महाराजा को विलय के लिए राजी करने सरदार पटेल के आग्रह पर श्री गुरुजी जम्मू-कश्मीर गए थे

महाराजा को विलय के लिए राजी करने सरदार पटेल के आग्रह पर श्री गुरुजी जम्मू-कश्मीर गए थे

महाराजा को विलय के लिए राजी करने सरदार पटेल के आग्रह पर श्री गुरुजी जम्मू-कश्मीर गए थेमहाराजा को विलय के लिए राजी करने सरदार पटेल के आग्रह पर श्री गुरुजी जम्मू-कश्मीर गए थे

स्वतंत्र भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल चाहते थे कि कश्मीर भारत का ही अभिन्न अंग बना रहे। किन्तु नेहरू की शेख अब्दुल्ला के प्रति नीति को ध्यान में रखते हुए इस संबंध में वे काफी सतर्क थे। कश्मीर में पाकिस्तान की कुटिल कार्रवाइयों की उन्हें पूरी जानकारी थी। इसीलिए वे भारत में कश्मीर के विलय की अनिश्चितता से दिनोंदिन अधिक चिंतित हो रहे थे। इसी चिंता में सरदार पटेल को अकस्मात् एक योजना सूझी। उन्हें इस बात का पूरा विश्वास था कि गुरुजी महाराजा हरि सिंह को भारत में कश्मीर के विलय के लिए राजी कर लेंगे। उनकी योजना थी कि महाराजा को इस बात के लिए आश्वस्त किया जाए कि यदि वह विलय के लिए तैयार हो जाते हैं तो गृहमंत्री के नाते सरदार पटेल बाद की स्थिति को संभाल लेंगे। अपनी योजना को कार्यरूप देने के लिए सरदार पटेल ने गुरुजी को ही योग्यतम पात्र समझा, जो महाराजा को समझा सकने में समर्थ होते। सरदार पटेल ने जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री मेहरचंद महाजन से संपर्क स्थापित किया और उन्हें सूचित किया कि वे गुरुजी को श्रीनगर आमंत्रित करें। उन दिनों दिल्ली-श्रीनगर के बीच सार्वजनिक विमान सेवा नहीं थी और जम्मू-श्रीनगर मार्ग भी सुरक्षित नहीं था। इस कारण दिल्ली से विशेष विमान की व्यवस्था की जाए, किंतु महाराजा और गुरुजी की भेंट यथाशीघ्र आयोजित करनी है, यह संदेश भी सरदार पटेल ने मेहरचंद महाजन को भिजवाया। सरदार पटेल के निर्देशानुसार मेहरचंद महाजन के निमंत्रण पर गुरुजी एक विशेष विमान द्वारा 17 अक्तूबर, 1947 को श्रीनगर पहुंचे। महाराजा हरि सिंह के साथ हुई उनकी वार्ता में मेहरचंद महाजन के अतिरिक्त अन्य कोई उपस्थित नहीं था। पास में ही युवराज कर्ण सिंह किसी दुर्घटना में आहत होने से पैर में प्लास्टर बंधी स्थिति में एक पलंग पर लेटे हुए विश्राम कर रहे थे। औपचारिक वार्तालाप के पश्चात् विलय का विषय निकला। महाजन ने कहा, ‘‘कश्मीर में आने-जाने के सारे मार्ग रावलपिंडी की ओर से ही हैं। खाद्यान्न, नमक, मिट्टी का तेल आदि दैनिक जीवनोपयोगी वस्तुएं भी इसी मार्ग से कश्मीर में आती हैं। जम्मू-श्रीनगर मार्ग न तो अच्छा है और न ही सुरक्षित। जम्मू का हवाई-अड्डा भी व्यवस्थित ढंग से कार्यक्षम नहीं है। ऐसी हालत में भारत के साथ विलय होते ही यहां आयात होने वाली आवश्यक वस्तुओं पर पाकिस्तान की ओर से तुरंत पाबंदी लगा दी जाएगी। इस कारण प्रजा की जो दुर्दशा होगी वह हमसे नहीं देखी जाएगी। अत: कुछ अवधि के लिए ही क्यों न हो, कश्मीर का स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखना क्या वह हित में नहीं होगा?’’

महाजन के प्रश्न के उत्तर में गुरुजी ने कहा, ‘‘अपनी प्रजा के प्रति आपके अन्त:करण में आत्मीयता होने के कारण उनके संबंध में आपकी भावना मैं समझ सकता हूं, किन्तु भारत के शीर्षस्थ स्थित कश्मीर को यदि आप स्वतंत्र भी रखना चाहें तो भी पाकिस्तान को वह कदापि स्वीकार नहीं होगा। आपकी रियासती फौज में तथा प्रजाजनों में पाकिस्तान द्वारा विद्रोह की आग भड़काने के प्रयास हो रहे हैं। …अगले 6-7 दिनों में ही पाकिस्तान कश्मीर की नाकेबंदी करने वाला है। …उस समय आप पर और कश्मीर की प्रजा पर कितना भीषण संकट आएगा, इसकी आप कल्पना कर सकते हैं। रियासत को स्वतंत्र घोषित किए जाने के कारण आपकी सुरक्षा के लिए भारतीय सेना भी नहीं आ सकेगी। इसलिए मेरे विचार में भारत के साथ यथाशीघ्र विलय ही एकमेव तथा सभी दृष्टि से हित मार्ग अपने सामने बचा रहता है।’’ महाराजा ने अपना पक्ष रखते हुए कहा, ‘‘पं. नेहरू का आग्रह है कि भारत में कश्मीर के विलय के पूर्व शेख अब्दुल्ला को रिहा कर कश्मीर का शासन सूत्र उनके हाथों में सौंपा जाए। गुरुजी ने महाराजा को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘आपकी शंका उचित है, लेकिन शेख अब्दुल्ला की गतिविधियों के बारे में सरदार पटेल को पूर्ण जानकारी है। वे गृहमंत्री होने के कारण आपकी प्रजा की पूरी चिंता करेंगे।’’

महाराजा ने कहा, ‘‘संघ के स्वयंसेवकों ने हमें समय-समय पर अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी दी है। पहले तो उन समाचारों पर हमें विश्वास नहीं हुआ, किन्तु अब उन की सत्यता के बारे में हम पूर्णतया विश्वस्त हैं। पाकिस्तानी सेना की हलचलों की जानकारी देने में संघ के स्वयंसेवकों ने जो साहस का परिचय दिया है, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम ही होगी। अब्दुल्ला की गतिविधियों के संबंध में पटेल यदि स्वयं सतर्कता बरतने वाले होंगे, तो हम भारत में कश्मीर के विलय के लिए तैयार हैं।’’ गुरुजी, ‘‘आपकी स्वीकृति मिलते ही सरदार पटेल केन्द्रीय सरकार की ओर से सारी औपचारिकताएं तुरंत पूरी करेंगे।’’ महाराजा, ‘‘आपकी बात से मैं पूर्णतया सहमत हूं। आप कृपया सरदार पटेल को इसकी जानकारी दे दें।’’ गुरुजी 19 अक्तूबर, 1947 को विशेष विमान से दिल्ली लौटे और महाराजा हरि सिंह के साथ हुई वार्ताओं से सरदार पटेल को अवगत कराया।

भारत में अधिमिलन 

महाराजा ने 24 अक्तूबर, 1947 को भारत सरकार से सहायता के लिए संपर्क किया। उस समय, भारत के साथ राज्य का सैन्य और राजनैतिक समझौता नहीं था। माउंटबैटन की अध्यक्षता में नई दिल्ली में रक्षा समिति की एक बैठक हुई, जिसमें महाराजा की मांग पर हथियार एवं गोला-बारूद की आपूर्ति का विचार किया गया। सेना के सुदृढ़ीकरण की समस्या पर भी विचार किया गया और माउंटबैटन ने आगाह किया कि जम्मू-कश्मीर जब तक अधिमिलन स्वीकार नहीं करता है, तब तक वहां सेना भेजना जोखिम भरा हो सकता है। इस घटना के बाद, वी. पी. मेनन को महाराजा के पास स्थिति की व्याख्या और प्रत्यक्ष विवरण प्राप्त करने के लिए श्रीनगर भेजा गया। अगले दिन, मेनन ने विक्षुब्ध स्थिति की सूचना दी और अनुभव किया कि भारत ने अगर शीघ्र सहायता नहीं की तो सब समाप्त हो जायेगा। रक्षा समिति ने सैनिकों को तैयार किए जाने तथा वहां भेजने के निर्णय के साथ तय किया कि यदि अधिमिलन का प्रस्ताव आता है तो उसे स्वीकार किया जायेगा। उसी दिन, मेनन फिर से श्रीनगर गए। इस बार वे अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर लेकर दिल्ली लौटे। जम्मू-कश्मीर का अधिमिलन भारत के गवर्नर-जनरल, माउंटबैटन द्वारा उसी तरह स्वीकार हुआ, जैसा अन्य भारतीय रियासतों के साथ किया गया था। आखिरकार कानूनी शर्तों के अनुसार 26 अक्टूबर, 1947 को जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा बन गया।

#जम्मू_कश्मीर_विलय_दिवस

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