबंधित नहीं हो पा रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासभा को इस्लामोफोबिया तो दिखाई पड़ रहा है, किंतु उसे पाकिस्तान व बांग्लादेश की धरती पर हिन्दू अल्पसंख्यकों पर होने वाले अमानवीय अत्याचार दिखाई नहीं देते हैं। यही नहीं चीन में उइगरों पर भीषण अत्याचार हो रहे हैं किन्तु संयुक्त राष्ट्र महासभा में कभी चीन की निंदा नहीं की गयी। जब इजराइल पर हमास ने आतंकवादी हमला किया तब महासभा का निंदा प्रस्ताव गहरी निद्रा में चला गया था, किंतु जब इजराइल ने हमास के आतंकवादियों को समाप्त करने के लिए पलटवार कर दिया, तब संयुक्त राष्ट्र अपने विकृत रवैये के साथ सामने आ गया और महासभा के सदस्य राष्ट्र पीड़ित इज़राइल की ही निंदा करने लगे। संयुक्त राष्ट्र महासभा का यही दोहरा रवैया पूरे विश्व में मानवाधिकार हनन का कारण है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान के राजदूत मुनीर अकरम ने अयोध्या में भगवान राम के दिव्य, भव्य एवं नव्य राम मंदिर तथा भारत के नागरिकता संशोधन अधिनियम का गलत अर्थों में उल्लेख करते हुए इस्लामोफोबिया से संबंधित प्रस्ताव पारित करा लिया, जिसके समर्थन में 115 सदस्य देशों ने मतदान करके समर्थन किया और भारत सहित 44 देशों ने मतदान में भाग नहीं लिया।
अपना पक्ष रखते हुए भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक बार फिर चीन व पाकिस्तान को बेनकाब किया। महासभा को संबोधित करते हुए भारतीय अधिकारी ने कहा कि गलत सूचनाओं और मंतव्यों के आधार पर भारत का भ्रमित करने वाला उल्लेख किया गया है। विश्व को बुद्धिमत्ता से, गहराई में जाकर वैश्विक दृष्टिकोण से चीजों को देखने की आवश्यकता है। भारत ने पाकिस्तान के सतही नजरिये को खारिज करने की अपील भी की, किंतु उसका कोई असर इन देशों के तथाकथित मंच पर नहीं पड़ा।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत ने कहा कि जब विश्व आगे बढ़ रहा है और समानता के आचरण को अंगीकार कर रहा है, तब पाकिस्तान में मजहबी कट्टरता और अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न चरम पर होना दुखद है। किसी भी देश में किसी भी पंथ के प्रति नकारात्मक भाव नहीं रखा जाना चाहिए, चाहे वह हिन्दुत्व हो ,बौद्ध हो सिख हो या अन्य कोई धर्म। भारत किसी भी धर्म के व्यक्ति के साथ हिंसा या भेदभाव की अनुमति नहीं देता है। उसकी रोकथाम के लिए कड़े और स्पष्ट कानूनी प्रावधान हैं। भारत में सभी धर्म के लोगों के साथ समान व्यवहार होता है और उन्हें अपने तरीके से रहने व उपासना करने का अधिकार है। सभी धर्मों के लोगों के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में कार्य करने का समान अवसर है। कोई उत्पीड़न की शिकायत करता है तो उसके साथ न्याय के लिए मजबूत कानूनी प्रावधान हैं, जिनके अंतर्गत कड़ा दंड दिया जाता है।
संयुक्तराष्ट्र महासभा ने चीन व पाकिस्तान के दबाव में आकर इस्लामोफोबिया की आड़ में भारत विरोधी जो प्रस्ताव पारित किया है वह घोर निंदनीय व सत्य से कोसों दूर है। वास्तविकता यह है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान में हिन्दुओं पर इतने अधिक अत्याचार किये गये कि अब इन देशों में वो दो प्रातिशत से भी कम रह गये हैं जबकि सिख, बौद्ध, जैन, यहूदी सहित अन्य सभी अल्पसंख्यक पूरी तरह से समाप्त हो चुके हैं। पाकिस्तान में तो किसी का हिन्दू होना ही अपराध है। वहां युवा हिन्दू महिला तो जैसे पाकिस्तानी कट्टरपंथियों की जायदाद है अक्सर उस पर अथाह जुल्म ढाए जाते हैं। हर हिन्दू पर इस्लाम अपनाने का दबाव बनाया जाता है और जब कट्टरपंथी इसमें सफल नहीं हो पाते तो अपहरण, लूट, बलात्कार और हत्याएं की जाती हैं। पाकिस्तान में हिन्दू व अन्य अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचार संयुक्त राष्ट्र को नहीं दिखते। बांग्लादेश में ईशनिंदा की अफवाहें उड़ाकर हिन्दू मंदिरों पर हमला बोला जाता है और हिन्दुओं के घरों को जलाकर उनकी हत्यायें कर दी जाती हैं। तब संयुक्त राष्ट्र महासभा मौन हो जाती है ।
सयुंक्त राष्ट्र मानसिक रूप से दिवालिया संस्था बन चुकी है जिसका कोई वैचारिक अस्तित्व नहीं है। पाकिस्तान व चीन को छोड़कर संपूर्ण विश्व अच्छी तरह से जानता है कि भारत ही एक ऐसा राष्ट्र है जहां पर 18 प्रतिशत मुस्लिम अल्पसंख्यक पूरी तरह से सुरक्षित रहते हुए जीवनयापन कर रहे हैं और केंद्र व राज्य सरकारों की सभी योजनाओं का भरपूर लाभ उठा रहे हैं। विश्व के किसी भी देश में मुस्लिम समाज के लोगों को फ्री राशन नहीं मिलता। लेकिन भारत में दिया जा रहा है।
अतः संयुक्तराष्ट्र महासभा को इस्लामोफोबिया के नाम पर मुस्लिमों के साथ एकतरफा प्रेम के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए और आँखें खोलकर वास्तविकता को समझना चाहिए।