मदरसों में शिक्षा के मानकों की कमी, फंडिंग पर हो पुनर्विचार

मदरसों में शिक्षा के मानकों की कमी, फंडिंग पर हो पुनर्विचार

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11 सितंबर 2024 को राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (NCPCR) के चेयरमैन प्रियांक कानूनगो ने राजस्थान सहित सभी राज्यों में मदरसों को मिलने वाली सरकारी फंडिंग पर रोक लगाने की बात कही। उन्होंने इस संबंध में सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर मदरसों की स्थिति और फंडिंग के प्रकरण पर NCPCR की रिपोर्ट का उल्लेख किया है। प्रियांक कानूनगो ने अपने पत्र में मदरसों में शिक्षा के मानकों की कमी और बच्चों के अधिकारों के हनन पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा है कि गैर-मुस्लिम छात्रों को मदरसों से निकालकर सरकारी स्कूलों में भर्ती कराया जाए, ताकि उन्हें गुणवत्तापूर्ण और आधुनिक शिक्षा मिल सके। साथ ही, उन्होंने राज्य सरकारों से मदरसों को मिलने वाली सरकारी फंडिंग पर पुनर्विचार करने की मांग की है। यदि राजस्थान सरकार इस अनुशंसा को लागू करती है, तो इससे प्रदेश में चल रहे 3232 से अधिक मदरसे प्रभावित होंगे, जिनमें लगभग 3.5 लाख बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इनमें से बड़ी संख्या में वे बच्चे सम्मिलित हैं, जो मुस्लिम समुदाय से आते हैं, जबकि कुछ गैर-मुस्लिम बच्चे भी इन मदरसों में पढ़ रहे हैं। राजस्थान सरकार इन मदरसों को प्रतिवर्ष लगभग 60 करोड़ रुपये की अनुदान राशि देती है। यह राशि शिक्षकों के वेतन, आधारभूत ढांचे की देखरेख और विद्यार्थियों की सहायता के लिए खर्च की जाती है। इसके अतिरिक्त, केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत भी मदरसों को अनुदान मिलता है, जो शिक्षा की गुणवत्ता सुधार के लिए उपयोग किया जाता है।

NCPCR का यह कदम प्रशंसनीय है क्योंकि यह उन प्रयासों का भाग है, जो सभी बच्चों को समान और गुणवत्ता शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से उठाए जा रहे हैं। आयोग का मानना है कि सरकारी अनुदान की समीक्षा करके शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत सभी बच्चों को एक समान अवसर प्रदान किया जा सकता है।

NCPCR की रिपोर्ट

NCPCR ने हाल में एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि सभी गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से हटाकर उन्हें “शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009” के अंतर्गत औपचारिक स्कूलों में बुनियादी शिक्षा के लिए भर्ती कराया जाए। रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि मुस्लिम समुदाय के बच्चों को, चाहे वे मान्यता प्राप्त मदरसों में पढ़ रहे हों या गैर-मान्यता प्राप्त, औपचारिक स्कूलों में दाखिला दिलाया जाए ताकि वे आधुनिक पाठ्यक्रम के साथ-साथ निर्धारित समय सीमा में शिक्षा प्राप्त कर सकें। 2021 में भी NCPCR ने मुस्लिम समुदाय के बच्चों के शिक्षा के अधिकार पर एक रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि मदरसों जैसे मजहबी शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों को संविधान द्वारा दिए गए शिक्षा के उनके मौलिक अधिकार का पूर्ण लाभ नहीं मिल रहा है। इसके बाद 2022 में जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने प्राथमिक शिक्षा से बच्चों को औपचारिक स्कूलों से दूर रखने के लिए राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (NIOS) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर साइन किए, जिसके अंतर्गत मदरसों के छात्र ओपन स्कूलिंग के माध्यम से परीक्षा दे सकते हैं।

NIOS की भूमिका की जांच की मांग

आयोग ने NIOS की भूमिका पर भी प्रश्न उठाए हैं, यह कहते हुए कि प्रारंभिक शिक्षा के लिए ओपन स्कूलिंग की पेशकश “शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009” के प्रावधानों के साथ टकराव में है। भारत में लगभग 15 लाख स्कूल हैं, जो बच्चों को उनके निवास स्थान से 1-3 किलोमीटर के भीतर शिक्षा प्रदान करने के लिए स्थापित किए गए हैं। यदि राज्य सरकार कुछ क्षेत्रों में स्कूलों को मान्यता नहीं देती है, तो NIOS के माध्यम से प्रारंभिक शिक्षा की पेशकश करना बच्चों के अधिकारों के साथ अन्याय हो सकता है।

NCPCR की यह रिपोर्ट सभी बच्चों को सुरक्षित और समग्र शिक्षा के अधिकार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका को मजबूत करेगी।

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