जनजाति समाज का हरिद्वार, गौतमेश्वर तीर्थ

जनजाति समाज का हरिद्वार, गौतमेश्वर तीर्थ

जनजाति समाज का हरिद्वार, गौतमेश्वर तीर्थजनजाति समाज का हरिद्वार, गौतमेश्वर तीर्थ

सावन का महीना चल रहा है। जनजाति समाज का हरिद्वार कहा जाने वाला गौतमेश्वर तीर्थ श्रद्धालुओं से शोभायमान है। यह तीर्थ प्रतापगढ़ जिले के अरनोद उपखंड क्षेत्र में स्थित है। यहॉं भगवान शिव के अति प्राचीन मंदिर गौतमेश्वर महादेव मंदिर के साथ ही अन्य देवी-देवताओं, जैसे- एकलिंग जी, कालिका माता, हनुमानजी, अन्नपूर्णा माता व सूर्य नारायण के मंदिर भी हैं। यह स्थान दक्षिणी राजस्थान के कांठल, वागड़, मालवा समेत आसपास के क्षेत्रों के जनजाति समाज की श्रद्धा का मुख्य केंद्र है। यहां सावन के सोमवारों, महाशिवरात्रि और दीवाली पर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। प्रति वर्ष वैशाखी पूर्णिमा पर यहॉं सात दिन का एक मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से बड़ी संख्या में जनजाति समाज के लोग पारंपरिक वेशभूषा में सज धज कर आते हैं और भगवान को प्रसन्न करने के लिए ढोलक की थाप पर नृत्य करते हैं व भजन गाते हैं। अन्य हिन्दू तीर्थों की भांति ही यह तीर्थ भी सामाजिक समरसता का अद्भुत उदाहरण है। इस मेले में पॉलिथिन व नशा पूर्णतया प्रतिबंधित है।

यहां एक कुंड है, जिसे पापमोचनी गंगाकुंड या मंदाकिनी कुंड कहा जाता है। मान्यता है कि जब गौतम ऋषि को गोहत्या का पाप लगा था, तब इसी गंगाकुंड में स्नान करने से वे पाप मुक्त हुए थे। आज भी लोग गिलहरी, टिटहरी, गो आदि की हत्या होने पर प्रायश्चित करने यहॉं आते हैं और कुंड में डुबकी लगाते हैं। पापमोचनी गंगाकुंड के बाहर एक बोर्ड लगा है, जिस पर शृंग बोध से ली गई सूचना अंकित है। जिसमें लिखा है कि यह स्थान त्रेता युग में महर्षि श्रृंग की तप स्थली रही है। उनके तप से यहां गंगा प्रकट हुई थीं। इस पवित्र कुंड में स्नान करने से न्याय शास्त्र के प्रणेता महर्षि गौतम को गो-हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी।

यहां पंच दशनाम जूना दत्त अखाड़े का एक प्राचीन मठ भी है, जिसमें अखंड धूणी जलती है।

कुंड के पास ही आसपास के क्षेत्र के 12 गांवों का शमशान है। जनजाति अंचल के लोग यहां अपने परिजनों का दाह संस्कार कर उनकी अस्थियों का विसर्जन इसी कुंड में करते हैं।

होती है खंडित शिवलिंग की पूजा
गौतमेश्वर महादेव मंदिर का शिवलिंग खंडित है। हिन्दू मान्यता के अनुसार खंडित शिवलिंग की पूजा नहीं की जाती है। लेकिन गौतमेश्वर शिवालय का शिवलिंग खंडित होने के बाद भी पूजनीय है।

शिवलिंग के खंडित होने की प्रचलित कहानी
कहा जाता है कि मोहम्मद गजनवी जब मंदिरों पर आक्रमण करते हुए यहां पहुंचा तो उसने गौतमेश्वर महादेव शिवलिंग को भी खंडित करने का प्रयास किया । शिवलिंग पर प्रहार करने पर पहले तो शिवलिंग से दूध की धारा निकली, दूसरे प्रहार पर उसमें से दही की धारा निकली। इसके बाद जब गजनवी ने तीसरा प्रहार किया तो शिवलिंग से आंधी की तरह मधुमक्खियों का झुंड निकला, जिसने गजनवी सहित उसकी सेना पर हमला बोल दिया। गजनवी ने शिवलिंग के सामने शीश नवाया और मंदिर का पुन: निर्माण करवाया।

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *