कोलकाता रेप-मर्डर केस से दुखी सेक्स वर्कर्स ने दुर्गा प्रतिमा के लिए मिट्टी देने से किया मना

कोलकाता रेप-मर्डर केस से दुखी सेक्स वर्कर्स ने दुर्गा प्रतिमा के लिए मिट्टी देने से किया मना

कोलकाता रेप-मर्डर केस से दुखी सेक्स वर्कर्स ने दुर्गा प्रतिमा के लिए मिट्टी देने से किया मनाकोलकाता रेप-मर्डर केस से दुखी सेक्स वर्कर्स ने दुर्गा प्रतिमा के लिए मिट्टी देने से किया मना

कोलकाता। पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा की तैयारियां शुरू हो गई हैं, लेकिन इस बार त्यौहार की रौनक फीकी दिखाई दे रही है। कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में महिला डॉक्टर के साथ हुए रेप और मर्डर के बाद से राज्य में आक्रोश व्याप्त है। इस घटना के लिए विरोध दर्शाते हुए कोलकाता के सोनागाछी रेडलाइट एरिया की सेक्स वर्कर्स ने दुर्गा प्रतिमा बनाने के लिए मिट्टी देने से मना कर दिया है। दुर्गा प्रतिमा बनाने में लगने वाली 10 प्रकार की मिट्टी में एक रेड लाइट एरिया की भी होती है।

दुर्गा प्रतिमा में सोनागाछी की मिट्टी का महत्व

प्रतिवर्ष दुर्गा प्रतिमा बनाने के लिए सेक्स वर्कर्स द्वारा दी गई मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। मान्यता के अनुसार, एक वेश्या मां दुर्गा की भक्त थी, लेकिन वो समाज में अपने तिरस्कार से बहुत दुखी थी। तब मां दुर्गा ने उसकी सच्ची श्रद्धा को देखते हुए यह वरदान दिया था कि जब तक उसकी प्रतिमा में वेश्यालय की मिट्टी को सम्मिलित नहीं किया जाएगा, तब तक देवी का उस मूर्ति में वास नहीं होगा। इसी कारण वेश्यालय की मिट्टी को दुर्गा प्रतिमा में सम्मिलित करना एक आवश्यक परंपरा है।

एक अन्य मान्यता के अनुसार, पुरुषों के लोभ और वासना के कारण ही वेश्यालयों का प्रारंभ हुआ। वेश्याएं पुरुषों की काम, वासना को धारण कर स्वयं को अशुद्ध और समाज को शुद्ध करती हैं, लेकिन इसके बदले वेश्यावृति करने वाली स्त्रियों को समाज से बहिष्कृत माना जाता है। वे अपने पूरे जीवन में तिरस्कार झेलती हैं। यही कारण है कि वेश्यालय की मिट्टी का उपयोग दुर्गापूजा जैसे पवित्र कार्यों में कर उन्हें सम्मान देने का प्रयास जाता है।

लेकिन इस वर्ष, सेक्स वर्कर्स ने न्याय की मांग करते हुए इस परंपरा का भाग बनने से मना कर दिया है। उनका कहना है कि जब तक कोलकाता रेप-मर्डर केस में पीड़िता को न्याय नहीं मिलेगा, वे मिट्टी नहीं देंगी।

दुर्गा प्रतिमा बनाने के लिए परंपरागत रूप से 10 प्रकार की मिट्टियों का उपयोग किया जाता है-

1. गंगा नदी की मिट्टी – पवित्रता का प्रतीक मानी जाती है।

2. मिट्टी बन गया गोबर – शुद्धता और संपन्नता का प्रतीक माना जाता है।

3. तुलसी के पौधे की मिट्टी – धार्मिक और औषधीय महत्व रखने वाली तुलसी से प्राप्त मिट्टी।

4. विवाहित स्त्री के घर की मिट्टी – इसे शुभ और मंगलकारी माना जाता है।

5. वेश्यालय (रेडलाइट एरिया) की मिट्टी – समाज के तिरस्कार से मुक्त करने का प्रतीक मानी जाती है।

6. धान के खेत की मिट्टी – जीवन और उपजाऊपन का प्रतीक।

7. पवित्र यज्ञ वेदी की मिट्टी – धार्मिक अनुष्ठानों की शक्ति और आशीर्वाद से जुड़ी होती है।

8. चौराहे की मिट्टी – इसे विभिन्न दिशाओं और अनिश्चितताओं से मुक्ति का प्रतीक माना जाता है।

9. शमशान घाट की मिट्टी – जीवन-मृत्यु के चक्र का प्रतीक।

10. मिट्टी का तेल (केरोसीन) जलाने की जगह की मिट्टी – इसे ऊर्जा और बदलाव का प्रतीक माना जाता है।

इन सभी प्रकार की मिट्टियों को मिलाकर दुर्गा प्रतिमा बनाई जाती है। ये मिट्टियां समाज की विभिन्न परतों का प्रतिनिधित्व करती हैं।

दुर्गा पूजा की तैयारियों पर प्रभाव

कई स्थानीय क्लबों ने ममता बनर्जी सरकार से मिलने वाली वित्तीय सहायता को ठुकरा दिया है। सरकार प्रतिवर्ष दुर्गा पूजा के आयोजन के लिए हर क्लब को 85,000 रुपये देती है, लेकिन इस बार कई क्लबों ने यह राशि लेने से मना कर दिया है। इसके चलते पूजा पंडालों की स्पॉन्सरशिप पर भी प्रभाव पड़ा है। सामान्यत: इस समय तक पंडालों को 70-80% स्पॉन्सरशिप मिल जाती थी, जबकि इस बार केवल 40-45% ही मिली है।

जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल समाप्त

इस बीच, महिला डॉक्टर के रेप-मर्डर के विरुद्ध 41 दिनों से हड़ताल पर बैठे जूनियर डॉक्टरों ने भी अपनी हड़ताल समाप्त कर दी है। 9 अगस्त से धरने पर बैठे जूनियर डॉक्टरों और ममता बनर्जी सरकार के बीच बातचीत सफल रही है। जूनियर डॉक्टरों ने घोषणा की है कि वे 21 सितंबर से काम पर लौटेंगे, हालांकि वे अब भी पीड़िता को न्याय दिलाने की मांग पर अडिग हैं।

राजनीतिक और सामाजिक वातावरण में उबाल

कोलकाता के इस रेप-मर्डर केस ने राज्य में गहरा आक्रोश पैदा कर दिया है। सामाजिक और धार्मिक संगठनों ने सरकार की निष्क्रियता पर प्रश्न उठाए हैं। दुर्गा पूजा, जो बंगाल का सबसे बड़ा त्यौहार है, इस वर्ष विरोध और संघर्ष का प्रतीक बन गया है। सेक्स वर्कर्स का यह विरोध सामाजिक और धार्मिक व्यवस्थाओं के प्रति उनके असंतोष का संकेत है, वे न्याय की मांग पर डटी हुई हैं।

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