गाड़िया लोहार समाज की बेटी का विवाह : स्वयंसेवकों ने किया कन्यादान, कहा हम सब एक

गाड़िया लोहार समाज की बेटी का विवाह : स्वयंसेवकों ने किया कन्यादान, कहा हम सब एक

 

गाड़िया लोहार समाज की बेटी का विवाह : स्वयंसेवकों ने किया कन्यादान, कहा हम सब एकगाड़िया लोहार समाज की बेटी का विवाह :  स्वयंसेवकों ने किया कन्यादान

इटावा (कोटा)। सामाजिक समरसता के लिए निरंतर कार्यरत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने शुक्रवार को इटावा में गाड़िया लोहार समाज की बेटी के विवाह में कन्यादान किया। इस अवसर पर जिला संघचालक गोपाल मीणा ने कहा कि आप और हम अलग नहीं हैं। आपके और हमारे महापुरुष एक हैं। हममें कोई छूत-अछूत नहीं है। हम सब एक हैं, हमारा रक्त का संबंध है।

राजस्थान के कोटा जिले के इटावा तहसील में रहने वाले बाबूलाल गाड़िया लोहार की बेटी पूजा का शुक्रवार को विवाह समारोह आयोजित हुआ। जिसमें समरसता का संदेश देते हुए आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने कन्यादान किया व बारातियों का स्वागत कर भोजन व्यवस्था संभाली तथा बाद में गाड़िया लोहार समाज के साथ भोजन किया।

गाड़िया लोहार समाज की बेटी का विवाह : स्वयंसेवकों ने किया कन्यादान, कहा हम सब एक, भोजन व्यवस्था संभाली, सबके साथ भोजन किया

संघचालक गोपाल मीणा ने कहा कि विमुक्त, घुमंतू, अर्द्धघुमंतू, जनजाति समाज को मुख्यधारा में लाना आवश्यक है। हमारा उद्देश्य सर्व विमुक्त घुमन्तू समाज के लोगों के उत्थान, कल्याण, विकास एवं उनकी समस्याओं के लिए कार्य करना है।

वहीं विमुक्त घुमंतू, अर्द्धघुमंतू जाति समाज के कोटा जिला संयोजक रमेश चंद नागर ने कहा कि घुमंतू समाज देशभक्त, स्वाभिमानी और सम्पन्न समाज है। आक्रांताओं से लड़ाई में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। घुमंतू समाज के लोग देश के आर्थिक, धार्मिक, स्वतंत्रता सेनानी हैं। उन्होंने आगे कहा कि देश के लिए इतने बलिदान देने के बाद भी 70 वर्षों से इस समाज को आधार कार्ड, जाति प्रमाण पत्र, वोटर आईडी कार्ड सहित अन्य छोटे-छोटे अधिकारों से वंचित रखा गया। रमेश चंद ने कहा कि वे मतांतरण के बहकावे में न आएं तथा सभी मिलकर अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाएं।

गाड़िया लोहार समाज का इतिहास 

इनके पूर्वज चित्तौड़ शासकों के सहयोगी के रूप में लुहारी का काम करते थे। 16 वीं शताब्दी तक ये मेवाड़ राज्य का हिस्सा थे और सामान्य जीवन जी रहे थे। लेकिन 1568 में चित्तौड़ पर अकबर के हमले के बाद ये लोग यहॉं से निकल गए और प्रतिज्ञा की कि जब तक चित्तौड़ पुराने वैभव को प्राप्त नहीं कर लेगा हम घर बनाकर नहीं रहेंगे, पलंग पर नहीं सोएंगे। तब से ही ये आज भी अपनी गाड़ियों में ही जीवन यापन कर रहे हैं। इसीलिए इन्हें गाड़िया लोहार कहा जाता है। ये लोहे का सामान बनाने में कुशल होते हैं। महाराणा सांगा के समय सेना के लिए हथियार बनाना व उनकी मरम्मत करना इनका काम था। बाद में जब अंग्रेजों ने बिना लाइसेंस शस्त्रों को रखने पर प्रतिबंध लगा दिया, तब से कृषि उपकरण व घरेलू उपयोग की वस्तुएं जैसे  कुल्हाड़ी, फावड़ा, तगारी, तवा, कढ़ाई, चिमटा, बाल्टी, गेट आदि बनाने लगे।

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