पांडवों ने बनवाया था पांडुपोल हनुमान मंदिर, यहीं बिताया था अज्ञातवास, अब लगता है मेला

पांडवों ने बनवाया था पांडुपोल हनुमान मंदिर, यहीं बिताया था अज्ञातवास, अब लगता है मेला

पांडवों ने बनवाया था पांडुपोल हनुमान मंदिर, यहीं बिताया था अज्ञातवास, अब लगता है मेलापांडवों ने बनवाया था पांडुपोल हनुमान मंदिर, यहीं बिताया था अज्ञातवास, अब लगता है मेला

पांडुपोल का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इसका उल्लेख महाभारत से जुड़ी कथाओं में मिलता है। महाभारत के अनुसार, पांडव पुत्र अपना बारह वर्ष का वनवास पूरा करने के बाद अज्ञातवास का एक वर्ष पूरा करने यहां आए थे। उस समय उनकी राह में एक पहाड़ी आ गई, जिससे उनका आगे का मार्ग अवरुद्ध हो गया। तब कुंती ने अपने पुत्रों से पहाड़ी को तोड़ रास्ता बनाने को कहा। माता का आदेश सुनते ही महाबली भीम ने अपनी गदा से एक भरपूर प्रहार किया, जिससे पहाड़ी टूट गई और एक दरवाजा जैसा बन गया, इस दरवाजे को ही पांडुपोल कहा जाता है।

जिस स्थान पर हनुमान जी ने तोड़ा महाबली भीम का घमण्ड, वहीं बना है मंदिर

भीम के पौरुष भरे कार्य को देख कर उनकी माता और भाई प्रशंसा करने लगे, इससे भीम के मन में अहंकार पैदा हो गया। भीम का यह अहंकार तोड़ने के लिए हनुमानजी ने योजना बनाई और आगे बढ़ रहे पांडवों के रास्ते में बूढ़े वानर का रूप रखकर लेट गए। जब पांडवों ने देखा कि जिस राह से उन्हें गुजरना है, वहां एक बूढा वानर आराम कर रहा है तो उन्होंने आग्रह किया कि वह उनका रास्ता छोड़ कहीं और जाकर विश्राम करे। पांडवों की बात सुन वानर ने कहा कि वह बूढ़ा होने के कारण हिल नहीं सकता। अतः पांडव किसी दूसरे रास्ते से निकल जाएं।

अपने अहंकार में चूर भीम को वानर की यह बात अच्छी नहीं लगी और वे उसे ललकारने लगे। भीम की ललकार सुन वानर ने बड़े ही नम्र भाव से कहा कि वे उसकी पूंछ को हटाकर निकल जाएं। लेकिन भीम पूंछ को हटाना तो दूर हिला भी न सके। इससे भीम समझ गए कि यह कोई साधारण वानर नहीं है। भीम ने हाथ जोड़ कर वृद्ध वानर को अपने वास्तविक रूप में प्रकट होने की विनती की। इस पर वानर ने अपना वास्तविक रूप प्रकट कर अपना परिचय हनुमान के रूप में दिया। तब सभी पांडवों ने हनुमान जी की लेटे हुए रूप में ही पूजा अर्चना की और बाद में इसी स्थान पर उनका एक मंदिर बनवाया, जो आज पांडुपोल हनुमान मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।

मेले का आयोजन

पांडुपोल हनुमान मंदिर का मेला अलवर का एक लोकप्रिय मेला है जो हर वर्ष भादों शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भरता है। इस मेले में हनुमान भक्तों का तांता लगता है और दूर दूर से लाखों की संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं।

धार्मिक अनुष्ठान और गतिविधियाँ

मेले में आने वाले भक्तजन भगवान हनुमान के समक्ष विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। यहां का मुख्य आकर्षण “सवामनी” का आयोजन होता है, जिसमें भक्तजन भगवान को विशेष प्रसाद अर्पित करते हैं। इसके साथ ही, मेले में कीर्तन, भजन और धार्मिक प्रवचन भी होते हैं, जो पूरे वातावरण को भक्तिमय बना देते हैं। भक्तजन यहां आकर विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं और अपने कष्टों से मुक्ति पाने की कामना करते हैं।

सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

पांडुपोल मेला न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह मेला स्थानीय समुदायों के बीच आपसी मेलजोल, संस्कृति और परंपराओं के आदान-प्रदान का एक केंद्र है। मेले में विभिन्न प्रकार की लोक कलाओं, जैसे नृत्य, संगीत और हस्तशिल्प आदि का प्रदर्शन भी किया जाता है। मेले में लगने वाली विभिन्न प्रकार की दुकानें और खेल-तमाशे इस आयोजन को जीवंत बना देते हैं।

पर्यावरणीय दृष्टिकोण

चूंकि पांडुपोल सरिस्का अभयारण्य के भीतर स्थित है, इसलिए इस मेले के दौरान पर्यावरण की सुरक्षा के लिए विशेष उपाय किए जाते हैं ताकि वन्यजीवों और प्राकृतिक संतुलन को कोई हानि न पहुंचे।

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