वीर बाला कालीबाई का बलिदान

वीर बाला कालीबाई का बलिदान

वीर बाला कालीबाई का बलिदानवीर बाला कालीबाई का बलिदान

राजस्थान के रास्तापाल, डूंगरपुर में जन्मी भील बालिका कालीबाई ने मात्र तेरह वर्ष की आयु में अपने समाज पर विदेशी आक्रांताओं के शोषण का विरोध किया। गांव के शिक्षक पर अत्याचार करने वाली अंग्रेज़ पुलिस को ललकारा, पुलिस ने गोली दाग कर कालीबाई की हत्या कर दी। अपनी धरती और समाज के लिये कालीबाई का बलिदान प्रेरणा-पुंज बन गया।

19 जून 1947, घटना के दिन कालीबाई अपनी माता नवलबाई, होमलीबाई, लालीबाई गमेती, नानीबाई कटारा व मांगीबाई आमलिया के साथ जंगल में भैंसों को खिलाने के लिये केसू (खांखरा) के पत्ते काटकर लाने के लिये गयी थी। पत्तों के भारे (गट्ठर) सिर पर लेकर आ रही थी कि उसके कानों में ढोल बजने लगे, लोगों के चीखने-चिल्लाने की आवाज सुनायी दी।

टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों पर वह उतावले डग भरती हुई अपनी पाठशाला की ओर बढ़ने लगी। आगे आकर उसने देखा कि पाठशाला के मैदान में हाहाकार मचा है। कोई चीख-चिल्ला रहा है, कोई बिलख रहा है और कोई रो रहा है। वातावरण एकदम गमगीन है। रास्तापाल गांव में नानाभाई खांट ने विद्यालय प्रारंभ किया, उस विद्यालय में पढ़ाने वाले शिक्षक सेंगाभाई को अंग्रेज़ों की फौज गाड़ी के पीछे बांधकर घसीट रही थी। फौजियों की गाड़ी सेंगाभाई को लेकर आगे बढ़ रही थी।

कालीबाई के हाथ में हंसिया थी। वह अथाह भीड़ को चीरती हुई बिजली की तरह आगे दौड़ी और कहा- “दुश्मनों ! मेरे गुरुजी को कहां ले जा रहे हो।” एक सिपाही ने दहाड़कर कहा- “आगे मत बढ़ो अन्यथा गोली मार दी जायेगी।” कालीबाई तूफ़ानी गति से आगे बढ़ी, गुरुजी से बंधी रस्सी अपने हाथ में पकड़े हंसिये से काट दी।

गुरुजी सेंगाभाई बच गये, परंतु खून के प्यासे सामंती फौज के एक सिपाही ने कालीबाई की छाती में गोली दाग दी। काली अपने गुरु की रक्षा, शिक्षा की ज्योति जलाने और मातृभूमि के लिये 19 जून 1947 को अपना बलिदान देकर अमर हो गयी।

तब कालीबाई की आयु मात्र तेरह वर्ष थी, परंतु उसका साहस कितना बड़ा था! जनजाति गौरव दिवस के अवसर पर उस वीर बाला को नमन।

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *