देवी अहिल्याबाई आजीवन राष्ट्रीय एकता व सामाजिक समरसता के लिए समर्पित रहीं- भैय्याजी जोशी

देवी अहिल्याबाई आजीवन राष्ट्रीय एकता व सामाजिक समरसता के लिए समर्पित रहीं- भैय्याजी जोशी

देवी अहिल्याबाई आजीवन राष्ट्रीय एकता व सामाजिक समरसता के लिए समर्पित रहीं- भैय्याजी जोशीदेवी अहिल्याबाई आजीवन राष्ट्रीय एकता व सामाजिक समरसता के लिए समर्पित रहीं- भैय्याजी जोशी

कोटा। महिला समन्वय कोटा विभाग द्वारा पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर के जन्म के त्रिशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में मातृशक्ति सम्मेलन का आयोजन बुधवार प्रातः श्री राम शांताय सभागार, महावीर नगर तृतीय, कोटा में किया गया।

सम्मेलन में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य एवं पूर्व सरकार्यवाह सुरेश भैय्याजी जोशी, मुख्य अतिथि महिला उद्यमी प्रीति और महिला समन्वय की विभाग संयोजिका श्वेता जैन मंच पर उपस्थित रहे।

मुख्य वक्ता भैयाजी ने पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई के जीवन चरित्र पर पाथेय प्रदान किया। भैयाजी ने देवी अहिल्याबाई होल्कर को साहस, शक्ति, धर्म, अध्यात्म व पुरुषार्थ का प्रतीक बताया।

उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि देवी अहिल्याबाई राजमाता, महारानी भी थीं, परंतु उनका परिचय लोकमाता पुण्यश्लोक है, क्योंकि उनके जीवन में पुण्य कर्मों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। देवी अहिल्याबाई के जीवन से कुशल प्रशासन, लोकहित, न्याय, धार्मिक उत्थान, पुरुषार्थ, सामाजिक समरसता आदि गुणों को आज की सामाजिक व्यवस्था में आत्मसात किया जाना चाहिए।

उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए भैयाजी ने बताया कि एक बार माता अहिल्याबाई ने अपने पति को व्यक्तिगत खर्चों के लिए राजकोष से धन देने से यह कह कर मना कर दिया था कि राजकोष का धन देश की जनता का है, स्वयं का नहीं। इस प्रकार अपने विवेक एवं आदर्श समन्वय का उदाहरण प्रस्तुत किया। अपराध को रोकने एवं सामाजिक कल्याण हेतु उन्होंने अपने देश के नागरिकों की आजीविका निश्चित की एवं डाक व्यवस्था की भी शुरुआत की, साथ ही अंग्रेजों से देश को बचाने के लिए सभी रियासतों से एक होने का आह्वान भी किया, जो उनकी नेतृत्व क्षमता व कूटनीतिक दूरदर्शिता को दर्शाता है।

उन्होंने मात्र अपनी रियासत ही नहीं, अपितु पूरे राष्ट्र में कई मंदिरों का जीर्णोद्धार व निर्माण करके राष्ट्रीय एकता का संदेश दिया। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्होंने महेश्वरम साड़ी उद्योग विकसित किया, जो आज भी उनके रोज़गार का प्रमुख साधन है। उनके यहॉं हर जाति संप्रदाय के व्यक्ति एक साथ बैठ कर भोजन करते थे। सादगी इतनी कि वे स्वयं भी उन्हीं के साथ भोजन करती थीं। उच्च चारित्रिक मूल्यों को जीने वाली देवी अहिल्याबाई होलकर हमें सदियों तक प्रेरणा देती रहेंगी।

अतिथियों द्वारा कार्यक्रम का शुभारंभ भारतमाता की छवि के समक्ष दीप प्रज्वलन एवं पुष्प अर्पित करने के साथ हुआ।

कार्यक्रम के प्रारंभ में नन्हीं बालिकाओं ने नृत्य के माध्यम से शिवस्तुति प्रस्तुत की। महिलाओं द्वारा माता अहिल्याबाई के जीवन के विभिन्न आयामों को दर्शाते हुए एक नाटिका की भी प्रस्तुति दी गई।

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