मानगढ़ धाम पर जुटे लोग चर्च व अंग्रेजों की विचारधारा से प्रभावित, फैला रहे वैचारिक प्रदूषण

मानगढ़ धाम पर जुटे लोग चर्च व अंग्रेजों की विचारधारा से प्रभावित, फैला रहे वैचारिक प्रदूषण

मानगढ़ धाम पर जुटे लोग चर्च व अंग्रेजों की विचारधारा से प्रभावित, फैला रहे वैचारिक प्रदूषणमानगढ़ धाम पर जुटे लोग चर्च व अंग्रेजों की विचारधारा से प्रभावित, फैला रहे वैचारिक प्रदूषण

उदयपुर, 19 जुलाई। 18 जुलाई को बांसवाड़ा जिले के ऐतिहासिक मानगढ़ धाम पर भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा द्वारा एक रैली का आयोजन किया गया। महारैली में राजस्थान समेत विभिन्न प्रदेशों से आए लोगों ने अलग भील प्रदेश बनाने की मांग रखी। मानगढ़ धाम पर बने स्मारक के पास आयोजित महारैली को बांसवाड़ा डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र के सांसद राजकुमार रोत समेत अनेक नेताओं ने संबोधित किया।

आदिवासी परिवार संस्था की संस्थापक सदस्य मेनका डामोर ने मंच से कहा कि आदिवासी महिलाएं पंडितों के बताए अनुसार न चलें। आदिवासी परिवार में सिंदूर नहीं लगाते, मंगलसूत्र नहीं पहनते। आदिवासी समाज की महिलाएं बालिकाएं शिक्षा पर फोकस करें। अब से सब व्रत-उपवास बंद कर दें। सम्मेलन में एक के बाद एक कई वक्ताओं ने कहा कि हमारा धर्म हिन्दू नहीं है। आदिवासियों का अलग धर्म है।

वहीं इन नेताओं के बयानों पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उदयपुर के सांसद डॉ. मन्नालाल रावत ने कहा कि आज कुछ लोग अलग राज्य की मांग को लेकर मानगढ़ धाम गए हैं, वे अंग्रेजों व चर्च के विचारों से प्रेरित हैं। वहां जाकर भ्रामक वातावरण बना रहे हैं। वहां जाने वाले एक संगठन के लोग हैं, जो केवल कट्टरता व जातिवाद का जहर फैलाने के राजनीतिक उद्देश्य से वहां गए हैं।

उन्होंने कहा कि कुछ लोग भ्रम फैला रहे हैं कि आदिवासी हिन्दू नहीं हैं। समाज और क्षेत्र को ऐसे तत्वों से सावधान रहना चाहिए। सामाजिक समरसता को खराब करने के लिए इस तरह की बातें नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जनजाति समाज तो वहां गया ही नहीं। मानगढ़ धाम आदिदेव, महादेव, आदिशक्ति का स्थान है, जहां जनजाति समाज अपनी सनातन परंपरा के अनुसार अपने गुरु के आदेश पर पूर्णिमा के दिन घी लेकर हवन करने के लिए गया था। इस जनजाति समाज का 1913 में अंग्रेजों ने भारी गोलाबारी कर नरसंहार किया था। आज जो लोग अलग राज्य की मांग को लेकर वहां गए हैं। वे उन्हीं नरसंहार करने वालों की राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं। रावत ने कहा कि केंद्र व राज्य सरकार ने स्थानीय जनजाति समाज व दक्षिणी राजस्थान के लिए लाभकारी योजनाएं दी हैं। उसकी बौखलाहट में ये तत्व वहां जा कर वैचारिक प्रदूषण फैला रहे हैं। मिशनरियों के प्रभाव में जनजाति समाज शुरू से ही षड्यंत्र का शिकार हुआ है। सन् 1950 में जब संविधान बना उस समय अनुसूचित जाति (एससी) की परिभाषा को लेकर राष्ट्रपति की ओर से जो नोटिफिकेशन जारी हुआ था, उसमें स्पष्ट था कि जो हिन्दू समाज का व्यक्ति है, वही अनुसूचित जाति का कहलाएगा।
उन्होंने कहा कि अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए भी यही प्रावधान लागू होना था। उसमें भी हिन्दू संस्कृति मानने वाले को ही जनजाति समाज का मानते हुए जनजाति आरक्षण का लाभ मिलना था। लेकिन, ईसाई मिशनरियों के प्रभाव में जनजाति समाज के साथ दोहरा मापदंड अपनाया गया। उन्होंने साफ कहा कि ईसाई मिशनरियों के प्रलोभन व दबाव में जनजाति समाज के जो लोग हिन्दू परम्परा व आस्था को छोड़ ईसाई या मुसलमान बन चुके हैं, अब वे जनजाति समाज का हिस्सा नहीं हैं, इसलिए उन्हें जनजाति आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। लेकिन वे आज भी यह लाभ ले रहे हैं, जो कि असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक, अमानवीय और अनैतिक है।
उन्होंने कहा कि इस तरह के कन्वर्टेड पांच प्रतिशत लोग ही जनजाति वर्ग के आरक्षण के असली पात्र 95 प्रतिशत लोगों का हक छीन रहे हैं। ऐसे अपात्र लोगों को चिन्हित करने के लिए देश के 22 राज्यों में आंदोलन चल रहा है, जिसे डी-लिस्टिंग आंदोलन कहा जा रहा है। इस डी-लिस्टिंग आंदोलन का विरोध करने वाले चर्च से प्रेरित विचारधारा से जुड़े हैं। उन्होंने बताया कि झाबुआ, झारखंड आदि राज्यों में ये लोग चिन्हित हो चुके हैं। अब यही लोग दक्षिणी राजस्थान में भी घुसपैठ कर रहे हैं। अब वे चर्च से प्रभावित स्थानीय संगठन के माध्यम से मानगढ़ धाम से सामाजिक एकता व समरसता को विखंडित करने के प्रयासों में जुटे हैं। राष्ट्र हित व सनातन संस्कृति को अक्षुण्ण रखने के लिए ऐसे तत्वों से सावधान रहने की आवश्यकता है।

महारैली पर समाज की भी प्रतिक्रिया आई। जनजाति समाज के बीच लम्बा समय बिताने वाली बांसवाड़ा की राजश्री, जो कि एक समाजसेवी हैं, ने कहा कि जनजाति समाज को बरगला कर कुछ लोग अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं। पहले उन्हें आदिवासी कहना, फिर आदिवासी ही मूलनिवासी हैं बताना और फिर आदिवासी हिन्दू नहीं है कहना, हिन्दू समाज को तोड़ने का एक गहरा षड्यंत्र है। रैली में अधिकांश वो लोग थे, जो कभी जनजाति समाज का हिस्सा थे, लेकिन अब वे जनजातीय परम्पराएं छोड़ कर या तो मुसलमान बन गए हैं या ईसाई। भील प्रदेश की मांग जनजाति समाज की नहीं बल्कि हिन्दू धर्म छोड़ चुके कन्वर्टेड ईसाइयों व मुसलमानों की है, जिसे भारत आदिवासी पार्टी हवा दे रही है।

कन्वर्जन से क्षुब्ध बाबा कार्तिक उरांव ने विभिन्न कार्यक्रमों में वनवासियों से कहा था कि ‘ईसा से हजारों वर्ष पहले जनजाति समाज में निषादराज गुह, माता शबरी, कण्णप्पा आदि हो चुके हैं, इससे पता चलता है हम सदैव हिन्दू थे और हिन्दू रहेंगे।’ जनजाति समाज हिन्दू ही है, यह तार्किक रूप से सिद्ध करने के लिए उन्होंने भारत के कोने कोने से उनके ‘पाहन’, गांव बूढ़ा’, टाना भगतों’ आदि धर्मध्वजधारियों को आमंत्रित किया और कहा, “आप अपने समुदायों में जन्म तथा विवाह जैसे अवसरों पर गाये जाने वाले मंगल गीत बताइए।”
फिर वहां सैकड़ों मंगल गीत गाये गये और सब में यही वर्णन मिला कि, “जसोदा मैया श्रीकृष्ण को पालना झूला रही हैं”, “सीता मैया राम जी को पुष्प वाटिका में निहार रही हैं”, “माता कौशल्या, रामजी को दूध पिला रही हैं”… आदि। यह ऐसा जबरदस्त प्रयोग था, जिसकी काट किसी के पास नहीं थी। जीवन के अंतिम वर्षों में कार्तिक उरांव ने स्पष्ट कहा था, “हम एकादशी को अन्न नहीं खाते, भगवान जगन्नाथ कि रथयात्रा, विजयदशमी, रामनवमी, रक्षाबंधन, देवोत्थान पर्व, होली, दीपावली…. हम सब धूमधाम से मनाते हैं। ‘ओ राम… ओ राम…’ कहते कहते हम ‘उरांव’ नाम से जाने गए। हम हिन्दू पैदा हुए, और हिन्दू ही मरेंगे।” कन्वर्जन के विरोध में 1967 में वे संसद में ‘अनुसूचित जाति / जनजाति आदेश संशोधन विधेयक 1967’ भी लेकर आए। लेकिन ईसाई मिशनरियों के दबाव के चलते इंदिरा गांधी ने उसे पास ही नहीं होने दिया।

Print Friendly, PDF & Email
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *