अवनी दो स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पैरालिंपियन बनीं

अवनी दो स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पैरालिंपियन बनीं

अवनी दो स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पैरालिंपियन बनींअवनी दो स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पैरालिंपियन बनीं

जयपुर। राजस्थान की बेटी अवनी लेखरा ने एक बार पुन: इतिहास रचते हुए शुक्रवार को पेरिस पैरालिंपिक 2024 में महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल शूटिंग में दूसरा गोल्ड मेडल अपने नाम कर लिया। उन्होंने 249.7 अंकों का नया पैरालिंपिक रिकॉर्ड बनाते हुए टोक्यो के अपने 249.6 अंकों का रिकॉर्ड तोड़ दिया और वे दो स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पैरालिंपियन बन गईं। अवनी ने अपनी इस प्रेरणादायक यात्रा के माध्यम से न केवल देश का मान बढ़ाया है, बल्कि अपने संघर्ष और साहस का उदाहरण भी प्रस्तुत किया है। अवनी ने शूटिंग को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया और इसमें अद्वितीय महारत प्राप्त की।

अवनी लेखरा की उपलब्धियां 

अवनी विश्व कप में भी दो स्वर्ण सहित तीन पदक जीत चुकी हैं। उन्होंने 2022 फ्रांस में हुए विश्व कप में महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल एसएच1 स्पर्धा में और 50 मीटर राइफल थ्री पोजिशंस एसएच1 स्पर्धा में स्वर्ण जीता था। 2022 में दक्षिण कोरिया में हुए विश्व कप में महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में रजत पदक अपने नाम किया था। साथ ही वह 2022 एशियाई पैरा गेम्स में इसी स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं। 2021 में उन्हें खेल रत्न अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। उन्हें जीक्यू इंडिया द्वारा 2021 में यंग इंडियन ऑफ द ईयर अवॉर्ड दिया गया था। 2021 में ही उन्हें अंतरराष्ट्रीय पैरालिंपिक कमेटी द्वारा बेस्ट फीमेल डेब्यू अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। 2022 में अवनी पद्मश्री से सम्मानित हो चुकी हैं। अवनी ने यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान से लॉ की डिग्री प्राप्त की है। शूटिंग में उन्होंने जूनियर और सीनियर लेवल का वर्ल्ड रिकॉर्ड भी अपने नाम किया है।

संघर्ष और प्रारंभिक जीवन

अवनी का जन्म 8 नवंबर 2001 को जयपुर, राजस्थान में हुआ था। 11 वर्ष की आयु में एक कार दुर्घटना में उनकी रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट लगी, जिससे वह स्थायी रूप से व्हीलचेयर पर आ गईं। इस घटना ने उनके जीवन को पूरी तरह बदल दिया, लेकिन अवनी ने हार मानने के स्थान पर इस चुनौती को स्वीकार किया। उनके माता-पिता उनकी प्रेरणा बने। अवनी ने भी न केवल अपनी विकलांगता को स्वीकार किया बल्कि उसे अपनी शक्ति बना लिया। अवनी का मानना है कि “कठिनाइयाँ केवल हमारे रास्ते में अस्थायी बाधाएँ होती हैं, जो हमें और मजबूत बनाती हैं।” यह आत्मबल ही है जिसने उन्हें विश्व के सबसे बड़े खेल मंचों पर स्वर्ण पदक जीतने का आत्मविश्वास दिया। अवनी लेखरा आज लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन चुकी हैं। उनका जीवन यह संदेश देता है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, साहस और दृढ़ निश्चय से हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। अवनी की कहानी हमें यह सिखाती है कि कभी हार मत मानो और हमेशा अपने सपनों का पीछा करो। अवनी लेखरा का संघर्ष और सफलता उन सभी के लिए एक प्रेरणा है जो जीवन में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।

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