राजस्थान में बढ़ती मुस्लिम आक्रामकता चिंता का विषय
राजस्थान में बढ़ती मुस्लिम आक्रामकता चिंता का विषय
जयपुर। राजस्थान को देश के सबसे शांत और सुरक्षित प्रदेशों में गिना जाता है। इसका कारण यहां की संस्कृति, वाणी की मिठास और परिवार से मिले संस्कार हैं। गांवों में तो आज भी अनजान व्यक्ति तक को आश्रय देने की परंपरा देखी जा सकती है। लेकिन कुछ वर्षों में बढ़ते अपराध और हिंसक घटनाओं के चलते राजस्थान की साख धूमिल हुई है। इसके बहुत से कारण हो सकते हैं, लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण शहरों और कस्बों की बदलती डेमोग्राफी है। जहां-जहां मुस्लिम जनसंख्या बढ़ी है, वहां चेन और मोबाइल स्नेचिंग, वाहन चोरी, बालिकाओं से छेड़छाड़ और बलात्कार तथा अन्य आपराधिक मामलों में वृद्धि दर्ज की गई है। पुलिस थानों में अपराधियों पर दर्ज मामलों में भी इनकी बहुतायत देखी जा सकती है। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हिन्दुओं के साथ विवाद तो जैसे आम बात हो गई है। अक्सर देखने में आता है कि हिन्दू बहुल क्षेत्रों में मुसलमान परिवार तो आराम से रहते हैं, लेकिन मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हिन्दू परिवार और उनकी बहू बेटियां बिल्कुल सुरक्षित नहीं। मुस्लिम युवाओं और बच्चों तक में हिन्दुओं के प्रति घृणा के उदाहरण देखने को मिलते हैं।
ताजा मामला उदयपुर जिले का है। यहां के एक विद्यालय में 16 अगस्त 2024 को दसवीं कक्षा के एक नाबालिग मुस्लिम छात्र ने अपने सहपाठी हिन्दू छात्र पर चाकू से ताबड़तोड़ वार कर उसे घायल कर दिया। घायल छात्र ने घटना के तीन दिन बाद रक्षाबंधन के दिन अस्पताल में दम तोड़ दिया। चिंता की बात यह है कि मुस्लिम नाबालिग ने हत्या में प्रयुक्त धारदार चाकू अपने अब्बू के साथ कपासन मेले से खरीदा था। अब्बू ने पैसे दिए, लेकिन चाकू खरीदने का कारण पूछने की आवश्यकता तक नहीं समझी। इसी से पता चलता है कि मुस्लिम परिवारों में बच्चों की परवरिश किस प्रकार होती है। चाकू मारने की यह घटना इतनी वीभत्स थी कि सबको कन्हैयालाल हत्याकांड की यादें ताजा हो गईं।
16 अगस्त 2024 की शाम को ही मुस्लिम युवकों ने जयपुर में एक हिन्दू व्यक्ति को इतना मारा कि उसकी मौत हो गई। बात इतनी सी थी कि ई-रिक्शा सवार तीन मुस्लिम युवकों और स्कूटी सवार दो हिन्दू युवकों के बीच गाड़ी को आगे-पीछे करने को लेकर कहासुनी हो गई। इसके बाद ई-रिक्शा सवार तीनों मुस्लिम युवकों ने हिन्दू युवकों की जमकर पिटाई कर दी। थोड़ी ही देर बाद 36 साल के दिनेश स्वामी को बेचैनी होने लगी तो उसे कावंटिया हॉस्पिटल लेकर गए, जहां उसकी मौत हो गई।
इससे पहले 15 अगस्त की रात को कोटा के थाना कैथून क्षेत्र के मोतीपुरा गांव में स्थित श्रीनाथ के चरण चौकी मन्दिर के पुजारी की हत्या का प्रयास किया गया। पुजारी ने मंदिर के पास बह रहे पानी में मांसाहारी खाने के अपशिष्ट व बर्तन धोने से मना किया तो मुसलमान युवक चाकू लेकर पुजारी को मारने के लिए मंदिर में घुस गए। पुजारी ने कमरे में बंद होकर जैसे तैसे जान बचाई।
इसी प्रकार करौली में 29 जुलाई को 15-20 मुसलमानों ने एक हिन्दू युवक के साथ मारपीट की।
बात बात में मार पीट पर उतारू मुसलमानों की दबंगई इतनी बढ़ गई है कि कोई हिन्दू मुस्लिम पड़ोसी के पास चैन से नहीं रह सकता। वे उसे परेशान करके घर खाली करके जाने या बेचने के लिए विवश कर देते हैं। ऐसे ही एक मामले में उदयपुर शहर के हिन्दू समाज और अखिल भारतीय खटीक समाज राजस्थान ने जिला पुलिस अधीक्षक को एक ज्ञापन देकर अवगत कराया है कि “किशनलाल को पड़ोसी आसीन गत दो वर्ष से परेशान कर घर छोड़कर जाने का दबाव बना रहा है। आसीन कहता है कि यहां से चुपचाप चला जा नहीं तो मुस्लिम जमात मिलकर तेरा सिर तन से जुदा कर देगी।”
आखिर क्यों बढ़ रही मुस्लिमों में आक्रामकता
मुस्लिम अपने बच्चों को बचपन से ही कट्टरता का पाठ पढ़ाते हैं। रही सही कसर इनके मदरसे पूरी कर देते हैं। मदरसों में बच्चों का ऐसा ब्रेन वॉश किया जाता है कि उन्हें गैर मुस्लिम काफिर नजर आता है। साथ ही अपने भोजन के लिए बेजुबान पशुओं को निर्दयता से काटना, इन्हें हिंसक बनाता है। यही सोच लेकर ये बड़े होते हैं और फिर छोटी-छोटी बातों में आक्रामक हो जाते हैं।
मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ने का परिणाम
एक शोध के अनुसार, जब तक मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश, प्रदेश और क्षेत्र में लगभग 2 प्रतिशत के आसपास होती है, तब तक वे एकदम शांति से कानून पसंद अल्पसंख्यक बन कर रहते हैं। किसी को विशेष शिकायत का अवसर नहीं देते। जब इनकी जनसंख्या 2 से 5 प्रतिशत के आसपास पहुंच जाती है, तब ये बहुसंख्यकों बीच इस्लाम का प्रचार शुरू कर देते हैं। जब इनकी संख्या 5 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब वे अपने अनुपात के हिसाब से अन्य धर्म के लोगों पर दबाव बढ़ाने लगते हैं। उदाहरण के लिए वे सरकारों और शॉपिंग मॉल पर हलाल का मांस रखने का दबाव बनाने का प्रयास करते हैं और जनसंख्या 8 से 10 प्रतिशत होते ही ये शरीया कानून की दुहाई देने लगते हैं। 10 प्रतिशत से अधिक होते ही ये कानून व्यवस्था के लिए परेशानी पैदा करना शुरू कर देते हैं। छोटी-छोटी बातों को लेकर दंगे, तोड़-फोड़ आदि पर उतर आते हैं। यह संख्या 18-20 प्रतिशत होने के बाद तो असहिष्णुता और मजहबी हत्याओं का दौर शुरू हो जाता है। किसी देश में जब मुसलमान बाकी जनसंख्या का 80 प्रतिशत हो जाते हैं, तो उस देश में सत्ता या शासन प्रायोजित मजहबी सफाई की जाती है। तब अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है। सभी प्रकार के हथकंडे अपनाकर जनसंख्या को 100 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता है।
विश्व में बढ़ती मुस्लिम जिहाद की आक्रमकता अब हमारे राजस्थान में भी बेहद चिंतित करने वाला विषय है। इस पर अतिशीघ्र कानूनी लगाम आवश्यक है!