चलो! जलाएं दीप प्यार का
कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
चलो! जलाएं दीप प्यार का
चलो! जलाएं दीप प्यार का
अंधकार का हरण करें
प्रेम और सद्भाव लिए हम
अपनापे के रंग भरें।
हम अपने ‘स्व’ का ध्यान करें
राष्ट्र का गौरव गान करें
जन-जन में हो अनुशासन
हम ‘पर्यावरण’ का ध्यान धरें।
परिवार हमारा हो प्यारा
हम ‘संस्कारों’ का संसार रचें
समरसता हो ध्येय हमारा
हर विघटन पर प्रबल प्रहार करें।
खुशियों का हम थाल सजाएं
तेल और बाती बन जाएं
परमारथ के कारज में हम
दीप की भांति जलते जाएं।
जन्म मिला जिस हेतु हमें
हम अपने सब कर्त्तव्य निभाएं
भेदभाव का तमस हरें हम
ऐक्य मन्त्र की अलख जगाएं।
वन प्रांतर, ग्राम्य नगर में जाएं
सबको अपने गले लगाएं
जो पीड़ित – वंचित हैं बंधु हमारे
उन सबको हम ‘सबल’ बनाएं।
ऋषि-मुनियों की परंपरा के
हम सच्चे ‘आराधक’ बन जाएं
शिक्षा की हम ज्योति जलाएं
भारत का वैभव लौटाएं।
हर संकट को दें चुनौती
साहस से अपना पथ पाएं
निर्भय होकर बढ़ते जाएं
भारत मां की जय-जय गाएं।