जिहादियों के प्रति माननीयों के रुख पर लगते प्रश्नचिन्ह

जिहादियों के प्रति माननीयों के रुख पर लगते प्रश्नचिन्ह

जिहादियों के प्रति माननीयों के रुख पर लगते प्रश्नचिन्हजिहादियों के प्रति माननीयों के रुख पर लगते प्रश्नचिन्ह

रितू मीणा अतिरिक्त जिला न्यायाधीश अजमेर ने अजमेर दरगाह के खादिम गौहर चिश्ती सहित 6 लोगों को दरगाह के बाहर सिर तन से जुदा के नारे लगाने वाले मामले में पर्याप्त सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। एक आरोपी अहसानुल्लाह आज तक फरार है। इसने गौहर चिश्ती को हैदराबाद में अपने पास शरण दी थी। वैसे देखा जाए तो नारे लगाने पर केस दर्ज होने के बाद गौहर चिश्ती का फरार होना भी गुनाह का एक सबूत था। लेकिन न्यायाधीश रितु मीणा ने इस पर ध्यान क्यों नहीं दिया, यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है? न्यायाधीश ने कहा कि कथित वीडियो जिसमें नारे लगाए गए, उसका सत्यापन अदालत में नहीं हुआ। न्यायाधीश ने कहा पुलिस ने मौके का नक्शा नहीं बनाया और जो पुलिस वाले मौके पर उपस्थित थे, वे अपनी उपस्थिति के दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सके।

क्रिमिनल केस में हर कोई जानता है कि सबूतों की व्याख्या हर किसी व्यक्ति के विवेक पर निर्भर करती है, एक व्यक्ति की दृष्टि में सबूत और गवाह का बयान सही होता है तो दूसरे की दृष्टि में गलत। विवेचना का भी अपना अपना दृष्टिकोण होता है। प्रभावशाली आरोपियों के मामले में लालच और डर भी एक पहलू होते हैं। न्यायाधीश भी आरोपियों के ही शहर अजमेर की रहने वाली हैं। निर्णय देते समय उनकी मानसिकता क्या थी, यह तो वे ही जानती हैं।

वैसे यह कोई पहला या आखिरी मामला नहीं है। सबूत के अभाव में 100 करोड़ हिन्दुओं के कत्ल की धमकी देने वाले अकबरुद्दीन ओवैसी को भी बरी कर दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायाधीश पारदीवाला ने नूपुर शर्मा के विरुद्ध जिस तरह से बोला था, उसे सुनकर देश के हर व्यक्ति को लगा था कि उनके पास नूपुर शर्मा के विरुद्ध कन्हैयालाल की हत्या के लिए जिम्मेदार होने के पुख्ता सबूत हैं। दोनों न्यायाधीशों ने कहा था, “she had a loose tongue and that set the entire country on fire.“ उन्होंने यह भी कहा, “this lady is single-handedly responsible for what is happening in the country.” उन्होंने टिप्पणी की, “She has a threat or she has become a security threat? The way she has ignited emotions across the country.”उन्होंने नूपुर को कन्हैया की हत्या के लिए सीधे जिम्मेदार ठहरा दिया और यहॉं तक कहा कि नूपुर शर्मा पूरे देश से माफी मांगें। नूपुर शर्मा ने तो वही कहा जो मजहबी पुस्तक में लिखा है। दूसरी ओर वास्तव में हेट स्पीच द्वारा हत्या के लिए उकसाने वालों को कोर्ट ने छोड़ दिया। कभी कभी ऐसा लगता है कि शीर्ष न्यायालय में बैठे कुछ जज कहीं किसी टूल किट का हिस्सा तो नहीं? वे हिन्दू हितों पर जैसे कुठाराघात करते हैं, उससे इस सोच को और बल मिलता है। नूपुर शर्मा मामले में भी 15 रिटायर्ड न्यायधीशों, 77 रिटायर्ड वरिष्ठ नौकरशाहों और आर्मी के 25 रिटायर्ड अधिकारियों ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिख कर दोनों न्यायधीशों के बयानों की घोर निंदा कर उनसे अपने बयान वापस लेने को कहा था, लेकिन वे टस से मस नहीं हुए।

इसी प्रकार लोगों को तब भी आश्चर्य हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट के दो जजों अभय ओक और अगस्टिन जॉर्ज मसीह ने कमलेश तिवारी की कलमा पढ़कर इस्लामिक रीति से गला काटे जाने की योजना बनाने वाले तथा हत्यारों को हथियार उपलब्ध करवाने वाले मुख्य आरोपी व षड्यंत्रकारी सैयद कासिम अली को जमानत पर रिहा कर दिया था।

सैयद कासिम अली ने न केवल हत्या करने की पूरी योजना बनायी बल्कि एक मुस्लिम व्हाट्सएप ग्रुप में सूरत के दो युवकों को इस काम के लिए तैयार भी किया। उन्हें लखनऊ बुलाया और आगे का षड्यंत्र रचा। कोर्ट ने इतने बड़े क्रिमिनल अपराधी को जमानत दे दी। सुप्रीम कोर्ट का कहना था, वह साढ़े चार वर्षों से जेल में है। उसका कोई पुराना आपराधिक रिकार्ड नहीं है। जबकि लखनऊ की निचली अदालत और इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सारे सबूत देखकर कहा था कि यह बहुत जघन्य हत्याकांड है और सैयद कासिम अली बहुत खूंखार अपराधी है। ऐसे दरिंदे को जमानत पर रिहा करना उचित नहीं है।

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