हिन्दू समाज को एक सूत्र में पिरोने का अनुकरणीय काम कर रही सेवा भारती

हिन्दू समाज को एक सूत्र में पिरोने का अनुकरणीय काम कर रही सेवा भारती

साध्वी ऋतम्भरा

हिन्दू समाज को एक सूत्र में पिरोने का अनुकरणीय काम कर रही सेवा भारतीहिन्दू समाज को एक सूत्र में पिरोने का अनुकरणीय काम कर रही सेवा भारती

बात उन दिनों की है जब भारत का स्वाधीनता संग्राम अपने निर्णायक दौर में था। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए पूरे भारत में बलिदानों की जैसे होड़ सी लगी हुई थी। स्वाधीनता का वह संघर्ष जितना तीव्र होता जा रहा था, उसका दमन करने के लिए आततायी ब्रिटिश सरकार उतनी ही तीव्र गति से स्वाधीनता सेनानियों पर अत्याचार कर रही थी।

अंडमान की सेल्यूलर जेल फिरंगियों का सबसे बड़ा यातना घर था। सैकड़ों क्रान्तिकारियों को वहां मार दिया गया था। जो बचे थे वे अंग्रेजों की क्रूर यातनाओं को सहकर स्वाधीनता की भोर की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्हीं में से एक महान क्रान्तिकारी थे वीर सावरकर। वे दृढ़तापूर्वक उस भयानक जेल में क्रान्तिकारियों का नेतृत्व कर उनमें जीवन को जाग्रत रखे हुए थे। अंग्रेजों का चाटुकार, दुष्ट और अत्याचारी मूसा खां उस जेल का जेलर था। भारतीयों पर भयंकर अत्याचार और विशेषकर हिन्दुओं को प्रताड़ित करना उसकी दिनचर्या में सम्मिलित था। वह हिन्दुओं में दरार डालने का हर संभव प्रयास करता। सेल्यूलर जेल में कैदियों के खाने के लिए चने जाते थे। मूसा खां कभी स्वयं चने से भरे उन बोरों को छू देता अथवा कभी अनुसूचित जाति के हिन्दुओं से उन्हें ढूंढने को कहता। फिर अन्य हिन्दुओं से कहता कि-‘देखो, ये चने अपवित्र हो गये अब तुम इन्हें कैसे खाओगे?’

जाति-पांति व छुआछूत की दुर्भावना से ग्रस्त अन्य हिन्दू वे चने नहीं खाते और भूखे ही रह जाते। इस प्रकार उस जेलर ने हिन्दुओं में आपसी वैमनस्य फैला दिया था। वीर सावरकर ने जब यह दृश्य देखा तो उन्हें बहुत पीड़ा हुई। सारे क्रान्तिकारियों को बुलाया और कहा कि- ‘हम सब भारत मां की सन्तानें हैं। एक मां की सन्तानों में कैसा भेदभाव? किसी के छू देने से कोई वस्तु अपवित्र कैसे हो सकती है?’ वीर सावकर के प्रभावशाली उद्बोधन से सारा वातावरण बदल गया। अगले दिन चने से भरे बोरे अंडमान की जेल में उतारे गए। फिर वही हुआ जो हमेशा होता था। सारे एकत्रित क्रांतिकारियों को अपनी ओजस्वी वाणी में सम्बोधित करते हुए वीर सावरकर ने कहा- ‘यदि मूसा खां अथवा निम्न जाति के किसी व्यक्ति के छूने भर से ये चने अपवित्र हो गये हैं तो मैं इन्हें छूकर पुनः पवित्र करता हूं’ उनकी ओजस्वी वाणी सुनकर यह भयानक जेल ‘भारत माता की जय’ के गगनभेदी स्वरों से गूंज उठी। उस दिन के बाद जितने दिन भी वे क्रान्तिकारी वहां रहे, सबने साथ बैठकर ही भोजन किया।

स्वाधीनता के 77 वर्षों के बाद आज अंडमान की जेल का वह समरस भारत सारे देश में दिखलाई पड़ता है। भारत ही नहीं सारे विश्व का हिन्दू आज समरसता की धारा में चलकर अपने उत्कर्ष की ओर अग्रसर है। वीर सावरकर की वह समरस विचारधारा सारे भारत में ऐसे ही नहीं व्याप्त हुई, बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे महान राष्ट्रप्रेमी संगठन की तपस्या से यह दृश्य हम देख सके हैं। एक ऐसी तपस्या जो सन्यास को भी पीछे छोड़ती हुई प्रतीत होती है। जातिवाद से घिरे भारत को परस्पर एक माला में गूंथना सहज कार्य नहीं था। राष्ट्रमाता के इस पावन महायज्ञ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अनगिनत तरुणाई ने अपने जीवन को आहुत किया। संघ के संगठन ‘सेवा भारती’ ने समरसता की इस पावन गंगा को देश के गांव-गांव और नगर-नगर में प्रवाहित किया। भारत के विभिन्न नगरों में सेवा भारती के माध्यम से सेवा बस्तियों में जनजागरण के जो कार्य चल रहे हैं वह बहुत अनुकरणीय हैं। सेवा बस्तियां अर्थात् भारत का वह भाग जिनके योगदान के बिना समाज के उत्थान की कल्पना ही नहीं की जा सकती। धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए इन नागरिकों का समर्पण वन्दनीय है।

स्वाधीनता के बाद भारत का अहित चाहने वाली शक्तियों द्वारा सबसे पहले इन्हीं सेवा बस्तियों को निशाना बनाया गया। उन्हें भ्रमित करने, समाज के उच्च वर्ग के विरुद्ध खड़ा कर समाज में अस्थिरता फैलाने के सारे प्रयत्न किये गये। हिन्दू समाज को एकसूत्र में पिरोने के अपने जनजागरण कार्यक्रमों के अन्तर्गत मैंने सारे भारत में प्रवास किया। वाल्मीकि समाज की अनेक बस्तियों में जब मैं गई तो धर्म और सन्तों के प्रति उनकी श्रद्धा देखकर मेरा हृदय भावविभोर हो गया। मैंने उनके घरों में भोजन किया। मुझे आश्चर्य होता जब मुझे वहां भोजन करते देखकर उन बस्तियों के लोगों की आंखें भर आतीं। वे कहते- ‘दीदी मां, एक सन्त ने हमारे हाथों का बनाया भोजन किया, हम धन्य हो गये।’ मैं कहती ‘भैया हम सब मां भारती की सन्तानें हैं, हममें कोई भेदभाव नहीं।’

वे महिलायें जिनका परोसा भोजन मैं करती थी, वे प्रसन्न होकर मेरे गले लगकर रो पड़तीं। कितना भावभरा हृदय था उन सबका… मैं रोमांचित हो जाती। वे लोग गर्व के साथ मुझे बताते ‘दीदीं मां, यहां सेवा भारती के कार्यकर्ताओं ने हम सबको गले लगाया। उन्होंने ही हमें बताया कि कैसे विधर्मियों के द्वारा हमें हिन्दू समाज की मुख्यधारा से काटने के प्रयत्न किये जा रहे हैं। आज सेवा भारती के विभिन्न सेवाकार्यों के द्वारा हम सब हिन्दुत्व की समरस विचारधारा के प्रमुख घटक बन गये हैं।’ यह सुनकर मेरा हृदय सेवा भारती के भगीरथ प्रयत्नों के सम्मुख नतमस्तक हो जाता है।

सेवा भारती के प्रयासों से जहां एक ओर भारत के वनवासी और गिरिवासी कन्वर्ट होने से बच सके हैं, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक समीकरणों के गठजोड़ के चलते नगरों में संगठित हिन्दू समाज विखंडित होने से भी बच पाया है। आप देखिए वर्तमान समय में सारे भारत की राजनीति अगड़े-पिछड़े समीकरणों के चारों ओर घूमती हुई दृष्टिगोचर होती है। हिन्दुओं के विभिन्न मत-पंथ संप्रदायों को एक दूसरे के विरुद्ध खड़ा करने के सारे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में सामाजिक समरसता का जो ताना-बाना सेवा भारती दके द्वारा बुना गया, वह अद्भुत है। कार्यकर्ताओं के द्वारा जो अहिर्निश सेवा कार्य इन बस्तियों में चलाए जा रहे हैं, वे वन्दनीय हैं।

संगठित हिन्दू शक्ति ही समर्थ एवं सशक्त भारत का आधार है, यह बात सारा विश्व अच्छी प्रकार से जानता है। इसी भय से सारे विश्व की भारत विरोधी शक्तियां हिन्दू समाज को तोड़ने के अभियान में संलग्न हैं। भारत के नगरों में सेवा भारती के कार्यकर्ता सारे हिन्दू समाज की एकात्मता के लिए कटिबद्ध हैं, यह जानकर बहुत प्रसन्नता होती है। मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम ने समाज के सबसे निचले वर्ग का सहयोग लेकर दुर्मनीय आसुरी शक्ति को धराशायी किया था। शबरी के प्रति उनका स्नेह तथा केवट, निषाद, वानर भालू जातियों के प्रेममयी सहयोग से ही वे महासागर का सीना चीरते हुए अहंकार की लंका का ध्वंस कर सके थे। हम सब उन्हीं प्रभु का स्मरण कर समाज के सबसे अंतिम व्यक्ति को गले लगायें, आज समय की यही पुकार है।

मैं प्रभु से प्रार्थना करती हूं कि सशक्त भारत की आधार इन सेवा बस्तियों के जन जागरण में सेवा भारती सदैव संलग्न रहे। संगठन के लाखों-लाख कार्यकर्ताओं को भी मैं अपना आशीष प्रदान करती हूं कि वह ऐसे ही निष्ठा भाव से मां भारती की आरती करते रहें।

Print Friendly, PDF & Email
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *