धर्म-रक्षक संत जम्भेश्वर

धर्म-रक्षक संत जम्भेश्वर

धर्म-रक्षक संत जम्भेश्वरधर्म-रक्षक संत जम्भेश्वर

धर्म का अर्थ उन नियमों से है, जो व्यक्ति, समाज, प्रकृति और ईश्वर के बीच सामंजस्य स्थापित करते हैं और इन्हें एक-दूसरे का पूरक बनाते हैं। पश्चिमी सभ्यता में आज भी व्यक्ति और समाज के बीच संघर्ष जारी है। जब व्यक्ति का वर्चस्व बढ़ता है, तो समाज कमजोर हो जाता है और जब साम्यवाद जैसी व्यवस्थाओं में समाज हावी होता है, तो व्यक्ति पर अत्याचार बढ़ जाता है। पश्चिम ने प्रकृति के साथ भी संतुलन स्थापित नहीं किया, जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। मज़हब और रिलीजन को लेकर पश्चिमी दृष्टिकोण और भी अतिवादी है। ईसाइयत मानती है कि जो ईसा को मानता है, वही सुखपूर्वक जीवन जीने का अधिकारी है, जबकि इस्लाम भी कुछ ऐसा ही दृष्टिकोण रखता है।

हिन्दू समाज ने हज़ारों वर्ष पहले व्यक्ति, समाज, प्रकृति और ईश्वर के बीच संतुलन की आवश्यकता को समझा और गहन चिंतन के बाद शाश्वत आधारों पर नियम बनाए, जिन्हें धर्म कहा गया। ये नियम समाज के अनुभव और मंथन के परिणामस्वरूप बने, इसलिए इन्हें ‘हिन्दू धर्म’ कहा गया। चूंकि ये नियम सनातन हैं, इसलिए इन्हें ‘सनातन धर्म’ कहा गया और क्योंकि ये पूरे मानव समाज के लिए व्यवहारिक हैं, इसलिए इन्हें ‘मानव धर्म’ कहा गया। समय-समय पर इन नियमों का पालन कम होने से कहा गया कि ‘धर्म की हानि’ हो रही है। धर्म की पुनर्स्थापना तब मानी गई, जब किसी महापुरुष ने धर्म के नियमों का महत्व बताया। भारत के इतिहास में धर्म की हानि और उसकी पुनर्स्थापना बार-बार होती रही है, विशेष रूप से विदेशी आक्रमणों और मुस्लिम आक्रमणों के दौरान। ऐसे समय में धर्म के नियमों को पुनर्स्थापित करने वाले महापुरुष उभरे। इनमें से एक थे लोक देवता जम्भेश्वर जी, जिन्होंने समाज, व्यक्ति, प्रकृति और ईश्वर के बीच संतुलन बनाए रखने के 19 सिद्धांत बताए। इन्हें मानने वाले बिश्नोई कहलाए।

श्री जम्भेश्वर जी का जन्म युगाब्द 4553 (विक्रमी 1508) की जन्माष्टमी को नागौर जिले के पीपासर गाँव में हुआ था। लोकमान्यता के अनुसार, उन्हें श्रीकृष्ण का अवतार माना गया, क्योंकि उनका जन्म भी जन्माष्टमी के दिन हुआ था। माना जाता है कि जम्भेश्वर जी सात वर्ष की आयु तक मौन रहे और अक्षर ज्ञान के लिए पुरोहित के पास ले जाने पर ही उन्होंने मौन तोड़ा। प्रारंभिक शिक्षा के साथ-साथ उन्होंने योग साधना शुरू की और गो-सेवा के प्रति भी समर्पित रहे। गीता, वेद, उपनिषदों का अध्ययन करते समय उन्हें समाज और देश की स्थिति का आभास हुआ, विशेष रूप से मुस्लिम आक्रमणों से हो रहे अत्याचारों का।

गुरु जम्भेश्वर जी, जिन्हें लोक में जाम्भो जी के नाम से भी जाना जाता है, एक अद्वितीय संत, समाज सुधारक, और पर्यावरणविद थे। उनका जीवन और उनके उपदेश समाज को धर्म, पर्यावरण संरक्षण, और सहिष्णुता का मार्ग दिखाने वाले थे। 34 वर्ष की आयु में माता-पिता के निधन के बाद, उन्होंने अपनी सारी संपत्ति दान कर दी और ‘समरोथल धोरा’ में तपस्या करते हुए दिव्य-ज्ञान प्राप्त किया। युगाब्द 4587 (विक्रम संवत 1542) में उन्होंने अपना पहला उपदेश दिया।

जम्भेश्वर जी ने 26 नियम बनाए, जिनका उद्देश्य समाज में धार्मिक, सामाजिक और पर्यावरणीय सुधार लाना था। इन नियमों में पशु वध और वृक्षों की कटाई पर रोक, सत्य बोलना, क्षमा, संयम और धर्म की रक्षा जैसे सिद्धांत शामिल थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को पेड़ों और पशुओं की रक्षा करने की प्रेरणा दी, जो आज भी बिश्नोई समाज का मुख्य हिस्सा है। इस कारण उन्हें एक पर्यावरण वैज्ञानिक के रूप में भी देखा जाता है। वे अपनी दूरदर्शी सोच से रेगिस्तान को हरा-भरा बनाने के प्रयास में लगे रहे। उनकी शिक्षाओं का ही असर रहा होगा कि अमृतादेवी और उनके साथ 363 ग्रामवासी वृक्षों को बचाने के लिए बलिदान हो गए।

उन्होंने इस्लामिक कट्टरता की आलोचना की और गोवध पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उनके इस योगदान के चलते दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी ने भी गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया। मार्गशीर्ष कृष्ण नवमी, युगाब्द 4638 (वि. 1563) को गुरु जम्भेश्वर जी ने लालासर गांव में समाधि ली और इस प्रकार अपने जीवन कार्य को पूर्ण किया। उनके सिद्धांत आज भी बिश्नोई समाज और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।

जम्भेश्वर जी के जीवन से जुड़े कई चमत्कार जनमानस में गहरे रूप से स्थापित हैं, और इन्हीं चमत्कारों के आधार पर उन्हें लोक देवता के रूप में पूजा जाता है। उनके कुछ प्रमुख चमत्कारों की चर्चा इस प्रकार है:

1. हाथी को भेड़ बनाना

जम्भेश्वर जी की सिद्धियों के कारण उन्हें लेकर दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी के दरबार में चर्चा हुई। सुल्तान ने अपने सूबेदार मैमद खाँ को उनकी सत्यता का पता लगाने भेजा। जब मैमद खाँ ने गुरु जम्भेश्वर जी को चुनौती दी कि उसके तंबू में क्या है, तो जम्भेश्वर जी ने कहा कि उसमें एक भेड़ बैठी है। जब मैमद ने तंबू की जांच करवाई, तो वास्तव में वहाँ हाथी की जगह एक भेड़ मिली। यह देखकर मैमद खाँ जम्भेश्वर जी के चरणों में गिर गया और उनकी महानता को स्वीकार किया।

2. सिकंदर लोदी को गोहत्या रोकने की सलाह  

दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी के दरबार में उनके दो मुस्लिम शिष्य हासिम और कासिम कैद में थे। सुल्तान ने उन्हें पांच दिन तक गोमांस खाने का आदेश दिया, लेकिन उन्होंने गोमांस को हाथ भी नहीं लगाया। जब सिकंदर लोदी उन्हें देखने गया, तो उसने पाया कि जेल में एक गाय खड़ी थी और वे उसका दूध निकाल रहे थे। सिकंदर लोदी को यह देखकर अचंभा हुआ, और जब वह दरबार पहुंचा, तो वहाँ उसने गुरु जम्भेश्वर जी को खड़ा पाया। गुरु ने सुल्तान को गोहत्या रोकने की सलाह दी, जिसे सिकंदर लोदी ने मान लिया।

3. राव दूदा को राज्य वापस दिलाना

राव दूदा, जो कि भक्त मीराबाई के दादा थे, ने अपना राज्य खो दिया था। जम्भेश्वर जी ने उन्हें एक छड़ी दी और कहा कि इसकी पूजा करो, तुम्हें अपना राज्य वापस मिल जाएगा। थोड़े समय बाद राव दूदा को आदर सहित अपना राज्य वापस मिल गया। यह घटना उनके भक्तों में गहरे प्रभाव के रूप में स्थापित हो गई।

इन चमत्कारों के माध्यम से जम्भेश्वर जी का समाज में प्रभाव और प्रतिष्ठा बढ़ी। उनके सिद्धांतों और आदर्शों के प्रचार ने उन्हें समाज सुधारक के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण के नायक के रूप में भी प्रतिष्ठित किया।

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