अयोध्या में रामलला
रमेश शर्मा
अयोध्या में रामलला
• 2 नवम्बर 1990 कोठारी बंधुओं का बलिदान
• अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थित ढाँचे पर फहराया था भगवा ध्वज
अयोध्या में रामलला अपने जन्मस्थान पर विराजमान हो गये हैं। इस वर्ष का दीपोत्सव अद्भुत रहा। 28 लाख दीपों का कीर्तिमान बना। ऐसा कर सकने के पीछे संघर्ष और बलिदान की एक लंबी श्रृंखला रही है। इसमें एक घटना कोठारी बंधुओं के बलिदान की है। जो दो नवम्बर 1990 को बलिदान हुए थे।
अयोध्या में राम जन्मभूमि पर हमले और बचाव के संघर्ष का एक लंबा इतिहास है। यह कुल एक हजार वर्ष चला। पहले पाँच सौ वर्ष लगातार हमले, विध्वंस और पुनर्निर्माण में बीते और दूसरे पाँच सौ वर्ष रामलला को उनके जन्मस्थान पर पुनः प्रतिष्ठित करने में। सल्तनतकाल में ऐसा कोई आक्रांता नहीं, जिसने अयोध्या पर हमला न किया हो। 1528 में मंदिर को पूरी तरह ध्वस्त करके एक नये ढांचे का आकार दे दिया गया था। जिसे औरंगजेब के शासनकाल में मस्जिद का रूप मिला और बाबरी मस्जिद नाम भी। तब से मुक्ति का संघर्ष आरंभ हुआ, जो कभी थमा नहीं। ब्रिटिशकाल में रामलला के जन्मस्थान को “विवादित स्थल” नाम मिला। 1859 में अंग्रेज सरकार ने इस स्थल पर बाड़ लगाकर इसे दो हिस्सों में बाँट दिया। भीतरी हिस्से में नमाज के लिये और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को पूजा प्रार्थना के लिये अनुमति दी।
सतत संघर्ष के उतार-चढ़ाव के बीच निर्णायक संघर्ष 1984 में आरंभ हुआ। इस संघर्ष की कमान विश्व हिंदू परिषद ने संभाली और देश भर में जन जागरण आरंभ हो गया। राम जन्मस्थल की “मुक्ति” और वहाँ मंदिर निर्माण के संकल्प के लिये एक समिति बनी। यह संघर्ष दोनों प्रकार से हुआ। अदालत में कानूनी लड़ाई का भी और जन जागरण अभियान एवं कारसेवा का भी। 1986 जिला अदालत से हिंदुओं को पूजन प्रार्थना करने के लिए ताला खोलने का आदेश हुआ। 1990 में विश्व हिंदू परिषद ने कारसेवा का आह्वान किया। देश भर से कारसेवक अयोध्या पहुँचे। उन दिनों उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। सरकार ने कारसेवा रोकने के लिये सरकार की पूरी शक्ति लगा दी और पुलिस व्यवस्था कड़ी कर दी थी। डेढ़ किलोमीटर के घेरे में बैरिकेडिंग कर दी गई ताकि कोई “विवादित स्थल” तक पहुँच ही न सके। पूरे क्षेत्र में कर्फ्यू घोषित कर दिया गया, पर रामभक्तों ने इसकी चिंता न की और पुलिस के कड़े प्रबंध के बीच भी 30 अक्टूबर 1990 से कारसेवा आरंभ हुई। कारसेवकों के समूह के साथ साधु-संतों ने हनुमानगढ़ी की ओर बढ़ने का प्रयास किया। सुबह 10 बजे तक हनुमानगढ़ी क्षेत्र में भीड़ बढ़ चुकी थी। रोकने के लिये गोली चालन का आदेश हो गया। पुलिस की गोलियाँ चलीं। चलती गोलियों के बीच कारवसेवकों ने बैरीकेड तोड़ दिए और राम जन्मभूमि स्थल पर बने ढांचे पर भगवा ध्वज फहरा दिया। ध्वज फहराने वाले कोठारी बंधु थे। कोठारी बंधुओं के नाम रामकुमार कोठारी और शरद कोठारी थे। रामकुमार कोठारी बड़े भाई थे और शरद कोठारी उनसे एक वर्ष छोटे। कोठारी बंधुओं के पिता हीरालाल कोठारी और माता सुमित्रा देवी मूलतः राजस्थान के रहने वाले थे, लेकिन अपने काम के चलते कलकत्ता आ गये थे। कोठारी बंधुओं का जन्म कलकत्ता में हुआ था। दोनों भाइयों का बचपन मध्यप्रदेश के बैतूल में बीता था। यहीं वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े। दोनों ने संघ शिक्षा के द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण एक साथ ही किया था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा भारत भारती आवासीय विद्यालय जामठी में हुई थी। दोनों भाई हमेशा ही दोस्तों की तरह साथ रहते और साथ खेलते थे। पांचवी कक्षा के बाद दोनों पुनः कोलकाता लौट गये थे।
1990 में जब राम मंदिर आँदोलन तीव्र हुआ तो कोठारी बंधु भी कारसेवा में भाग लेने अयोध्या पहुंचे। उनकी यह यात्रा साधारण नहीं थी। वे 22 अक्टूबर को कोलकाता से रवाना हुए और ट्रेन से बनारस पहुँचे। उन दिनों अयोध्या पहुँचने के सभी रास्ते सील कर दिये गये थे। कोठारी बंधुओं सहित कारसेवकों की एक टुकड़ी ग्रामीण रास्तों से पैदल ही अयोध्या रवाना हुई और वे लगभग 200 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुँचे और हनुमान गढ़ी में एकत्र कारसेवकों के समूह में सम्मिलित हुए। कारसेवकों का नेतृत्व अशोक सिंघल, उमा भारती, विनय कटियार कर रहे थे। कारसेवकों को बंदी बनाकर ले जाने के लिए पुलिस ने बसों का प्रबंध किया हुआ था। तभी साधुओं ने एक बस ड्राइवर को नीचे उतार कर बस से बैरीकेड को तोड़ दिया। इससे हजारों कारसेवक ढांचे तक पहुंच गये। इनमें कोठारी बंधु भी थे। सबसे पहले शरद कोठारी गुंबद पर चढे फिर रामकुमार और भगवा ध्वज फहरा दिया।
ध्वज फहराने की घटना से पुलिस बेकाबू हो गई और कारसेवकों पर टूट पड़ी। जो जहाँ दिखा वहाँ गोली या लाठी चली। अगले दिन 31 अक्टूबर को ढांचे के आसपास बने हर घर के सामने पुलिस का पहरा था। 30 अक्टूबर को जिनका बलिदान हुआ, उनका अंतिम संस्कार एक नवम्बर को हुआ और 2 नवंबर 1990 को पुलिस को कारसेवकों से अयोध्या खाली कराने का आदेश मिला। हर गली और घर से कारसेवकों को घसीट घसीट कर निकाला जाने लगा। पुनः प्रतिरोध हुआ फिर पुलिस की गोलियों से अयोध्या गूँज उठी। कारसेवकों के शव गिरने लगे। उनके रक्त से गलियाँ लाल होने लगीं। कोठारी बंधुओं ने दिगंबर अखाड़े से निकलकर हनुमानगढ़ी की तरफ जाना चाहा। उनके साथ दो और कारसेवक थे। पुलिस की गोलियों ने चारों को मौत की नींद सुला दिया। 4 नवंबर को सरयू नदी के घाट पर कड़ी सुरक्षा के बीच दो नवम्बर के सभी बलिदानियों का अंतिम संस्कार किया गया।
जब दोनों भाई कारसेवा के लिये अयोध्या रवाना हुए थे, तब घर में उनकी बड़ी बहन के विवाह की तैयारियाँ चल रहीं थीं। विवाह की तिथि 12 दिसम्बर निर्धारित थी। कोठारी बंधु भले अपनी बहन की डोली विदा करने में सहभागी न बन सके, पर उनके और उनके साथ बलिदान हुए कारसेवकों के रक्त की ऊष्मा ही थी, जिससे मार्ग निकलते गये। 1992 में ढांचा गिरा और समय के साथ न्यायालय के निर्णय आये। अंततः 22 जनवरी 2024 को रामलला अपने जन्मस्थान पर विराजमान हो गये। इसीलिये इस वर्ष अयोध्या की दीपावली अद्भुत रही और जन्मस्थान मंदिर पर फहराते भगवा ध्वज को देखकर कोठारी बंधुओं की स्मृति हो आना स्वाभाविक है। वही थे, जिन्होंने 1990 में पुलिस की गोलियों के बीच ढाँचे पर भगवा ध्वज फहरा दिया था।