हलाल सर्टीफिकेट के पैरोकारों को नेमप्लेट स्वीकार नहीं

हलाल सर्टीफिकेट के पैरोकारों को नेमप्लेट स्वीकार नहीं

अजय सेतिया

हलाल सर्टीफिकेट के पैरोकारों को नेमप्लेट स्वीकार नहींहलाल सर्टीफिकेट के पैरोकारों को नेमप्लेट स्वीकार नहीं

आज से सावन का महीना शुरू हो रहा है। हिन्दुओं में जो लोग मांसाहारी हैं, वे भी इस माह में मांस का सेवन नहीं करते। हिन्दुओं के लिए यह अति पवित्र महीना है, क्योंकि इसी महीने में हरियाली अमावस्या, हरियाली तीज, रक्षाबंधन, नागपंचमी, कामिका एकादशी, सावन एकादशी, श्रावण पूर्णिमा आती हैं। इस माह हिन्दू सभी बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करते हैं। कावड़ यात्रा भी इसी महीने में होती है, जिसमें हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पवित्र नदियों का जल लाकर शिवालयों में शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। ज्यादातर लोग नंगे पैर ही कावड़ यात्रा करते हैं, कइयों के लिए यह सैकड़ों मील लंबी होती है। मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए गढ़मुक्तेशवर से पहली कावड़ यात्रा निकाली थी। 22 जुलाई से शुरू हो कर 2 अगस्त तक कावड़ यात्रा होगी, जबकि सावन का महीना 19 अगस्त को समाप्त होगा।

उत्तर और पश्चिम भारत में गंगा को सबसे पवित्र नदी माना जाता है, इसलिए इन दोनों क्षेत्रों के कावड़ यात्री हरिद्वार से गंगा जल लाकर अपने अपने स्थान पर शिवालयों में शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। मैदानी क्षेत्रों से मुजफ्फरनगर हरिद्वार का प्रवेश द्वार है, यही वह क्षेत्र है, जहां पिछले कई वर्षों से मुसलमानों ने हाईवे पर बड़ी संख्या में होटल ढाबे खोले हैं। लेकिन हिन्दू ग्राहकों को प्रभावित करने के लिए उनके नाम महालक्ष्मी ढाबा, भोलेनाथ ढाबा, शुद्ध वैष्णव ढाबा, महावीर, कृष्ण, श्रीराम, मां लक्ष्मी के नाम पर रखा है। जबकि जिन ढाबों पर वैष्णव और शुद्ध शाकाहारी लिखा होता है, वहां भी मांस-मछली पकता है, क्योंकि उसके मालिक और नौकर चाकर सब मांसाहारी होते हैं। इन्हीं मार्गों पर अपने होटल व ढाबे चलाने वाले हिन्दू लाचार हैं, क्योंकि प्रशासन के पास कोई अधिकार नहीं कि वह किसी को ये धार्मिक नाम रखने से रोक सके। हिन्दुओं के साथ यह घोखा कई दशकों से होता चला आ रहा था। डिजिटल पेमेंट ने इस धोखे की पोल खोल कर रख दी, क्योंकि खाना खाने, चाय पीने, या पानी की बोतल खरीदने के बाद जब डिजिटल पेमेंट करते समय नाम सामने आता है, तो पता चलता है कि महालक्ष्मी ढाबे का मालिक कोई अब्दुल है, और वहां मांसाहारी भोजन भी मिलता है। पिछले कुछ वर्षों में इस मुद्दे पर कांवड़ियों और इन होटल ढाबे वालों में सैकड़ों बार झगड़े हो चुके हैं, कई बार तो झगड़े खून खराबे में भी बदल गए। इन झगड़ों के कारण हिन्दू मुस्लिम दंगे भी हुए और दो-दो, तीन-तीन दिन का जाम भी लगा। मुजफ्फरनगर एक संवेदनशील क्षेत्र है, जहां मुसलमानों की जनसंख्या 42 प्रतिशत है, बगल के कैराना में तो 80 प्रतिशत मुस्लिम हैं, इसके अलावा आसपास के खतौली, बुढाना, कांडला, थाना भवन, सर्वांत, पुरकाजी, जलालाबाद, चरथावल, शाहपुर, जानसठ, झिंझाना में तो मुसलमानों की जनसंख्या 50 प्रतिशत से अधिक है। हर वर्ष के झगड़ों, मारपीट, दंगों से परेशान मुजफ्फरनगर के प्रशासन ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ से बातचीत करके एक सुगम हल निकाला कि सभी दुकानदारों को अपनी दुकान के मालिक का असली नाम और मोबाइल नंबर लिखने के लिए कहा जाए।

17 जुलाई को मुजफ्फनगर प्रशासन की ओर से दुकानदारों और रेहड़ी वालों को जैसे ही यह निर्देश जारी किया गया, देश में बवाल मच गया। सबसे पहले असदुद्दीन औवेसी ने इसे मुसलमानों के सामाजिक बहिष्कार की संज्ञा दी, ये वही असदुद्दीन ओवेसी हैं, जो मुसलमानों की अलग पहचान की सबसे अधिक वकालत करते हैं। अपनी मुस्लिम पहचान बनाए रखने के लिए वह गर्मियों में भी अचकन पहनते हैं। वह भारत की संसद में संविधान की शपथ लेते हुए भारत माता की जय बोलने से इनकार करते हैं, लेकिन फिलिस्तीन जिंदाबाद का नारा लगाते हैं। उसके बाद कांग्रेस ने इसे मुसलमानों का आर्थिक बहिष्कार बताया, फिर अखिलेश यादव और मायावती ने भी एतराज जताया। बीच में देश और दुनिया को ज्ञान देने वाले जावेद अख्तर भी कूद पड़े। कोविड के दौरान समाज सेवा के लिए स्वयं को लाइम लाइट में लाने वाले कांग्रेसी सोनू सूद भी सेक्युलरिज्म का पाठ पढ़ाने आ गए। सारा तथाकथित सेक्युलर गैंग मुसलमानों के नाम छिपाने को उचित ठहराने के लिए मैदान में उतर आया है। जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने इस निर्णय को अनुचित, पूर्वाग्रह आधारित व भेदभावपूर्ण बताया है। शाहीन बाग और किसान आन्दोलन के समय अपने यूट्यूब चैनलों को चमकाने वाले देश के वातावरण को विषैला करने के लिए मुजफ्फरनगर पहुंच चुके हैं।

2006 में मुलायम सिंह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे, उन्होंने विधानसभा से एक बिल पास करवाया था, जिसका नाम था खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम। इस अधिनियम के अनुसार सभी होटलों, रेस्टोरेंट और ढाबा मालिकों को अपनी फर्म का नाम, स्वयं का नाम, लाइसेंस संख्या और रेट लिस्ट लगाना अनिवार्य किया गया था। जागो ग्राहक जागो अभियान में ये सभी शर्तें अनिवार्य की गई हैं। ये स्वयं को सेक्युलर कहने वाले बुद्धिजीवी कितने सेक्युलर हैं, इसका प्रमाण यह है कि मणिशंकर अय्यर के भाई स्वामीनाथन अय्यर ने 21 जुलाई को टाईम्स ऑफ इंडिया में लिखे अपने लेख में मुलायम सरकार की ओर से बनाए गए कानून को लागू करने के योगी सरकार के आदेश को ‘सबका साथ’ की भावना के विरुद्ध और हिटलरशाही बताया है। कभी नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यानाथ की समर्थक रही, लेकिन बाद में अपने पाकिस्तानी बेटे को भारत की नागरिकता दिलाने में विफल रहने पर मोदी और योगी की विरोधी बन चुकी तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में योगी सरकार के निर्णय को मुस्लिम विरोधी बताया है।

यह कैसा सेकुलरिज्म है कि बुरके, हिजाब, और गोल टोपी को तो अपनी पहचान बताया जाता है, लेकिन नाम जो व्यक्ति की असली पहचान है, उसे धंधे के लिए छुपाया जाता है। मुसलमानों को तो पूरा अधिकार है कि वह क्या खा रहा है, उसे पता होना चाहिए, इसलिए वे हलाल सर्टिफिकेट बांटते हैं। यहां तक कि अखाद्य पदाथों पर भी हलाल सर्टिफिकेट दिया जाता है, ताकि मुसलमान गैर हिन्दुओं से न खरीदें। अगर मुसलमानों को यह जानने का अधिकार है कि वे जो खा रहे है, या खरीद रहे हैं, वह उनकी मजहबी मान्यताओं के अनुसार है या नहीं, तो हिन्दुओं को यह जानने का अधिकार क्यों नहीं है कि सावन के पवित्र महीने में वे जो खा रहे हैं, वह उनकी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सात्विक है या नहीं। जो चीज गैर कानूनी तरीके से चल रही है, उसका ये तथाकथित सेक्युलर हिन्दू विरोध नहीं करेंगे। हलाल सर्टिफिकेट सरकार नहीं देती, यह पूरी तरह से गैर कानूनी है। ये सेकुलरिज्म के झंडाबरदार गैर कानूनी हलाल सर्टिफिकेट का विरोध नहीं करेंगे। लेकिन यदि बेचने वाले का नाम लिख दिया जाए, तो वह सांप्रदायिकता है।

मुसलमान हलाल खाते हैं, यहूदी अपनी प्रथा के अनुसार बनाए गए कोशेर खाते हैं। मुसलमान खाने से पहले पूछते हैं कि दुकान किस की है, वहां हलाल मिलता है या नहीं, यह तो सेकुलरिज्म है। कभी किसी तथाकथित सेक्युलर तवलीन सिंह या स्वामीनाथन अय्यर ने मुसलमानों की इस साम्प्रदायिकता पर प्रश्न नहीं उठाया। लेकिन हिन्दुओं को यह जानने का अधिकार नहीं है कि वे अपने धार्मिक पवित्रता वाले महीने में कहां से खा रहे हैं और क्या खा रहे हैं, जो खा रहे हैं वह उनकी मान्यताओं के अनुसार है भी या नहीं। क्या वे यह समझते हैं कि मुसलमानों को अपनी मजहबी मान्यताओं के अनुसार खाने पीने का अधिकार है, लेकिन हिन्दुओं को यह अधिकार नहीं दिया जा सकता, क्योंकि यह उनका स्वयं का देश है। योगी आदित्यानाथ का दुकानों, होटलों, ढाबों, रेहड़ियों पर नाम लिखने का आदेश कानून सम्मत तो है ही, हिन्दुओं को उनकी तीर्थ यात्रा के दौरान पवित्रता बनाए रखने में सहायक भी है। हिन्दू भी तय कर सकता है कि उसे क्या खाना है, और कहां से खाना है। इसे मुस्लिम विरोधी कैसे कहा जा सकता है।

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