फिल्म उलझ (समीक्षा)
डॉ. अरुण सिंह
फिल्म उलझ (समीक्षा)
27 सितंबर को नेटफ्लिक्स पर आई फिल्म “उलझ” भारतीय विदेश सेवा की एक नवनियुक्त अधिकारी की कहानी है, जो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के एक घातक षडयंत्र का शिकार बनती है, और राष्ट्र के प्रति अपनी निष्ठा के कारण इस बवंडर से बड़ी बहादुरी के साथ निकलती भी है।
धूर्त एजेंट नकुल/हुमायूं/डेविड के लिए केवल पूंजी ही अर्थ रखती है; उसके लिए राष्ट्र भक्ति पूजीवादियों द्वारा बिछाया हुआ जाल है, राष्ट्र की सीमाएं रेत पर खींची हुई लकीरें हैं, “जिनकी कोई कीमत नहीं है” परन्तु नायिका सुहाना भाटिया के लिए राष्ट्र सर्वोपरि है, यही उसकी पहचान है।
सुहाना को एक योजना के माध्यम से फंसाया जाता है, जिसमें रॉ का एक बड़ा अधिकारी और विदेश मंत्री भी शामिल हैं, जो कथानक में बिल्कुल अविश्वसनीय लगता है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की स्वच्छ छवि प्रस्तुत करना और भारतीय विदेश मंत्री को राष्ट्रद्रोही और भ्रष्ट दिखाना वाम एजेंडा से प्रेरित है। पाकिस्तान का प्रधानमंत्री किसी आतंकी को सहर्ष और सद्भावना से भारत के लिए सुपुर्द कर दे, यह कितना भरोसेमंद लगता है?
सुहाना चारों ओर से गिद्धों से घिरी हुई है, पर देशभक्त एजेंट सेबिन कुट्टी की सहायता से वह बकरी बनकर भी पूरे शेर को खा जाती है। प्राय: विदेश सेवा के अधिकारियों के साहसिक कार्य छुपे ही रहते हैं, यह फिल्म इस विषय पर अभूतपूर्व सिनेमाई योगदान है। कई दृश्य तो रोंगटे खड़े कर देते हैं। गुलशन देविया तो चमत्कारिक हैं, पर जान्हवी कपूर ने भी बहुत परिपक्व भूमिका की है। कथानक में कुछ वामपंथी तत्वों को छोड़कर फिल्म अच्छी है।