हमें अपनी संस्कृति, परम्परा और मान्यताओं के प्रति मन में स्व का भाव रखते हुए आगे बढ़ना है- भैय्याजी जोशी

हमें अपनी संस्कृति, परम्परा और मान्यताओं के प्रति मन में स्व का भाव रखते हुए आगे बढ़ना है- भैय्याजी जोशी

हमें अपनी संस्कृति, परम्परा और मान्यताओं के प्रति मन में स्व का भाव रखते हुए आगे बढ़ना है- भैय्याजी जोशीहमें अपनी संस्कृति, परम्परा और मान्यताओं के प्रति मन में स्व का भाव रखते हुए आगे बढ़ना है- भैय्याजी जोशी

जयपुर, 12 अक्टूबर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य व पूर्व  सरकार्यवाह सुरेश भैय्याजी जोशी ने कहा कि हमें अयोग्य, अनुचित और अधर्म रूपी आसुरी शक्तियों को समाप्त करते हुए धर्म और श्रेष्ठ कार्यों से भारत की गौरवशाली परम्पराओं को सुरक्षित रखना होगा। हम सभी की संस्कृति एक है। दुनिया भर में फैला हुआ, अपने आपको हिन्दू मानने वाला, हिन्दू भारत से है। हिन्दू और भारत अलग नहीं हैं। उन्होंने कहा कि हम अपनी भाषा भूलते जा रहे हैं, अंग्रेजी पढ़ें, लिखें, सीखें, पर अपनी भाषा के प्रति भी गौरव का भाव रखें। इजराइल अभी भी अपने सारे राजनयिक और सरकारी काम हिब्रू भाषा में करता है।

भैय्याजी जोशी शनिवार को झोटवाड़ा में विजयदशमी उत्सव कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने शस्त्र पूजन भी किया। कार्यकम में पैरालिंपिक में पदक विजेता मोना अग्रवाल भी उपस्थित थीं। 

भैय्याजी जोशी ने नागरिक अनुशासन की चर्चा करते हुए कहा कि हम विदेश जाते हैं, तो स्वच्छता रखते हैं, हमारा आचरण अपने देश में भी इसी प्रकार होना चाहिए। सभी को एक अच्छे नागरिक के कर्तव्य निभाने चाहिए। उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी को कुसंस्कारों से बचने के लिए प्राचीन भारत की परम्पराओं, ऋषियों के चिंतन और महापुरुषों के विचारों को आचरण में लाना होगा। आज कई युवा टीशर्ट पर स्लोगन लिखवा कर घूमते हैं कि “मेरा बाप मेरा एटीएम है”। पिता को एटीएम की तरह मानना भारतीय संस्कृति तो नहीं हो सकती। हमें अपने पारिवारिक संस्कारों को और समृद्ध करना होगा। 

उन्होंने जीवन में स्वदेशी अपनाने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि हमें अपने देश में निर्मित वस्तुओं का ही क्रय करना चाहिए। अपने देश का माल भले थोड़ा निम्न स्तर का होगा, लेकिन अपना होगा, ऐेसा मानकर स्वदेशी के भाव को विकसित करना चाहिए। हमें केवल विदेशी वस्तुओं तक सीमित नहीं रहना है, बल्कि अपनी संस्कृति, परम्परा और मान्यताओं के प्रति मन में स्व का भाव रखते हुए आगे बढ़ना है। अपनी बुद्धिमता और क्षमताओं का उपयोग कर भारत के लिए समर्पित पीढ़ी का निर्माण करना है। 

उन्होंने कहा कि भारतीय चिंतन से उपजे मूल्यों को आचरण में लाना हमारी जीवन शैली है। जब सामान्य जन परस्पर सहयोग त्याग, बलिदान और समर्पण से इसे सुरक्षित रखेंगे तो भारत, भारत रहेगा। यह समस्त मानव जाति के कल्याण का मार्ग है, ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ इस प्रकार का आदर्श विश्व के सामने प्रस्तुत करना भारत का काम है। हमें इसके प्रति सजग होकर विचार करने की आवश्यकता है, भारत विश्व गुरु बनेगा। 

उन्होंने कहा कि जन्म के आधार पर जाति मानना, उसके आधार पर ऊंच-नीच का भाव मन में विकसित करना, भेदभाव करना, अस्पृश्यता जैसी एक विकृति का पालन करना, ये कुरीतियां बन गई हैं। जब तक समाज इन बातों से मुक्त नहीं होगा, तब तक संगठित शक्ति के रूप में भारत कैसे खड़ा होगा। इसलिए संगठित शक्ति की आराधना करने वाले हम सब लोगों को सारे राज्य की सीमाएं, भाषा की विविधता, जाति बिरादरी आदि की संकुचित मानसिकता को छोड़कर बाबा साहब अम्बेडकर के कहे वाक्य ‘एक देश एक जन’ की भावना को प्रबल करना होगा। 

भैय्याजी ने कहा कि परम्पराओं में हम प्रकृति का पूजन करते आए हैं। हम उनको भी ईश्वर मानते हैं, इसलिए नदियों, पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों और यहां तक कि भूमि का पूजन करते हैं। नदियों की आरती करते हैं। यह सब करने वाला सामान्य हिन्दू इसको प्रदूषित करने का काम भी साथ साथ करता है। हमें इस प्रवृत्ति से बचना होगा। प्रकृति वंदन के भाव को आचरण में लाना होगा, तभी भारत प्रदूषण मुक्त होगा।

कार्यक्रम के दौरान स्वयंसेवकों ने दंड, योग, सूर्य नमस्कार, नियुद्ध और घोष का प्रदर्शन किया और पथ संचलन निकाला। जयपुर में लगभग 25 स्थानों पर आयोजित पथ संचलनों के दौरान आमजन ने स्वयंसेवकों पर पुष्प वर्षा कर उनका स्वागत किया।

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