रमजान के पवित्र महीने में क्रूरता की हदें पार कर दीं अंजुम खान और साजिद ने
रमजान के पवित्र महीने में क्रूरता की हदें पार कर दीं अंजुम खान और साजिद ने
रमजान के पवित्र महीने में अंजुम खान और साजिद ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दीं। जयपुर की अंजुम ने अपने डेढ़ महीने के बच्चे की गर्दन रेत दी, तो बदायूं में साजिद ने आवश्यकता पड़ने पर सहायता करने वाले परिवार के घर के दो चिराग ही बुझा दिए। दोनों ही मामलों में क्रूरता ऐसी कि दिल दहल जाए। मासूमों की गर्दनें ठीक उसी प्रकार काटी गईं जैसे कोई कसाई किसी जानवर को हलाल करता है।
क्या है अंजुम खान का मामला?
कहते हैं पुत्र, कुपुत्र हो सकता है परंतु माता कभी कुमाता नहीं होती। परंतु यह कहावत जयपुर के रामगंज क्षेत्र के तेलियों का मोहल्ला चौकड़ी तोपखाना हजूरी गेट में रहने वाली अंजुम खान ने गलत साबित कर दी। उसने अपने डेढ़ माह के बेटे उजेफ की केवल इसलिए हत्या कर दी क्योंकि वह रोता रहता था। उसके रोने की आवाज से अंजुम की नींद पूरी नहीं हो पाती थी।
उजेफ को गंभीर हालत में जेके लोन अस्पताल में भर्ती करवाया गया। लेकिन उस डेढ़ माह के बच्चे की अस्पताल में 8 दिन बाद 11 मार्च को मृत्यु हो गई। उसकी गर्दन की नसें बुरी तरह से कट चुकी थीं।
पुलिस को जानकारी देते हुए अंजुम ने कहा कि अपने डेढ़ महीने के बेटे उजेफ को मारने के लिए मैं अपने आरएमपी पिता के घर से उनकी सर्जिकल ब्लेड लेकर आयी थी और उसी ब्लेड से उजेफ की गर्दन काट दी। एक बार में ब्लेड अटक गया, उजेफ नहीं मरा, इसलिए दूसरी बार ब्लेड फेर दिया। हत्या की आरोपी अंजुम के चेहरे पर कोई दर्द का भाव और बेटे को खोने का दुख नहीं था। उसने यह हत्या पूरी योजना बनाकर की, ताकि वह पकड़ में न आए। लेकिन पुलिस इन्वेस्टिगेशन में अपना गुनाह छुपाने में असफल हो गई। सख्ती होने पर सच उगल दिया।
बदायूं हत्याकांड की नृशंसता तो अब जन जन की जुबान पर है। साजिद जिस परिवार में पत्नी की डिलीवरी के लिए 5000 रुपए की सहायता मांगने गया, परिवार ने रुपए दे भी दिए, उसने उसी परिवार के दो बच्चों की गर्दनें काट दीं। वह यहॉं भी नहीं रुका, उस पर उनका खून पीने का भी आरोप है। प्रश्न है कोई ऐसा कैसे कर सकता है?
इस पर मनोवैज्ञानिक तनुज अग्रवाल कहते हैं कि मुसलमानों में मांसाहार बेहद आम है। इसके लिए जानवर को काटना पड़ता है। मुस्लिम परिवारों के सदस्य प्रतिवर्ष बकरीद पर जहॉं एक साथ बड़े पैमाने पर जानवरों की हत्याएं देखते हैं, वहीं एकादि बकरे, मुर्गे काटना और कटते देखना उनके लिए लगभग प्रतिदिन की बात है। ऐसे में वे खून, मांस आदि के प्रति इम्यून हो जाते हैं। यह मानसिकता कहीं न कहीं अपराध को जन्म देती है।
मुसलमानों द्वारा की गई हत्या में गला काटने का लगभग एक ही पैटर्न देखने को मिलता है। तेज धारदार चाकू से गले, श्वास नली और गर्दन के चारों ओर की रक्त वाहिकाओं को काट देना। उजेफ हो, बदायूं के आयुष व आहान हों, उदयपुर का टेलर कन्हैया हो, दिल्ली का अंकित हो या कमलेश तिवारी सबकी हत्या एक ही तरीके से हुई।
कन्हैयालाल की हत्या को केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने तालिबानी बर्बरता, शैतानी क्रूरता और विकृत मानसिकता बताया था। नकवी ने यह भी कहा था कि ऐसे शैतानी क्राइम को कोई भी कम्युनिटी, कंट्री, क़ौम, बर्दाश्त नहीं कर सकती। वहीं स्कॉलर और केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने मदरसों की तालीम पर प्रश्न खड़े किए थे। आज एक बार फिर सभी के मन में अनेक प्रश्न उठ रहे हैं, बड़ा प्रश्न यही है कि इतनी क्रूरता आखिर आती कहॉं से है, कि कोई किसी को मारने के बाद उसका खून तक पिए।